✅ गौतम बुद्ध ✅
▶ एक बात पर ध्यान दिलाना चाहूंगा गौतमबुद्ध भगवान के 24 अवतारों में से एक है लेकिन फिर भी यह उपास्य नहीं माने जाते हैं
▶ यह भगवत तत्व नहीं है । यह एक विशेष जीव है इनमें भगवान का आवेश मात्र है और आवेश होता है जैसे किसी महिला में कभी-कभी घंटे 2 घंटे के लिए देवी का आवेश आ जाता है
▶ वैष्णवों के लिए इनकी पूजा इन का दर्शन निषेध है उसका कारण है कि यह वेदों को शास्त्रों को शास्त्रीय ग्रंथों को नहीं मानते हैं
▶ और वैष्णव बिना शास्त्र बिना प्रमाण के किसी को तो क्या ऐसे भगवान को भी भगवान नहीं मानते जो शास्त्रों को जो वेदों को जो अध्यात्म को ना माने
▶ गौतमबुद्ध इसी कोटि में आते हैं उन्होंने उस समय दुख और सुख की व्याख्या की और लौकिक भौतिक दुखों से निवृत्ति का संतोष का सदाचार का उपदेश दिया
▶ वह भी समय के हिसाब से अपने मन से शास्त्रों की बात का इन्होंने प्रचार नहीं किया यद्यपि यह भी ईश्वर इच्छा थी और ईश्वर का इनमें आवेश तो था ही फिर भी वैष्णवों के लिए इनकी और विशेष रुचि रखना उचित नहीं है शास्त्र में निषेध किया गया है
▶ आचार विचार के लिए भी शास्त्रोमें संत है जो आस्तिक हैं यह नास्तिक कोटि में आते हैं ।
▶ यह कहने की आवश्यकता नहीं है की जो भगवान शास्त्र को नहीं मानता उसे हम भगवान ही नहीं मानते । तो ऐसे व्यक्ति को तो तुरंत ही त्याग देना चाहिए जो शास्त्र के विपरीत बात करता हो चाहे वह कोई भी क्यों ना हो
▶ तजिए ताहि कोटि वैरी सम
▶ यद्यपि परम स्नेही
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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▶ यह भगवत तत्व नहीं है । यह एक विशेष जीव है इनमें भगवान का आवेश मात्र है और आवेश होता है जैसे किसी महिला में कभी-कभी घंटे 2 घंटे के लिए देवी का आवेश आ जाता है
▶ वैष्णवों के लिए इनकी पूजा इन का दर्शन निषेध है उसका कारण है कि यह वेदों को शास्त्रों को शास्त्रीय ग्रंथों को नहीं मानते हैं
▶ और वैष्णव बिना शास्त्र बिना प्रमाण के किसी को तो क्या ऐसे भगवान को भी भगवान नहीं मानते जो शास्त्रों को जो वेदों को जो अध्यात्म को ना माने
▶ गौतमबुद्ध इसी कोटि में आते हैं उन्होंने उस समय दुख और सुख की व्याख्या की और लौकिक भौतिक दुखों से निवृत्ति का संतोष का सदाचार का उपदेश दिया
▶ वह भी समय के हिसाब से अपने मन से शास्त्रों की बात का इन्होंने प्रचार नहीं किया यद्यपि यह भी ईश्वर इच्छा थी और ईश्वर का इनमें आवेश तो था ही फिर भी वैष्णवों के लिए इनकी और विशेष रुचि रखना उचित नहीं है शास्त्र में निषेध किया गया है
▶ आचार विचार के लिए भी शास्त्रोमें संत है जो आस्तिक हैं यह नास्तिक कोटि में आते हैं ।
▶ यह कहने की आवश्यकता नहीं है की जो भगवान शास्त्र को नहीं मानता उसे हम भगवान ही नहीं मानते । तो ऐसे व्यक्ति को तो तुरंत ही त्याग देना चाहिए जो शास्त्र के विपरीत बात करता हो चाहे वह कोई भी क्यों ना हो
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