Friday, 10 June 2016

कपट

 कपट

✅   कपट   ✅ 


▶ एक वैष्णव को कपट से रहित होना परम् आवश्यक है ।

▶ निर्मल मन जन सो मोहि भावा

▶ मोहि कपट छल छिद्र न भावा


▶ ह्रदय में कुछ और । मन में कुछ और

▶ यही सिम्पल सी व्याख्या ह कपट की


▶ कपट मन का मल है ।

▶ तभी कहा निर्मल मन


▶ जिस प्रकार पेट का मल कष्ट देता है । उसी प्रकार मन का मल चिंता टेंशन ।सबसे बड़ी बात प्रभु से दूर रखता है


▶ एक वैष्णव को कटु शब्द नही बोलने चाहिएं । ये शत प्रतिशत ठीक है । लेकिन कटुता यदि मन में आ जाए

तो भले ही बक ले । क्रोध कर ले । लेकिन मन में न पाले ।


▶ कटु शब्द न बोलने से हज़ार गुना आवश्यक है निष्कपट होना ।



▶ शास्त्रों में एक भी भक्त ऐसा नही जो कपटी हो । लेकिन हज़ारों हैं जो कपट मुक्त होने हेतु क्रोध करते या कटु शब्द बोलते दीखते हैं ।



▶ ये श्राप आदि कटु शब्द नही तो और क्या है । अतः निष्कपट होना । मन वचन कर्म एक होना । मीठा मीठा बोलने से बहुत अधिक आवश्यक है


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚


🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊 लेखक: आदरणीय Dasabhas DrGiriraj Nangia जी


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