Wednesday, 29 November 2017

Hanji hanji kahna Isi gaanv me rahna

Hanji hanji kahna Isi gaanv me rahna

हांजी हांजी कहना
इसी गांव में रहना

भक्ति या भजन का प्रथम लक्षण है अपने आप में दीनता का भाव आ जाना ।

इसका एक कारण भी है ।
भक्ति क्या है ।
भक्ति है श्रीकृष्ण चरणों की सेवा,
वैष्णवों की सेवा
तुलसी की सेवा
गुरुदेव की सेवा
ग्रंथ की सेवा
अर्थात सेवा सेवा सेवा सेवा

जब भक्तों का मुख्य कार्य सेवा हो गया तो भक्तों का स्वरूप क्या निकल कर आया । एक सेवक का ।। कहा भी है कि जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है ।

और जब हम एक सेवक हैं, हम एक नौकर हैं, हम एक दास हैं तो फिर अकड़ किस बात की । नौकर या दास या सेवक तो दीन ही होता है

हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना । सेवक में अभिमान कैसा,  सेवक का गुमान कैसा, सेवक की श्रेष्ठता कैसी, वह तो सभी का सेवक ही है सभी की सेवा ही करनी है ।।

यह भाव सदैव एक वैष्णव को पुष्ट करना चाहिए यदि यह भाव दृढ़ता से पुष्ट हो जाएगा तो आप सच मानिए भक्ति का जो प्रथम लक्षण वैष्णवोंमें आता है वह आता है दैन्य । वह आ जाएगा ।

भक्ति का प्रथम लक्षण जो वातावरण में आता है वह आता है क्लेषघ्नी । समस्त क्लेशों को नष्ट कर देती है सच्ची भक्ति ।

आजकल उल्टा हो रहा है भक्ति प्रारंभ हुई और घर में कलेश प्रारंभ हुए । यदि ऐसा है तो हम भक्ति या भजन नहीं कर रहे हैं । हम भक्ति के नाम पर नाटक, अहंकार पोषण एवं अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर रहे हैं ।

कर के देखिए अंतर महसूस होगा ।
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

धन्यवाद!!
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Tuesday, 28 November 2017

Hamara Target Kya



✔ *हमारा टारगेट क्या* ✔

↪सृष्टि में विविधता है और विविधता सृष्टि का प्रथम महत्वपूर्ण गुण है । दो पत्ता भी एक सा नहीं है दो मनुष्यों की शक्ल भी एक सी नहीं है ।

 ↪इसी विविधता के कारण कुछ मनुष्य सदाचार परोपकार स्वधर्म पालन में लगे हुए हैं और उनका टारगेट संभवत यश है ।

↪कुछ मनुष्य धनोपार्जन में लगे हुए हैं येन केन प्रकारेण धनोपार्जन करना उनका टारगेट धन है।

 ↪कुछ मनुष्य येन-केन-प्रकारेण अपनी कामनाओं की पूर्ति में लगे हुए हैं यह कामना यह वासना यह इच्छा वह इच्छा ।

↪कुछ लोग ऐसे हैं जो इस जीवन के दुखों से परेशान हो गए हैं वह इस संसार में बार-बार आने जाने से मोक्ष चाहते हैं ।

↪इन सब के अतिरिक्त हम आप जैसे कुछ लोग हैं जो भक्ति में लगे हुए हैं भजन में लगे हुए हैं कृष्ण चरण सेवा चाहते हैं भगवान की कृपा चाहते हैं भगवान की कृपा से भगवान की चरणों की परमानेंट सेवा चाहते हैं ।

↪अब बात यह है कि जो जो चाहते हैं उस में लगे हुए हैं हम लोग यदि भजन भक्ति चाहते हैं तो हम यह समझ लें कि हमारे जीवन का जो मुख्य उद्देश्य है भजन । भक्ति । हमारा जीवन, कम से कम हमारा जीवन भजन भक्ति के लिए मिला है ।

 ↪और यदि भजन भक्ति के लिए जीवन मिला है तो सबसे अधिक प्राथमिकता हम भजन भक्ति को दें अधिक समय भजन भक्ति को दें और संसार में जो दायित्व हमारे ऊपर हैं उन्हें अनासक्त होते हुए निभाते रहे और संतुलन रखें । जो विभिन्न विषयों में संतुलन रखकर साधते हुए चलता है वही साधु है ।

↪फिर भी जैसे किसी का टारगेट धन है किसी का टारगेट यश है किसी का टारगेट कामना है किसी का टारगेट मोक्ष है । हमारा टारगेट भजन है, भक्ति है ।

↪यह सदा स्मरण रहे तो हमारे प्रयास भी इस ओर अधिक से अधिक होने लगेंगे ।

जय श्री राधे जय निताई
समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

Friday, 24 November 2017

Gyan Kriya Bal


ज्ञान
क्रिया
बल

ये तीन स्थिति हैं
सर्व प्रथम भजन का ज्ञान प्राप्त होता है,
जानकारी होती है

जानकारी के बाद भजन में लगते हैं
क्रिया, करना प्रारम्भ करते हैं

क्रिया करने से बल, आत्मविश्वास
होता है । तभी व्यास जी कहते हैं

व्यास भरोसे कुंवरि के
सोवत पांव पसार

अथवा
हम श्री राधाजू के बल अभिमानी

समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम


समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn 

Thursday, 23 November 2017

Tentees Pratishat


तेतीस प्रतिशत

यह बात कितनी शास्त्रीय है यह मैं नहीं जानता लेकिन सरल भाषा में सहज में हमें समझ आ जाए इसलिए इस प्रकार की प्रस्तुति कर रहा हूं ।

श्रीकृष्ण की अनंत शक्तियों में से तीन प्रमुख शक्तियां हैं । एक हैं आह्लादिनी शक्ति श्री राधा रानी ।

श्री राधारानी की कृपा मिल जाए, श्री राधा रानी आश्रय तत्व है । श्री राधा रानी हमारी स्वामिनी है और कृष्ण हमारे स्वामी है ।

श्री राधा रानी एवं गोपियों के अनुगत में हमें कृष्ण को सुख देना है, प्रिया लाल की चरण सेवा प्राप्त करनी है । इस बात में यदि निष्ठा बन जाए तो समझ लीजिए 33% कृष्ण मिल गए ।

कृष्ण की एक और शक्ति है संवित् शक्ति । ज्ञान शक्ति । जिसका स्वरुप हैं श्री गुरुदेव और समस्त वैष्णव ग्रंथ ।

यदि ग्रंथों में निष्ठा हो जाए, नियमित रुप से प्रामाणिक ग्रंथों का अध्ययन किया जाए और श्री गुरुदेव में यह निष्ठा हो जाए कि यह भगवान की ही एक शक्ति हैं ।

इनकी सेवा से  , इनकी कृपा से हमें कृष्ण चरण सेवा प्राप्त हो जाएगी और गुरुदेव भी हम से प्रसन्न होकर हमें आत्मसात कर लें तो समझो 33% और कृष्ण मिल गये ।

एक और शक्ति है श्रीकृष्ण की जिसे कहते हैं संधिनी । संधिनी माने धाम  ।

जो कृष्ण का धाम है श्री वृंदावन । यदि वह मिल जाए, श्रीधाम में वास मिल जाए और वास के साथ-साथ श्री विग्रह सेवा, संत साधु जन संगति श्रीमद् भागवत आदि ग्रंथों के अर्थों का आस्वादन और नाम का आश्रय धाम में यदि मिल जाए और धाम के प्रति यह निष्ठा दृढ़ हो जाए के धाम मिल गया तो कृष्ण मिल गए ।

 क्योंकि धाम साधन नहीं है । धाम साध्य है । नाम भी साध्य है तो समझो कि 33 परसेंट और मिल गया ।

यह तीनों यदि प्राप्त हो जाए तो समझो कृष्ण मिल गए । इसमें से पहले कुछ भी मिले बाद में कुछ भी मिले ।

अपनी निष्ठा और उपासना से प्रयास करके यह तीन निष्ठाएं यदि दृढ हो जाए तो कृष्ण प्राप्ति लगभग हो गई ।

और कृष्ण प्राप्ति के बाद यदि निष्ठां सहित आचरण किया जाए तो कृष्ण प्रेम और कृष्ण चरण सेवा भी समझो मिल ही गई ।

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn 

Saturday, 18 November 2017

Viray Sahayak hi he


विरह सहायक ही है

हम लोग प्रायः संयोग या मिलन को ही श्रेष्ठ मानते हैं और मिलन में ही आनंदित होते हैं

यदि थोड़ा सा भी सूक्ष्मता से देखेंगे तो मिलन में आनंद तो है ही लेकिन लगातार एक साथ रहते हुए या मिलन की स्थिति में रहते हुए धीरे-धीरे एक उकताव सा आता है

उस उकताव को कम करने के लिए  विरह बहुत अच्छा कार्य करता है । जब कोई अपना प्रिय सदस्य सदा साथ रहे तो उसके प्रति स्नेह और आसक्ति में धीरे-धीरे कमी तो होती है, अपितु उसके दोष भी दिखने लगते हैं ।

वही अपना प्रिय यदि एक माह के लिए बाहर चला जाए और फिर एक माह बाद वह आए तो उससे मिलन की जो स्थिति और आनंद होता है वह कई गुना बढ़ जाता है ।

इसलिए आनंद वृद्धि के लिए विरह बहुत ही आवश्यक है । विरह के बाद या वियोग के बाद जो संयोग होता है उसमें आनंद अतिवृद्धि को प्राप्त होता है ।

और विरह के कारण दर्शन न होते हुए अपने प्रिय से सदा ही वह मिलने की ललक लगी रहती है उस ललक से प्रेम वृद्धि होती है, आनंद वृद्धि होती है ।

इसीलिए ही ठाकुर जी की लीलाओं में भी संयोग और वियोग दोनों ही होते हैं । अनेक बार तो ऐसी स्थिति हो जाती है कि संयोग में भी साथ साथ होते हुए भी ऐसा लगता है कि प्रियतम गए ।

शास्त्र कहता है कि जब कोई हमारे पास होता है तब हमारा यही चिंतन होता है कि अब यह कल चला जाएगा , अब यह कल चला जाएगा , अब यह कल चला जाएगा ।

और जब कोई दूर होता है तब सदा ही यह चिंतन होता है कि अब बस एक दिन में वह आने वाला है  । एक दिन में आने वाला है ।

आने के बारे में सोचने में आनंद अधिक होता है और जाने के बारे में सोचने में आनंद का अभाव होता है । अतः विरह बहुत ही महत्वपूर्ण है और आनंद का एक आवश्यक स्रोत है ।

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Thursday, 16 November 2017

Apne se shreshth ya kanishth



✔ *अपने से श्रेष्ठ या कनिष्ठ* ✔

▶ शास्त्र म् कहा गया है कि सदा ही

1। अपने से ऊँचे स्तर के वैष्णव का संग करो । परिणाम स्वरूप आप भी ऊँचे की तरफ बढ़ोगे

2। जो स्निग्ध हो । उसका संग करो । वो चिड़चिड़ायेगा नही दासाभास की तरह, अपितु प्रेम से आपको समझायेगा

3 । सजातीय अर्थात जो उपासना, जो सम्प्रदाय, जिस भाव के आप उपासक हो, वह भी उसी भाव आदि का हो, अन्यथा विवाद हो सकता है

▶ ये तो है भजन की बात । ऐसा करने से भजन बढ़ेगा ही । और भजन ही बढ़ाना है , लौकिक विषय को बढ़ाना नही, अपितु छोड़ना है । निकलना है इस जाल से ।

▶ इसलिए लौकिक जगत में सदा ही अपने से छोटे स्तर के लोगों के साथ रहो । इससे सदा संतुष्टि बनी रहेगी ।

▶ यदि अपने से बड़े लोगों के साथ उठेंगे बैठेंगे तो उनकी समृद्धि, उनके स्तर, उनकी विलासिता को देखकर हमारे मन में भी वैसा बनने की इच्छा जागृत होगी ।

▶और कहीं ना कहीं हम भी वैसा बनने का प्रयास करेंगे । यदि वैसा बन गए तो इस जंजाल में फंसते जाएंगे और भजन छूटता जाएगा ।

▶ यदि नहीं बन पाए तो मन में खिन्नता रहेगी और एन केन प्रकारेण वैसा बनने का संकल्प मन में रहेगा जो मन को चंचल करेगा ।

▶अतः श्रेष्ठ भजन आनंदी का संग करने से भजन बढ़ेगा और श्रेष्ठ लॉकिंक सुख सुविधा वाले का संग करने से लौकिक सुख सुविधा बढ़ेगी ।

▶लेकिन एक वैष्णव यह जानता है कि लौकिक सुख सुविधाओं में आनंद नहीं है ।क्लेश ही क्लेश है । यह छोड़नी ही है । और इनको छोड़ने पर जोर नहीं देते हुए, भजन को पकड़ने पर जोर देना है ।

▶जैसे-जैसे भजन बढ़ता जाएगा यह चीजें छूटती जाएगी । अतः एक वैष्णव के लिए संग श्रेष्ठ वैष्णव का और लौकिक संग अपने से छोटे  स्तर वाले व्यक्ति का ।

▶इससे मन भागेगा नहीं और संतुष्ट रहेगा ।
परिणाम स्वरुप भजन में लगे रहेंगे हम और आप ।

▶समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚

 🖊  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Tuesday, 14 November 2017

Mukti or Bhakti


✔ *मुक्ति और भक्ति* ✔

▶ अजामिल के चरित्र में बहुत ही सूक्ष्म चिंतन है । अजामिल ने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा । अंतिम समय में जब उसे भयानक शक्लों वाले यमदूत लेने आए तो पता नहीं किस कारण से उसको वह दिखाई दिए ।

▶ हमें आपको दिखाई नहीं देते हैं । उनसे भय के कारण उसने अपने पुत्र को नाम लेकर पुकारा । नारायण नारायण ! मुझे बचाओ, मुझे बचाओ ।

 ▶ नारायण कहते ही विष्णु दूत वहां आ गये और उन्होंने यह काम किया कि यमदूतों को वहां से भगा दिया ।

▶ यमदूत यदि उसको ले जाते तो उसके पाप पुण्य भुगवा के पुनः उसे किसी योनि में डालते ।

 ▶ यमदूतों को नहीं ले जाने दिया नाम आभास से बस इतना ही काम हुआ । यमदूत दिखे । और यमदूतों को उसकी आत्मा को नहीं ले जाने दिया ।

 ▶ साथ ही विष्णु दूत भी उसे अपने साथ नहीं ले गए । नारायण नाम आभास से यमदूत भाग गए और विष्णु दूतों का दर्शन हुआ ।

▶ विष्णु दूतों के दर्शन के प्रभाव से उसका विवेक जाग्रत हो गया इसे वैष्णव कृपा, पार्षद कृपा दर्शन का फल कहा जा सकता है ।

▶ उसके बाद उसकी रति मति बदली और वह सब भोग उपभोग छोड़कर गंगा जी के तट को साफ करता रहा ।

▶ गंगा के तट को मार्जन करने से उसका चित्त भी मारजित हो गया और निरंतर फिर नारायण नाम का आश्रय लेता रहा ।

▶ निरंतर अधिक समय तक नारायण नाम का आश्रय लेने का फल यह हुआ कि नारायण ने वैकुंठ से उसको विमान भेजा और अपने लोक में बुला लिया ।

▶ कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति उसको फिर भी प्राप्त नहीं हुई जो हम वैष्णवोंका साध्य है ।

▶ नारायण नाम ऐश्वर्यका नाम है । इसलिए उसको ऐश्वर्य लोक की प्राप्ति हुई । अतः नाम आभास नाम और नाम भी नारायण का, कृष्ण का, या किस का । सबका अलग अलग फल प्राप्त होता है ।

▶ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Monday, 13 November 2017

Kripa


✔ *कृपा * ✔

▶ एक अध्यापक कभी नहीं चाहता कि उसके क्लास का एक भी बालक फेल हो, अपितु वह यह चाहता है की सभी अधिकाधिक नंबर प्राप्त करें ।

▶ लेकिन उसके चाहने से कुछ नहीं होता विद्यार्थियों का परिश्रम ही उसका कारण बनता है ।

▶ जो जितना परिश्रम करता है, जो जितने लगन से पड़ता है, उसको उसकी परिश्रम लग्न एवं योग्यता के अनुसार अंक प्राप्त होते हैं ।

▶ इसी प्रकार कोई भी गुरु देव नहीं चाहते कि मेरा शिष्य भगवत भजन में असफल हो । वे तो यही चाहते हैं कि सभी परम भक्त बन जाए ।

▶ लेकिन ऐसा नहीं होता । जो वैष्णव, जो शिष्य जितना भजन में इनपुट देते हैं वह उसी स्तर के भक्त बनते हैं ।

▶ अतः कृपा प्राप्ति के लिए आवश्यक है परिश्रम हम जितना परिश्रम करते हैं जितना इनपुट देते हैं, उतनी ही कृपा हमें प्राप्त होती है ।

▶ कृपा ना तो गुरुदेव के वश में है । ना भगवान के ही वश में है । कृपा का साक्षात स्वरुप है श्री राधा रानी ।

▶ और श्री राधा रानी के चरणों की सेवा करते रहते हैं श्रीशाम सुंदर । अतः हम अधिक से अधिक साधन करते हुए भजन में लगे ।

▶ जितने अधिक लगेंगे उतनी अधिक कृपा होगी और जितनी अधिक कृपा होगी उतने ही शीघ्र हम अपने जीवन के उद्देश्य प्रिया प्रीतम के चरणों की सेवा को प्राप्त कर लेंगे ।

▶ अतः सावधान कृपा यदि नहीं हो रही है तो कमी गुरुदेव या भगवान की नहीं हमारे ही प्रयास और परिश्रम में कमी है । और प्रयास करें, और परिश्रम करें । कृपा तो प्राप्त होनी ही है होगी ही

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Sunday, 12 November 2017

Kinkri Sewa

​​ *किंकरी  सेवा 

 आज अचानक में अपने एक सत्संगी मित्र की कुटिया पर गया । मैंने देखा छोटी सी कुटिया थी वह मित्र ठाकुर जी की सेवा कर रहे थे ।

 उसके बाद उन्होंने तुलसी जी को जल दिया । स्वयं बर्तन मांज, झाड़ू लगाई, पोछा लगाया,  आदि ।

 इस प्रकार अन्य साफ़ सफाई आदि करके मेरे साथ स्थिर हो कर माला लेकर बैठ गए ।

 मैंने उनसे कहा आप तो समर्थवान हैं । आप एक बाई या नौकर रख लीजिए, जो यहां झाड़ू कर देगा, पोछा लगा देगा, बर्तन धो देगा, छोटी-मोटी सफाई कर देगा ।

 हां ठाकुर सेवा, तुलसी सेवा आप स्वयं करिए । वे तपाक से बोले ! दासाभास । कैसी बात करते हो ।

 जीव का स्वरुप क्या है । यह बताओ । मैंने कहा कृष्णदास या अपने गौड़ीय परंपरा में राधा जी की दासी ।

 तो बोले, राधा जी की दासी हम तभी बन पाएंगे ना जब हम इस लौकिक संसार में भी दासियों जैसा काम करेंगे ।

 हमें दासियों जैसा काम करने की आदत रहेगी, संस्कार रहेंगे तभी तो वहां जाकर हम दासियों जैसी सेवा कर पाएंगे ।

 यदि हम जीवन भर रिमोट के बटन दबाते रहे तो प्रिया जी की निकुंज में बूहारी सेवा कैसे करेंगे ।

 प्रिया जी के लिए माला कैसे गूठेंगे । प्रिया जी को जल कैसे प्रदान करेंगे । अतः यह बहुत आवश्यक है कि हम यहां से ही इन छोटी-छोटी सेवाओं का अभ्यास करें ।

 और यह निश्चित है कि निकुंज में हमें यह छोटी-छोटी सेवाएं ही प्राप्त होनी है, यदि अभ्यास नहीं होगा तो वहां यह सेवाएं कैसे कर पाएंगे ।

 अतः मैं अभी से इनका अभ्यास कर रहा हूं, जिससे आगे चलकर मुझे परेशानी न हो ।

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Shri Krishan ka Avirbhav


श्री कृष्ण का आविर्भाव

अर्चा विग्रह
संत सद्गुरु
नाम
धाम
श्रीमद्भागवत

इन पांच वस्तुओं में भगवान श्रीकृष्ण का सदा आविर्भाव रहता है अथवा यूं कहें कि यह पांचों श्री कृष्ण का ही स्वरुप है ।

पहला है अर्चा विग्रह

अर्थात वह विग्रह, जो आपके घर के मंदिर में विराजमान हैं और आप उसका अर्चनं वंदनं पूजन सेवा आदि करते हैं । वह कोई शो पीस नहीं । सदा ये भाव रहे कि कृष्ण यहाँ विराजमान होकर हमारी सेवा स्वीकार कर रहे हैं ।

दूसरा है संत सदगुरु

विशेषकर सद्गुरु । सद्गुरु वह होते हैं जो शिष्य को सिर पर हाथ रखकर आत्मसात कर लेते हैं अर्थात शिष्य की भजन क्रिया आदि से प्रसन्न होकर शिष्य के प्रति उनमें आत्मीयता हो जाती है । वह सद्गुरु होते हैं । अन्यथा गुरु होते हैं ।

तीसरा है नाम

श्रीहरिनाम, श्री कृष्ण नाम, श्री राम नाम। भगवान का नाम भी साक्षात श्रीकृष्ण ही है । साक्षात भगवान ही है । नाम में भी सदा श्री कृष्ण का आविर्भाव रहता ही है अपितु नाम को कृष्ण से भी बड़ा कहा गया है ।

चौथा है धाम

कृष्ण के लिए श्री वृंदावन धाम । राम के लिए श्री अयोध्या धाम । धाम भी श्री कृष्ण का ही स्वरुप है । इसलिए शास्त्र कहते हैं कि यदि धाम वास प्राप्त हो गया तो समझो श्रीकृष्ण मिल गए ।

धाम में भी कृष्ण का आविर्भाव है । धाम भी साक्षात श्री कृष्ण का ही स्वरुप है । यदि धाम को छोड़कर हम बार बार भाग रहे हैं तो धाम प्राप्त होने पर भी भागना इससे बड़ी कृष्ण उपेक्षा नही हो सकती ।

पांचवां है श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न

श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न में उपरोक्त चारों के विषय में चर्चा की गई है । अर्चा विग्रह, संत सद्गुरु, नाम, और धाम । इसीलिए श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न में भी सदैव श्रीकृष्ण का आविर्भाव रहता है  ।

यहां मैं कहता चलूँ श्रीमदभगवदगीता में कृष्ण का आविर्भाव शास्त्र में नहीं कहा गया है । क्योंकि उसमें इन चारों की चर्चा नहीं है  ।

जितने भी ग्रन्थ है वह प्रभु के श्री विग्रह ही है  लेकिन श्रीमद् भागवत साक्षात श्रीकृष्ण ही है अतः जब भी हम इन पांचों का सेवन करें तब मन में यह दृढ़ विश्वास रहे कि हम श्रीकृष्ण का सेवन कर रहे हैं ।

समस्त वैष्णवजन को दासाभास का  प्रणाम
जय श्री राधे जय निताई 

Saturday, 11 November 2017

Bihari Ji Mandir me kyo hota hai parda baar baar

क्यों करते है बिहारी जी मन्दिर में बार बार पर्दा

धन्यवाद!!
जय श्री राधे !!
जय निताई !!
श्री हरिनाम प्रेस, वृन्दावन ।।
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Tuesday, 7 November 2017

दासाभास लेखनी भाग 7

दासाभास लेखनी


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             दासाभास लेखनी
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💎 भाग 7⃣

1⃣ ।। सब एक ही बात नहीं है ।।
अपनी साधना में जो सिद्ध हो चुके हैं ऐसे शांतरस के साधक - सिद्ध लोक को
दास्य भाव के साधक - वैकुण्ठ लोक को
शुद्ध सख्य- वात्सल्य- मधुर भाव के साधक गोलोक में जाते हैं। उपासना एवं भाव से अलग-अलग लोकों की प्राप्ति होती है.

2⃣ आम आदमी सांप को मार सकता नहीं। सपेरा मार सकता है, लेकिन मारता नहीं। उसके विषदन्त निकाल कर खेलता है ऐसे ही कामना वासना को मारो नहीं, उनमें से संसार-विषय विष निकाल कर उन्हें श्रीकृष्ण सेवा में लगा कर खेलो और आनंदित रहो.

3⃣ बन्दूक - जिस प्रकार एक गोली अपनी बन्दूक द्वारा प्रयोग करने पर ही काम करती है। उसी प्रकार मंत्र या भजन गुरुदेव द्वारा प्राप्त होने पर, उनके आनुगत्य में करने पर ही फल देता है। यदि भजन शुरू हो भी जाए तो पहले गुरुदेव मिलेंगे। फिर भजन का फल श्रीकृष्ण-सेवा मिलेगी वैसे ही जैसे यदि गोली मिल जाय तो बन्दूक खरीदनी पड़ेगी और बन्दूक मिल जाय तो गोली भी चाहिये।

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Sunday, 5 November 2017

Shri Ram Shri Krishan


श्रीराम श्रीकृष्ण

श्री राम हों या श्री कृष्ण हों, वामन हों,  नृसिंह हों, या श्री कृष्ण के अनेक स्वरुप श्री राधारमण हों, श्री बिहारी जी हों, श्री राधावल्लभ हों, श्री गोविंद देव आदि हों, यह सब एक ही स्वरुप है।

यह सब एक ही हैं । इनमें तत्वतः कोई भेद नहीं, ठीक वैसे जैसे बीए हो, बीकॉम हो, बीएससी हो बीसीए हो यह सभी ग्रेजुएट डिग्रियां हैं ।

लेकिन जब हम निश्चित कर लेते हैं कि हमें बीकॉम करना है तो हम बी कॉम की कक्षा में जाते हैं, बीकॉम की पुस्तकें पढ़ते हैं, बीकाम की ही कोचिंग लेते हैं और बीकॉम में पढ़ने वाले अपने साथियों का संग करते हैं ।

इसका अर्थ बीसीए या बीएससी की निंदा नहीं, उपेक्षा नहीं लेकिन केंद्र एक पर ही है ।

थोड़ा-थोड़ा अंतर भी इनमें होता है । बीकॉम करने वाला कभी डॉक्टर नहीं बन सकता । इसलिए उपासना के रूप में जब हम इन भगवान के विभिन्न स्वरूपों को देखते हैं तो यहां भी थोड़ा थोड़ा अंतर है ।

नरसिंह की उपासना और कृष्ण की उपासना और श्री राम की उपासना तीनों में अंतर है और उपासना के फल में भी अंतर है ।

श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं
राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और
नरसिंह ने प्रहलाद की रक्षा की

इसलिए जब हम दीक्षित हो गए तब इष्ट रूप में हमें अपने गुरु परंपरा से प्राप्त श्री विग्रह के स्वरूप को ही सदा देखना चाहिए ।

उसी विषय के ग्रंथ पढ़ने चाहिए , उसी विषय के वैष्णवों का संग करना चाहिए, अपमान तो प्राणी मात्र का नहीं करना है फिर यह सब तो भगवान है ।

जब तक उपासना में अनन्यता नहीं आएगी तो इष्ट के प्रति दृढ़ बुद्धि एवं समर्पण नहीं आएगा और दृढ़ निष्ठा एवं समर्पण ना होने से प्राप्ति में बहुत विलंब होगा ।

अतः अनन्यता पूर्वक यथासंभव अधिक से अधिक अपने

इष्ट के विषय में बात करें ।
इष्ट के विषय में चिंतन करें ।
इष्ट का दर्शन करें
इष्ट के आचार्यों से मिले

तो हम शीघ्र ही इष्ट की कृपा प्राप्त कर उनके चरणों की सेवा प्राप्त कर लेंगे

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Shringaar Vatt Vrindavan

Shringarvatt

✔  *श्रृंगार वट* ✔

▶ वृन्दाबन की परिक्रमा मार्ग में इम्लितला से 5वीं जीर्ण शीर्ण बिल्डिंग है । प्राचीन सिद्ध स्थान है ।

▶ यह लगभग जमुना के तट पर स्थित है । कभी इसके घाट पर यमुना जी भी बहती थी । रास लीला में जब श्री राधा जी चली गई तब श्री राधा जी का इस स्थान पर ठाकुर ने श्रृंगार किया था ।

▶ इसलिए इसका नाम श्रृंगार वट है । साथ ही जब नित्यानंद प्रभु आए तब नित्यानंद प्रभु ने भी यहां पर वास किया था ।

▶और आज भी यहां नित्यानंद प्रभु के वंशज उनके पुत्र के पुत्र के पुत्र के पुत्र यही विराजमान हैं ।

▶ श्रीनित्यानंद प्रभु के वंशज और उनके शिष्य उनका वंश आज भी श्रृंगार वट में विराजमान है

▶ श्री श्रृंगार वट सप्त देवालयों की गुरु गद्दी है । क्योंकि यह नित्यानंद प्रभु का स्थान है । सप्त देवालय गोस्वामी पाद के स्थान हैं ।  रूप,  सनातन श्री जीव श्री गोपाल भट्ट आदि ।

▶ नित्यानंद  प्रभु है । इसलिए यह गुरु गद्दी है लेकिन समय के प्रभाव से जीर्ण शीर्ण अर्थहीन ऐश्वर्य हीन होने से अब यहां कोई इसको पूछता नहीं है । स्वाभाविक भी है ।

▶ लेकिन यह स्थान सिद्ध है ।

▶प्रिया जी का यहां ठाकुर ने श्रृंगार किया है
और नित्यानंद प्रभु के यहां पर चरण पड़े हैं
नित्यानंद प्रभु के वंशज यहां आज भी विराजमान हैं

▶ यहां निताई गौर और प्रिया प्रीतम के दुर्लभ विग्रह हैं । सेवा पूजा आज भी विधि विधान से श्रद्धा पूर्वक होती है ।

▶ जो अंतरंग भक्त हैं, वैष्णव है । वह नियम से प्रतिदिन यहां दर्शन करते हैं । बहुत बड़ा प्रांगण दर्शनीय है । अवश्य दर्शन करना ही चाहिए

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Wednesday, 25 October 2017

Dasabhas Lekhni Part 6


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             दासाभास लेखनी
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💎 भाग 6⃣

1⃣ शिव जीः त्रिलोचना सखी - श्रीगौरदास जी महाराज ने चर्चा में बताया कि श्रीभक्तमाल में श्रीप्रियादास जी श्री नरसी मेहता के चरित्र में गान किया है कि एक वीहड़ में शिवलिंग की उपासना करने पर श्री शिवजी साक्षात प्रकट हुए और नरसी मेहता का हाथ पकड़ कर उन्हें भी श्री रासलीला के दर्शन कराये। वहां पर शिवजी को त्रिलोचना सखी बताया है और उनकी दीपक सेवा का वर्णन है शिवजी ने नरसी मेहता जी को भी दीपक सेवा देते हुए उन्हें सखी नाम दिया है। आदि - आदि। त्रिलोचना सखी की जय हो। ये स्थान जूनागढ़ में है। द्वारका यात्रा में इस स्थान के दर्शन भी करेंगे हम लोग।

2⃣ श्रीकृष्ण जन्म अवसर पर श्रीशिव जी नन्द भवन में दर्शन हेतु गये सम्बन्धी श्री शिवजी की जो-जो लीला प्रचलित है हम श्रवण करते हैं। वह भी श्रीमद्भागवत चै. च.। गोपाल चम्पू में नहीं है .

3⃣ किसी बात का अभिमान नहीं है यही सबसे बड़ा अभिमान है.

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Tuesday, 24 October 2017

Paap nahi hota


🌹🌳🌹🌳🌹🌳🌹🌳

✔ *पाप नहीं होता* ✔

➡ भजन, भक्ति में नियमों का
पालन न करने से कोई पाप
नहीं होता है, जिसका कोई
अलग से फल भोगना पड़ता हो

➡ भजन, भक्ति में अपराध होता है
अपराध के कारण भजन, भक्ति की
गति में बाधा या असंतोष होता है, जो कि
भजन से ही मार्जित या दुर् होता
जाता है, विशेषकर नामजप से ।

➡ नाम जप प्रारम्भ में योग्य बनाता है,
फिर साधन बनता है, फिर साध्य बन
जाता है । ये तीन अलग अलग नहीं,
नाम वही एक ही है, बचपन, जवानी
बुढापे जैसी स्थिति है ।

➡ अतः जैसे भी बन पड़े, भजन अंगों को
आज से ही शुरू कर दो, निष्ठा एवं
भाव पूर्वक लगे रहो । भजन के प्रभाव से
ही शुद्ध होता जाएगा, मार्ग मिलता
जाएगा । असंतोष या अपराध दुर् होते
जाएंगे ।

🖊 लेखक

दासाभास डा गिरिराज नांगिया

LBW - Lives Born Works at vrindabn

Monday, 23 October 2017

Bhagwan ki Lilaen

भगवान की लीलाएं


✔ *भगवान की लीलाएं* ✔

➡ भगवान श्री कृष्ण ने जब पृथ्वी पर अवतरण किया और विभिन्न लीलाएं की तो उनके देवगण भी उनकी उस लीलाओं के दर्शन करने या अपने घर भगवान श्रीकृष्ण की पधरावनी करने का लोभ संवरण ना कर सके ।

➡ ऐश्वर्यमय सृष्टि नियंता भगवान के रूप में तो उन पर कृपा है ही । रहती ही है । लेकिन वे देवगन भी यही चाहते थे कि भगवान की नर स्वरूप लीला की भी कृपा हमारे ऊपर हो ।

➡ इसी भावना से ब्रह्मा ने गोवत्स चुराए और अंततः भगवान के उस बाल स्वरुप का दर्शन कर उनकी स्तुति कर यहां तक कि उन को कष्ट देने पर भी आनंद ही लाभ किया ।

➡ जब ब्रह्मा ने इस प्रकार किया और इंद्र ने भी भगवान के साथ कुछ गड़बड़ी की लेकिन जब उन्हें समझ आया कि यह तो मेरे स्वामी परात्पर ब्रम्ह साक्षात श्रीकृष्ण ही है ।

➡ तो इंद्र ने भी उनकी कृपा लाभ की ओर इंद्र पर भी श्री कृष्ण प्रसन्न हुए और इंद्र ने भी नर रूप श्री कृष्ण के दर्शन कर अपने आप को धन्य किया ।

➡ वरुण देवता ने भी जब देखा कि ब्रह्मा आनंद ले चुके हैं । इंद्र आनंद ले चुके हैं । तो क्यों ना मैं भी परात्पर ब्रम्ह परमात्मा के श्री कृष्ण रूप की पधरावनी अपने महल में करवाऊं । उनकी इच्छा होते ही कृष्ण ने उनकी इच्छा पूरी करने की योजना बना ली ।

➡ और एक दिन द्वादशी का पारण करने के लिए नंद बाबा ने रात्रि 3 बजे जैसे ही यमुना में स्नान हेतु प्रवेश किया तो उनको वरुण लोक् ले जाया गया ।

➡ जैसे ही कृष्ण को पता चला कृष्ण भी यमुना में प्रवेश कर वरुण लोक् चले गए वहां पाताल में वरुण या जल देवता ने श्री बाबा की तो पूजा की ही श्रीकृष्ण की भी सपरिवार पूजा की ।

➡ और अंत में वरुण ने यह कहा । प्रभु मैंने यदि आपके प्रति आपके पिता के प्रति अपराध किया है तो आप मुझे दंड दीजिए ।

➡ लेकिन मेरी हार्दिक इच्छा आप जानते हैं मैंने यह जो उत्पात् किया यह आपके चरण वरुण लोक में पड़ जाएं इस भावना से किया ।

 ➡ यदि आप प्रसन्न है तो मुझ पर कृपा कीजिए कृष्ण ने मंद मुस्कान भरी दृष्टि वरुण की तरफ की और वरुण समझ गए कि भगवान नाराज नहीं है प्रसन्न ही है ।

➡ इस प्रकार कृष्ण की जो वृंदावन धाम की लीलाएं हैं वह इतनी आकर्षक है इतनी माधुर्य भरी हैं उनका स्वरूप इतना आनंदप्रद है कि देवगण़् भी उनका दर्शन । उनका सानिध्य प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं ।

➡ भले ही उसके लिए उनको उत्पात् ही क्यों ना करना पड़े । ऐसे वृंदावन बिहारी लीलाधारी पुरुषोत्तम बाल कृष्ण भगवान की जय ।

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Friday, 22 September 2017

Suksham Sutra Part 52


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     सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 5⃣2⃣

💡 जो भारतीय संस्कृति तक से नितांत अनभिज्ञ हैं वह हिन्दू धर्म के बारे में क्या जानें? बड़े बड़े ऋषि मुनि, चिन्तक विद्वान आज तक इसकी थाह नहीं पा सके तो ये सौ दो सौ स्त्री लम्पट फिल्म निर्माता किस खेत की मूली हैं? 'अवहेलना' ऐसे लोगों का सबसे बड़ा दण्ड है.

💡 माता का गर्भ में आने के बाद किसी जीव के इस संसार में आने का समय लगभग तय हो जाता है परंतु संसार से जाने का समय किसी को नहीं पता चल पाता, अतः इस कार्य के लिए हर समय प्रस्तुत रहने में हानि क्या है? इसलिए जहाँ तक हो सके अपने कार्य साथ-साथ समेटते चलें.

💡 दूसरे लोग क्या गलत कर रहे हैं यह देख कर दुःखी मत होओ बल्कि यह देखकर दुःखी होओ कि हमने क्या गलत किया और संकल्प लो कि इसकी पुनरावृत्ति न हो.

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई  ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Sunday, 17 September 2017

Apni Prashansa


✔  *अपनी प्रशंसा* ✔

➡ शास्त्र की एक रीति है कि प्रशंसा प्रकट रूप में किसी और की की जाती है, लेकिन वास्तव में होती किसी और की है । जैसे

➡ कंस म् इतना बल था, उतना बल था, इतने हज़ार हाथियों को वश में कर लेता था आदि आदि,

➡ ऐसे परम् बलशाली कंस को श्री कृष्ण ने देखते ही देखते सिंहासन से नीचे पटक दिया और उसको संहार कर दिया ।

➡ यहां कंस की प्रशंसा की गई, कृष्ण के बारे में एक शब्द नहीं बोला, लेकिन अपरोक्ष रूप में ये कृष्ण का ही गुणगान है कि इतने बलशाली कंस को एक झटके में मार दिया तो कृष्ण कितने बलशाली होंगे ।

➡ इसी प्रकार कुछ हम लोग भी करते हैं
आज में बरसाने म् मन्दिर म् दर्शन करके जैसे ही बाहर निकली, एक संत आंख बंद करके भजन कर रहे थे ।

➡ उनके मुख क् तेज, क्या कहने, मेरे साथ 4।5 और भी लोग थे । उन्होंने मुझे इशारा किया, में उनके सामने पहुंची । और भी लोग जाने लगे उन्होंने मना किया, केवल मुझे ही बुलाया ।

➡ दो मिनट वो मुझे देखते रहे और में उनको देखती रही । ओह कितना तेज, भजन का कमाल हो गया । उन्होंने पास बुलाया, मेरे सिर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया ।

➡ ऐसे सन्त दुर्लभ ही होते हैं, यूंकि कृपा आज भी है मुझ पर, अनेक बार बरसाना गयी, वो फिर कभी दिखे ही नहीं ।

➡ यहां भी सन्त की प्रशंसा के बहाने अपनी प्रशंसा य्या अपने आपको कुछ विशेष कृपा पात्र बताने का प्रयास है । ऐसा हम रोज़ करते हैं ।

➡ दासाभास का वैष्णवजन को प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn 

Jai Shri Radhe


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जय श्री राधे

🌳भगवान श्री कृष्ण सत चित आनंद मय हैं, उनमें जो आनंद है उसका मूर्तिमान विग्रह हैं उनकी आह्लादिनी शक्ति श्री राधा ।

🌺आह्लादिनी माने आनंद देने वाली शक्ति । श्री राधा । जिस प्रकार शक्ति और शक्तिमान मैं अभेद होता है उसी प्रकार श्री राधा और श्रीकृष्ण एक ही है ।

🌸आनंदघन विग्रह होने के कारण उन्होंने श्री राधा को मूर्तिमान रूप में प्रकट किया ।

🌹सर्वाधिक आनंद श्रीकृष्ण को यदि कोई प्रदान करती हैं तो वह श्री राधा ही है । परम आनंद प्रदान करने वाली हमारी स्वामिनी श्री राधा जी के प्राकट्य दिवस पर शत शत वंदन नमन प्रणाम और सभी को अनंत बधाई ।

💐जिस प्रकार जिसमें बल रूपी शक्ति होती है उसे बलवान कहते हैं और यदि बल छिन जाए तो वह बलवान नहीं रहता ।

🌻इसी प्रकार जिसके पास धन रूपी शक्ति होती है वही धनवान कहलाता है धन समाप्त होने पर वह धनवान नहीं रह जाता ।

🌷इसी प्रकार श्रीकृष्ण की आनंद रूपी शक्ति हैं श्री राधा ।  राधा का यदि अभाव हो जाए तो हमारा भगवान भी आधा रह जाता है ।

🥀इसलिए ब्रिज में कहा जाता है राधे बिन आधे ।

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम
जय श्री राधे जय निताई

Tuesday, 12 September 2017

Dasabhas Lekhni Part 5



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             दासाभास लेखनी
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💎 भाग 5⃣

1⃣ जिनकी बात को कोई रद्द न कर सके वे नारद.

2⃣ शरी जगन्नाथ स्नानयात्रा वाले दिन श्री जगन्नाथ जू का जन्मोत्सव भी होता है। अतः जल द्वारा उनका अभिषेक का भी भाव है, जो भक्तजन के समक्ष वर्ष में एक बार होता है।

3⃣ रासलीला में शिव नहीं - श्रीमद्भागवत श्री चैतन्य चरितामृत श्री गोपाल चम्पू एवं अन्य किसी भी प्रमाणिक ग्रंथ में श्री शिव जी द्वारा गोपीवेश धारण एवं रासलीला में भाग लेने का प्रसंग दृष्टि में नहीं पड़ा अभी तक। परम विद्वान पूज्य प्रेमदास जी शास्त्री - सूरमा कुंज भी सहमत है। श्री शिव जी की ये लीलाए दन्तकथा के रूप में प्रचलित हैं और इतना ही है कि शिव जी ने गोपी रूप धारण किया एवं श्रीरासलीला के दर्शन किये। वे गोपीयों के साथ सम्मिलित नही हो पाये । फिर भी शोध बाकी है.

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Monday, 11 September 2017

Dasabhas Lekhni Part 4

Dasabhas Lekhni Part 4


🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒
             दासाभास लेखनी
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💎 भाग 4⃣

1⃣ जब जब यह कहा जाता है कि भक्ति अति दुर्लभ है एक कठिन कोर्स है। अभी तो हम पहली दूसरी कक्षा में हैं - इसका आशय निराश करना नहीं, इसका आशय उत्साहित करना है कि हम अच्छा कार्य कर रहे हैं लेकिन बहुत कम है। और आगे बढ़ो। और लगे रहो। धैर्य और उत्साह सहित भजन भक्ति में असंतोष एवं और और और अधिक की कामना सदा बनी रहे .

2⃣ कामगंध हीन स्वाभाविक गोपी प्रेम।
निर्मल उज्ज्वल शुद्ध येन दुग्ध हेम।।
कृष्णेर सहाय, गुरु, बान्धव, प्रेयसी।
गोपिका हयेन प्रिया, शिष्या, सखी, दासी।।
गोपिकाऔं का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम स्वभाव वश ही है। यह स्वसुख की गन्ध से भी रहित है। तपाये हुए शुद्ध सोने की तरह यह निर्मल, उज्ज्वल एवं विशुद्ध है। गोपिकाएं श्रीकृष्ण की रासलीला, निकुंज आदि में सहायता करने से सहायक हैं। प्रेम की शिक्षा देने से वे गुरु हैं। श्रीकृष्ण प्रीति के लिए सब करती हैं तो बांधव हैं। श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण समर्पण से सेवा करती हैं शरीर सहित अतः प्रेयसी हैं। वे सदा कृष्ण आज्ञा पालन करती हैं अतः शिष्या हैं। वे हर दुख सुख की संगिनी हैं अतः सखी हैं। सदा श्रीकृष्ण सेवा में रहने से वे उनकी दासी हैं। गोपीप्रेमामृत ग्रंथ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के पूछने पर यही जवाब दिया - सहायाः गुखः शिष्या भुजिष्या बान्धवाः स्त्रियः। सत्यं वदामि ते पार्थः गोप्यः किं न भवन्ति मे।। मेरी सहायक । गुरु। शिष्या। भोग्या। बान्धव। कान्ता। सत्य तो ये है कि मैं नहीं जानता - कि वे मेरी क्या नहीं हैं। मेरी महिमा। मेरी सेवा। मेरा अभीष्ट। एवं मेरे मन की बात को गोपिया यथारूप में बिना कहे जानती हैं। और उन सब गोपी गणों में उत्तम और प्रमुख हैं - श्रीराधा।
   श्री चैतन्य चरितामृत आदि।4। 173 से 176।

🔔 ।। जय श्री राधे ।।🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

Friday, 8 September 2017

Char Prkar ke Vakta


✔ *चार प्रकार के वक्ता* ✔

1⃣ पहले प्रकार के वक्ता वो होते हैं जो कहीं कथा सुनकर या चलते-फिरते टी वी आदि में सुनकर उसको याद कर लेते हैं और श्रोताओं को सुना देते हैं ।

➡ उस विषय का उन्हें ज्ञान नहीं होता है । कोई तर्क करें या पूछें तो वह कुछ बता नहीं पाते हैं या उलटा सीधा बताते हैं ।

2⃣ दूसरे प्रकार के वक्ता हैं जो श्रवण तो करते ही हैं, सुनते  हैं, साथ ही उस विषय का अध्ययन भी करते हैं ।

ग्रंथों में पढ़ते हैं और समझते हैं । सुन कर, समझ कर फिर श्रोताओं को बताते हैं ।

3⃣ तीसरे प्रकार के वक्ता हैं जो पहले तो श्रवण करते हैं, सुनते हैं । फिर ग्रंथों में पढ़ते हैं उसको समझते हैं । उसके बाद स्वयं उस विषय में आचरण करते हैं । आचरण करके फिर श्रोताओं को बताते हैं ।

➡ जो आचरण करने वाले वक्ता होते हैं, वास्तव में वही आचार्य हैं । न कि परंपरा से उत्पन्न हुए या आचार्य का पुत्र आचार्य । ऐसा कदापि नहीं है ।

➡ इनको महत्तर वक्ता कहा गया है । इनके द्वारा इनके श्री मुख से कथा श्रवण करने पर हृदय में थोड़ा-बहुत प्रभाव पड़ता है ।

4⃣ इस से भी ऊपर एक प्रकार के वक्ता होते हैं जो श्रवण भी करते हैं, ग्रंथों में अध्ययन भी करते हैं, उसका आचरण भी करते हैं । और मन वचन कर्म से इस प्रकार आचरण करते हैं कि जो वह कहते हैं उन्हें उसका अनुभव हो जाता है ।

➡ और वह ताल ठोक कर , कॉन्फिडेंस से किसी बात को कहते हैं । क्योंकि उन्हें उस बात का पक्का पक्का अनुभव होता है,  जिसे हम टेक्निकल भाषा में विज्ञान बोलते हैं ।

➡  ज्ञान के साथ साथ अनुभव हो जाना विज्ञान कहलाता है । विज्ञानी वक्ता के मुख से यदि कथा श्रवण की जाए तो वह कथा हृदय में उतर जाती है ।

➡ और उसका एक एक शब्द जीव का बहुत ही शीघ्र कल्याण कर देता है । यही कारण है कि आज-कल कथाएं तो बहुत हो रही हैं, लेकिन वक्ताओं का स्तर आप स्वयं निर्णय करें कि कौन सा है ।

➡  पैसा लेकर कथा करने वाला कभी भी विज्ञानी नहीं हो सकता । कभी भी आचरण शील नहीं हो सकता । धामकी अंगणित महिमा गाने वाला धाम छोड़कर 320 दिन धाम से बाहर रहता है ।

➡ उसकी बातों का हृदय पर क्या असर होना है जप करो, जप करो, नाम करो, नाम करो,  कहने वाले के हाथ में कभी माला झोली नहीं देखी गई उसके कहने से क्या प्रभाव होगा ।

➡  इसलिए जहां भी भगवत कथा सुनने की बात कही गई है महत्तम या कम से कम महत्तर वैष्णव के मुख से कथा श्रवण करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है ।

➡ महत्तम तो मिलना बहुत ही कठिन है । महत्तम कथा वाचक थे श्री शुकदेव ।

➡ उन्होंने परीक्षित को कथा सुनाई और कथा के  वह दृश्य उपस्थित कर दिए और पूरी की पूरी कथा को परीक्षित को हृदयंगम करा दिया ।

➡ ना कोई भेंट मांगी । ना दक्षिण मांगी । न पंडाल बनाया । न संगीत के वादक । ढोलक थी । और वह कथा जीवन में श्री शुकदेव जी ने एक ही बार कही ।

➡ हर तीसरे दिन उनका टेक्सास में कथा नहीं होती थी । अतः चिंतन करें और सावधान रहें ।

➡ नाभि से जो निकले, ह्रदय से जो निकले, वो श्रेष्ठ कथा । नाभि या ह्रदय से भक्तों का चरित भक्तमाल लिखने वाले नाभादास हो गए । इनका पूर्व का नाम नारायण दास था

➡ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का  प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚

🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚


🖊  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Monday, 4 September 2017

Suksham Sutra Part 50


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     सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 5⃣0⃣

💡 प्रातःकाल एक रोटी गौ के नाम से बनाकर उसे खिलायें, प्रतिदिन एक रुपया गौ के नाम से अलग निकालें और जब सुविधा हो गौशाला में दान दे, समय निकालकर किसी गौशाला में जाकर गौ दर्शन करें, गौ हत्या रोकने में आपका इतना योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं.

💡 कुछ साधक भगवान की भक्ति कैसे करें - यह जानने के लिए गुरु की शरण में जाते हैं परंतु वे गुरु भक्ति में ही इतने लीन हो जाते हैं कि उन्हें भगवद भक्ति की विस्मृति हो जाती है, यहाँ तक कि भगवान को भी भूल जाते हैं और गुरु को ही भगवान समझने की भारी भूल कर बैठते हैं.

💡     भजन और भोजन
एकान्त में करने का शास्त्रीय विधान है, विशेषकर नाम जप का प्रदर्शन करना एक अपराध है, वैष्णव लोग माला झोली में माला जपते हैं तो भी उसे छिपा कर रखते हैं, कहते हैं झोली के बिना यदि माला पर जाप किया जाए तो उससे आसुरी शक्तियों को बल मिलता है .

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई  ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Suksham Sutra Part 51


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     सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 5⃣1⃣

💡 किसी कार्य को कर के यह देखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है कि जैसा हम चाहते थे वैसा वह हुआ भी है कि नहीं.

💡 सब काम का जिम्मा सरकार पर मत थोपो, एक करोड़ खर्च करके कोठी बनवा सकते हो, कार खरीद सकते हो, विदेश घूम सकते हो तो घर और आॅफिस के सामने की दस गज सड़क भी आप बनवाकर उसकी स्वच्छता का जिम्मा ले लो, उदार बनो - आनंद मिलेगा.

💡 जो कार्य कोई और कर सकता है वह आप भी सीख सकते हो और जो आप नहीं सीख सकते उसे कोई और कैसे कर सकता है? ऐसी विचारधारा मन में रखकर जीवन के अन्तिम क्षण तक कर्मशील रहना चाहिए.

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई  ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Imandaar



✔ *ईमानदार* ✔

➡ वो है जो मन वचन कर्म में एक सा है । कहता है कुछ , करता है कुछ, मन मे है कुछ उसे बोलचाल की भाषा मे बेईमान कह सकते हैं ।

➡ ऐसे ही
आर्त भक्त
जिज्ञासु भक्त
अर्थार्थी भक्त

➡ ये तीनो कहे तो भक्त ही जाते है, लेकिन ये विशुद्ध भक्त नही हैं । विशुद्ध भक्त वे हैं जो प्रिया लाल जु के सुख के अतिरिक्त कुछ नहीं सोचते ।

➡ इसी प्रकार एक बार कृष्ण नाम लेने वाला भी वैष्णव तो है ही, लेकिन वो विशुद्ध वैष्णब नहीं, विशेष कर आज के समय मे हम

➡ बात तो भजन भक्ति की करते हैं,
मन मे है प्रतिष्ठा, और
काम करते है धन उपार्जन के

➡ ऐसे हम जिनकी कोरी बातें हैं, भजन की । हमारा ना तो मन है, ना प्रयास है, ऐसे हम

➡ बेईमान वैष्णव की श्रेणी में आते हैं । सूक्ष्म चिंतन है, साथ ही मेरा स्तर बहुत ही प्राथमिक है, इसलिए अभी इतना ही समझ आया, बहुत ऊंची बात अभी समझ नही आती । सन्त सज्जन कृपा से आने लगेगी ।

➡ दासाभास का वैष्णवजन को प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚

🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚



  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया  
LBW - Lives Born Works at vrindabn  

Friday, 1 September 2017

Guru Parampara Anugatya


✔ *गुरु परंपरा आनुगत्य* ✔

➡ वैष्णव उपासना, विशेषकर गौड़ीय वैष्णव उपासना में आनुगत्य का बहुत अधिक महत्व है । बिना किसी परंपरा के, बिना किसी परंपरा के अंतर्गत संत स्वरूप किसी को गुरुदेव को धारण किए बिना आनुगत्य प्राप्त नहीं होता है ।

➡ और आनुगत्य प्राप्त ना होने पर भजन का मार्ग प्रशस्त नहीं होता है ।

➡ विभिन्न प्रकार की उपासनाएँ हैं । विभिन्न संप्रदाय हैं, अनेक उपास्य हैं, साधक को उसमें से एक परंपरा एक उपासना, एक साधन को चुनना पड़ता है ।

➡ ठीक वैसे, जैसे एक विद्यार्थी को यह चुनना पड़ता है कि वह कॉमर्स में इंटर करेगा, साइंस में करेगा, आर्ट्स में करेगा, मैनेजमेंट में करेगा या किसी अन्य में करेगा ।

 ➡ जब एक साधक गुरु धारण करके किसी एक गुरु परंपरा से जुड़ जाता है तब उस को सम्मान तो सभी का करना है । जीव मात्र का करना है ।

➡ अपमान और आलोचना तो वैष्णव को करनी ही नहीं है लेकिन अपनी निष्ठा । अपना अपना साधन, अपना मंत्र अपना नाम, अपना भजन, अपनी परंपरा के अनुसार करना होता है ।

➡ हम जिस परंपरा में हैं । हमारे गुरुदेव का जो आदेश है वह हम पालन करेंगे । दूसरा जिस परंपरा में है उसकी गुरु परंपरा या गुरुदेव का जो आदेश है वह उसका पालन करेगा ।

➡ यदि यह बात सहजता से मस्तिष्क में बैठ जाए तो कभी भी यह प्रश्न नहीं उठता कि फला व्यक्ति यह बात क्यों बोलता है ।

➡ इस्कॉन वाले सभी हरे कृष्ण बोलते हैं, बृजवासी सभी जय श्री राधे बोलते हैं, कुछ जय निताई बोलते हैं, कुछ जय श्री कृष्ण बोलते हैं । कुछ जय श्री राम बोलते हैं ।

➡ यह सहज ही है । ऐसा होना ही चाहिए । यह उनकी गुरु परंपरा का आदेश है ।

➡ इसी प्रकार तिलक भी अनेको प्रकार के हैं । गुरु परंपरा से जो तिलक प्राप्त हुआ है, उसे वही लगाना है और मुझे वही लगाना है जो मेरी गुरु परंपरा से मुझे प्राप्त है ।

➡ अब एक प्रश्न आता है कि जो गुरु परंपरा से बंधे नहीं है वह निगुरे है । वह या तो तिलक लगाते नहीं है । या उन्हें जो समझ में आ गया जो अच्छा लगा वह लगा लेते हैं ।

 ➡ और ऐसे ही कुछ लोग दूसरे की उपासना भजन और नाम आदि की आलोचना करते हैं । उनको लगभग ऐसा माना जाए कि उन्होंने इंटर में अभी प्रवेश ही नहीं लिया है कम पढ़े लिखे लोग हैं ।

➡ वही कहते हैं कि अरे यह तो साइंस की बात करता है । यह कॉमरस की बात करता है ।यह आर्ट की बात करता है  । अज्ञान के कारण इस प्रकार की बात होती है ।

➡ अतः जो भी जो कुछ कर रहा है, वह यदि अपनी परंपरा से कर रहा है तो ठीक ही है । हम भी अपनी परंपरा के अनुसार अपना साधन भजन नाम करें और यदि हम अभी किसी गुरु परंपरा से नहीं जुड़े हैं तो प्रयास करें कि हम जुड़े ।

➡ यदि नहीं जुड़ना चाहते तो कम से कम हम यह समझे कि जो भी जो कर रहा है, अपने गुरुदेव, गुरु परंपरा के आदेश से कर रहा है ।

➡ गुरु परंपरा का आदेश का पालन करना ही आनुगत्य कहलाता है । आनुगत्य के बिना श्री कृष्ण प्रेम या भजन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।

➡ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Wednesday, 30 August 2017

Deeksha


✔ *दीक्षा* ✔

➡ दीक्षा देने और लेने की अनेक विधियां शास्त्र में प्रचलित है ।

➡ गौड़ीय परंपरा के अनुसार पहले नाम दीक्षा दी जाती है, जिसमें हरे कृष्ण महामंत्र साधक को दिया जाता है ।

➡ वह महामंत्र का जप करता है । जप करते करते उसके चि्त्त की शुद्धि और उसके अंदर योग्यता प्राप्त होती है ।

➡ उसके बाद उसको मंत्रदीक्षा जिसमें गोपाल मंत्र दिया जाता है । बिना किसी ऐसे संत या वैष्णव से सुने हुए यदि हम नाम करते भी हैं तो उसको कच्चा चावल कहा गया है ।

➡ कच्चा चावल नहीं खा सकते हैं । 2। 4 ।10 दाने खा लेंगे, लेकिन भरपेट नहीं खाया जाता है जो वैष्णव, जो साधक स्वयं निष्ठापूर्वक महामंत्र करता है । संख्या पूर्वक नाम का आश्रय लेता है वह एक प्रकार से चावल को पकाता है ।

➡ उसके पास जो चावल होता है, जो मंत्र होता है वह पके हुए उबले हुए चावल की तरह से होता है उसके द्वारा कान में महामंत्र को सुनने के बाद जब महामंत्र का जप किया जाता है, उसका फल तीव्र होता है ।

➡ दीक्षा एक परंपरा से जोड़ने का क्रम है । नाम दीक्षा किसी भी वैष्णव संत से ली जा सकती है ।

➡ उसी वैष्णव संत को महामंत्र की नाम दीक्षा देनी चाहिए जो स्वयं नाम में निष्ठा रखता हो ।

➡ फिर उन्हीं संत, वैष्णव से ही मंत्र दीक्षा लेनी चाहिए । फिर भी ऐसा भी होता है । हो सकता है कि नाम दीक्षा आप अपने शिक्षा गुरु से भी ले सकते हैं । किसी भी संत से ले सकते हैं ।

➡ उसके बाद परिस्थिति यदि अनुकूल न हो तो मंत्र दीक्षा किसी अन्य संत वैष्णव से भी ली जा सकती है ।

➡ यह नाम दीक्षा ऐसे ही है जैसे प्री मेडिकल  की कोचिंग होती है । नाम द्वारा एक वैष्णव आपको दीक्षा के योग्य बना देता है ।

➡ चाहे वह फिर स्वयं दीक्षा दे । अथवा कोई वैष्णव अन्य संत दीक्षा दे दे ।

➡ इसलिए यदि आप अपने आप ही नाम महामंत्र कर रहे हैं बहुत अच्छा है । लेकिन किसी नाम निष्ठ महामंत्र सेवी से यदि नाम ले ले तो उसके प्रभाव और उसकी प्रगति में निश्चित ही अंतर महसूस होगा ।

➡ दीक्षा किसी अन्य वैष्णव । संत । गोस्वामी । आचार्य से बाद में ले सकते हैं । अपनी यजमानी या शिष्य संख्या बढ़ाने वाले धन, यश लोलुप तथाकथित संत, आचार्य तुरंत ही बिना जांचे परखे भी दीक्षा देने लगे हैं ।

➡ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Friday, 18 August 2017

Dasabhas Lekhni Part 3

Dasabhas Lekhni Part 3


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           दासाभास लेखनी
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💎 भाग 3⃣

1⃣ होली के साथ साथ प्रिया प्रियतम की झूलन लीला भी निकुंज में नित्य होती है।

2⃣ जिसके पास एक सौ रुपये की पूंजी नहीं, धन नहीं उसका शनि ग्रह बिगाड़ेगा तो क्या बिगाड़ेगा ऐसे ही जो भजन की एबीसीडी जानता नहीं, भजन करता नहीं, भक्ति का परिचय नहीं, केवल निंदा ही निंदा; तो उसका अपराध बिगाड़ेगा भी तो क्या ? भजन हो तो ही तो कुछ बिगड़ेगा। क्या सोचते हैं आप?

3⃣ विरक्ति या वैराग्य केवल बाबा जी या विरक्तों के लिए नहीं है संसारी, गृहस्थी व्यक्ति को भी धीरे धीरे विरक्ति - वैराग्य का अभ्यास करना चाहिये।

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Monday, 14 August 2017

Gopal ka ghar

gopal ka ghar

✔ *गोपाल का घर* ✔


➡ कल एक मैया को एक व्यक्ति व्हीलचेयर पर बैठा कर ले जा रहा था । हम चार पांच वैष्णव धीर समीर में सड़क के किनारे गार्डन में बैठ कर भगवत चर्चा कर रहे थे ।

➡ मैंने उनसे पूछा यह कौन है मैया । मैया के हाथ में माला झोली थी वह जप कर रही थी । उस नौकर को भी मैने देखा और वह रुक गया ।

➡ मय्या ने भी मेरी तरफ देखा वह जानती नहीं थी लेकिन फिर भी प्रणाम जैसा किया ।

➡ मैंने नौकर से पूछा यह कौन है । नौकर ने कहा यह हमारे बॉस की माता जी हैं । मैंने कहा तुम कहां रहते हो । मुझे बॉस ने इनके साथ रहने का आर्डर दिया है । मैं इनके साथ इनके घर में ही रहता हूं ।

➡ और कौन रहता है । एक महिला बहन जी और रहती हैं जो इन मैया को स्नान आदि कराती हैं इनके ठाकुर के लिए भोजन बनाती हैं उनका ध्यान रखती है

➡ मैं इनको रोज व्हीलचेयर में घुमाता हूं और बाजार से सामान वगैरह ले कर आता हूं इनके घर में ही हम दोनों रहते हैं

➡ तुम कहां खाते-पीते हो मैंने उस नौकर से पूछा । जब मैं सेवा इनकी करता हूं तो खाना पीना भी यही इनके घर में ही करता हूं । यहीं रहता हूं  ।

➡ यही सब कुछ करता हूं मेरा भी यही घर है बहुत अच्छा लगा उनसे बात करने के साथ ही एक भावना मन में आई । बस सब कुछ ऐसा ही रहना है । भाव बदलना है । ये घर गोपाल का है

 ➡ हम कौन हैं । कृष्णदास ।

 ➡  मोटी भाषा में कृष्ण के नौकर । जैसे वह मैया का नौकर था । जो व्हीलचेयर चला रहा था

 ➡ हमारा जो घर जिसे हम अपना घर कहते हैं वह वास्तव में श्रीकृष्ण का घर है । कृष्ण जब उस में विराजमान हैं तो घर उनका ही है ।

➡ हम कृष्ण की सेवा के लिए वहां रहते हैं उनकी सेवा ही हमारा मुख्य कार्य है । सेवा के साथ-साथ हम अपना पेट भी भरते रहते हैं । अपने काम भी करते रहते हैं । नहाते भी हैं  । खाते भी है ।

➡ लेकिन मुख्य काम हमारा अपने मालिक की सेवा करना । अपने मालिक को सुख प्रदान करना । नौकर होता ही मालिक के सुख के लिए है ।

➡ हम दास हैं । हम कृष्ण के सामने एक मच्छर जैसे हैं लेकिन दास का स्वाभाविक कर्म स्वामी की सेवा ही होता है ।

➡ यह नहीं सोचना चाहिए कि हम इतने छोटे दास श्रीकृष्ण को कैसे सुख दे सकते हैं । ठीक वैसे ही जैसे वह एक छोटा मोटा सा नौकर अपनी बॉस की मां को सुख दे रहा है ।

➡ ऐसे ही हम भी अपने कार्यो द्वारा कृष्ण को सुख दे सकते हैं । शुरु से ही यदि यह थीम बनाई जाए यह घर कृष्ण का । इसमें कृष्ण विराजमान रहेंगे और इस घर में रह कर हम कृष्ण की सेवा करेंगे

➡ तो सच मानिए घर में जो कृष्ण का रूम होगा वह एक कोने में 1 फुट बााई 2 फुट का नहीं होगा अपितु पूरा एक रूम कृष्ण का होगा और एक छोटा सा रूम हमारे सोने के लिए होगा ।

➡ थीम यहीं से यदि शुरू हो तो सारा काम बनता जायेगा । हम चाहते तो है कृष्ण का सुख । कहते भी हैं अपने को कृष्ण का दास । लेकिन ऐसी हमारे कमरे में ही लगा हुआ है । कृष्ण तो एक कोने में राधे राधे श्याम मिलादे ।

➡ थीम शुरु से बनेगी तो जीवन पूरा कृष्ण को समर्पित रहेगा बाकी के काम साथ-साथ मुख्य काम कृष्ण की सेवा ।

➡ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम


🖊 लेखक

दासाभास डा गिरिराज नांगिया

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Thursday, 10 August 2017

Bhaya Se Bhakti

Bhaya Se Bhakti

​ ✔  *भय से भक्ति*    ✔

▶ भक्ति का जो अर्थ है वह है सेवा । अपने इष्ट की सेवा । श्रीकृष्ण की सेवा ।

▶ कृष्ण भक्ति
देश की सेवा देशभक्ति
पिता की सेवा पिता भक्ति आदि आदि

▶ भक्ति में दो कारणों से हम लोग प्रविष्ट होते हैं पहला कारण तो श्रद्धा और भाव ।

▶ अपने इष्ट के सुख की कामना । कृष्ण को सुख मिले । कृष्ण प्रसन्न हो । इसलिए हम श्री कृष्ण भक्ति में प्रविष्ट होते हैं और हर्दय से तनसे मनसे उस सेवा में जुड़ जाते हैं ।

▶ यही भक्ति वास्तविक भक्ति है

▶ दूसरे प्रकार की भक्ति ।
जिसका कारण भय होता है या जिसका कारण शास्त्र का आदेश होता है ।

▶ शास्त्र का आदेश न पालन करने पर अनिष्ट होगा । पाप लगेगा । नर्क वास होगा । हमें दुख होगा । हमें तकलीफ होगी ।

▶ हम यह काम नहीं करेंगे तो हमारा हानि होगी इस भाव से की गई भक्ति को शास्त्र में वेधी भक्ति या भय भक्ति कहते हैं ।

▶ गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है
भय बिनु प्रीत न होय गोसाई

▶ प्रारंभिक अवस्था में जैसे बालक अपने माता पिता और अध्यापक के भय से पढ़ता है । लिखता है ।

▶ होमवर्क नहीं होगा तो मैडम सीट पर खड़ा कर देंगी । इस भय से वह पढ़ता है । लेकिन धीरे-धीरे धीरे-धीरे जब वह समझदार हो जाता है तो फिर अपने हित के लिए पड़ता है ।

▶ मुझे कुछ बनना है । मुझे जीवन में कुछ प्राप्त करना है । इसलिए वह लग्न से पढ़ता है और अपनी शिक्षा कंप्लीट करता है । इसी प्रकार प्रारंभ में

▶ "गुरु जी कह रहे हैं" शास्त्र कह रहे हैं । दासाभास कह रहा है इसलिए माला में भजन में ग्रंथ अध्ययन में हम लोग लगते हैं ।

▶ यह करते करते एक समय यह आता है कि हमें पता चल जाता है कि हमारा यह जीवन श्री कृष्ण भक्ति के लिए ही प्राप्त हुआ है और कृष्ण को सुख देने का भाव हृदय में उत्पन्न हो जाता है ।

▶ और हम भजन में दृढ़ता पूर्वक प्रविष्ट हो जाते हैं यदि अभी भी हम भय से भक्ति कर रहे हैं तो मन में यह भावना रखनी ही चाहिए के भय की कोई बात नहीं है हमें कृष्ण सुख के लिए यह करना ही है ।

▶ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Shri Krishan Avtaar

Shri Krishan Avtaar

​ ✔  *श्री कृष्ण अवतार?    ✔

▶ श्रीमद्भागवत में कहा गया है
कृष्णस्तु भगवान स्वयं

▶ श्रीकृष्ण ही स्वयं भगवान है । सृष्टि के नियंता हैं। सर्वोपरि शक्ति हैं । अपितु शक्तिमान हैं । परात्पर ब्रम्ह है । सब कारणों के कारण है । और साथ में हमारे आपके इष्ट हैं ।

▶ मदभक्तानाम विनोदार्थं
करोमि विविधा क्रिया

▶ वैष्णव भक्त जनों को आनंद देने के लिए वह विविध प्रकार की लीलाएं करते हैं । उन लीलाओं के संपादन हेतु वह विविध अवतार भी लेते हैं ।

▶ अपने ऊपर के लोक से पृथ्वी लोक पर नीचे  उतरने का भाव ही अवतार है । उन अवतारों में कैसी आनंददायक लीलाएं करते हैं जिनका गुणगान और स्मरण करते हुए हम साधक लोग उनसे सदैव जुड़े रहते हैं और उनके चरणों की सेवा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।

▶ अनेक अवतारों में दो महत्वपूर्ण अवतार है जो हमारे आपके इर्द-गिर्द तो रहते हैं, लेकिन हम उन्हें अवतार की तरह ट्रीट नहीं करते हैं ।

▶ उन दो अवतारों में पहला है अर्चा अवतार ।

▶ अर्थात् वह श्रीविग्रह । जो हमारे घर में विराजमान है, जिसकी हम अर्चना करते हैं । उसे हम विगृह ही मानते हैं । उसमें हमारी यह भावना यदि हो जाए कि साक्षात् श्री कृष्ण अवतार लेकर हमारे घर में विराजमान होकर हमारी सेवा पूजा स्वीकार करके हम पर कृपा करने को यहां विराजमान हैं । यदि यह भावना सिद्ध हो जाए फिर हम यह नहीं पूछेंगे । भइया जी !  हमें कृष्ण के दर्शन कब होंगे । नहीं होंगे क्या ।

▶ अरे भाई कृष्ण के दर्शन तो हम रोज ही करते हैं कृष्ण तो हमारे घर में ही तो विराजमान हैं । फिर कृष्ण दर्शन कब होंगे का प्रश्न समाप्त होना चाहिए ।

▶ दूसरे जो मुख्य अवतार हैं । जो हमारे इर्द-गिर्द हमेशा ही रहते हैं ,  वह है

▶ "नाम रूपे कलि काले कृष्ण अवतार"

▶ यह कृष्ण नाम भी कृष्ण का अवतार ही है जो 24 घंटे हमारी जिव्ह्आ पर नृत्य करता रहता है

▶ कृष्ण नाम को भी कृष्ण का एक अवतार शास्त्र में माना गया है । और कृष्ण नाम के इस अवतार का आसन हमारी जिह्वा पर है ।

▶ वह सिंघासन पर नहीं विराजता । वह भोजन नहीं मांगता । वह शृंगार नहीं मांगता । वह केवल हमारी जिव्या पर नाचना चाहता है ।

▶ यदि यह भाव दृढ़ हो जाए और जब हम नाम प्रारम्भ करें तो कृष्ण से कहे कि "कृष्ण ! अब तुम नाम रूप में आओ और मेरी जिहवा पर नृत्य करो । तो फिर बाकी क्या रह जाएगा ।

▶ हम नाम कर तो रहे हैं । लेकिन आज से विग्रह और श्री नाम में साक्षात श्री कृष्ण की उपस्थिति हमें यदि होने लग जाए तो फिर इसके बाद कुछ पाने को शेष नहीं रहेगा ।

▶ समस्त वैष्णवजन के श्री चरणों में मेरा  प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Sunday, 6 August 2017

Dasabhas Lekhni Part 2

Dasabhas Lekhni Part 2


🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒🖋🗒
       दासाभास लेखनी
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💎 भाग 2⃣

1⃣ निकुंज में प्रियाप्रियतम द्वारा प्रतिदिन होली लीला खेली जाती है होली नित्य है.

2⃣ दुर्वासा ऋषि ने श्रीराधा जू को वरदान दिया था कि तुम अपने हाथ से जो भी भोज्य पदार्थ बनाऔगी उसमें अमृत का अंश आ जायेगा। उस भोजन को करने वाला अतुलित बलशाली हष्ट पुष्ट रहेगा और समस्त रोगों से बचा रहेगा। इसलिए यशोदा की प्रार्थना पर कीर्ति मैया श्रीराधा जू को यशोदा जी के घर प्रतिदिन भेजती हैं और प्रिया जू यशोदा की रसोई में रन्धन करती हैं और यही पदार्थ श्रीकृष्ण रोज आरोगते हैं। प्रतिदिन रसोई बनाकर प्रिया जू वापिस बरसाना आ जाती हैं।

Suksham Sutra Part 49



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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर

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🔮 भाग 4⃣9⃣

💡 एक एम.बी.ए. का शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है, पास करके काॅलेज से विदा करता है, जाऔ बेटा धन कमाऔ और स्वधर्म का पालन करो, एम.बी.ए. पढ़कर अनेको छात्र डी.एम,  सी.एम., कंपनी के चेयरमैन और अन्य शीर्ष स्थानो पर पहुँच जाते हैं, परंतु शिक्षक वहीं का वहीं, क्या इससे शिक्षक का महत्व या सम्मान कम हो जाता है? बिल्कुल नहीं. चाहे कितना भी बड़ा अफसर क्यों न बन जाए शिष्य तो शिष्य ही रहेगा. अपने गुरु का सम्मान करेगा ही, ऐसे ही अध्यात्म-गुरु को चाहिए कि शिष्य को ज्ञान देकर भगवद् भक्ति का मार्ग दिखाये और विदा करे. शिष्य से अपना प्रचार न करवाता रह जाये.

💡 श्रीमद्भागवत 8.19.43 में कहा गया है स्त्रियों को प्रसन्न करने के लिए, हास परिहास में, विवाह योग्य कन्या की प्रशंसा करते समय , अपनी जीविका की रक्षा के लिए, प्राण रक्षा के लिए, गौ और ब्राह्मण के हित के लिए तथा किसी को मृत्यु से बचाने के लिए असत्य भाषण उतना निन्दनीय नहीं है.

💡 शास्त्र कल्पतरु हैं : जो बात सिद्ध करना चाहो एक सीमा तक की जा सकती है. अकेले श्रीगीताजी में ही ऐसे दृष्टान्त हैं जिनसे आप ईश्वर को निराकार और साकार दोनों ही सिद्ध कर सकते हैं. इसलिए ये आवश्यक है कि उस विषय का सम्पूर्ण विवेचन हो. विशेषकर इस बात का कि कौन सी बात - कब कही गयी ? किस परिप्रेक्ष्य में कही गयी ? किससे कही गयी ? और क्यों कही गयी ?

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई ।। 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Svatantrata

Svatantrata

स्वतंत्रता 🚩🚩🚩🚩🚩

🚩स्व माने अपना । तंत्र माने शासन ।
अर्थात अपने ऊपर अपना शासन । जेसे आज 15 अगस्त के दिन भारत से अंग्रेजों का शासन हट कर अपना अर्थात भारतीयों का शासन प्रारम्भ हुआ ।

🚩हमारे भगवान श्री कृष्ण सर्वतंत्र स्वतंत्र हैं । अर्थात उनके ऊपर किसी का भी किसी प्रकार का शासन नहीं है ।

🚩अपितु अपने ऊपर उनका अपना ही शासन है वह जो चाहते हैं कर सकते हैं । यहां तक कि वह कान से खा सकते हैं और मुख  से सुन सकते हैं । उनके ऊपर कोई भी बंधन, नियम, सीमा नहीं है वे परम स्वतंत्र हैं ।

🚩हम जीव उन्ही का ही अंश है । हम परम स्वतंत्र नहीं है । हम अणु स्वतंत्र हैं ।

🚩कुछ ऐसा समझें कि वे अनलिमिटेड स्वतंत्र हैं और हमलोग लिमिटेड स्वतंत्र हैं । हम स्वतंत्र अवश्य हैं ।

🚩यदि हम स्वतंत्र नहीं होते तो हमें कुछ आदेश पालन करने के लिए और कुछ आदेश न करने के लिए नहीं दी जाते ।

🚩जैसे कि पशु । पक्षिओं के पालन करने के लिए पशुओं को कोई आज्ञा नहीं दी जाती ।

Thursday, 3 August 2017

Bhakti Kya Hai

Bhakti Kya Hai

​ ✔  *भक्ति क्या है*    ✔

▶ भगवान श्रीकृष्ण में वैसे तो अनंत शक्तियां हैं, लेकिन उनकी समस्त शक्तियां इन तीन शक्तियों के अंतर्गत है ।

▶ पहली है आह्लादिनी शक्ति अर्थात श्री राधाजु, अर्थात आनंद देने वाली शक्ति ।

▶ भगवान का स्वरूप सच्चिदानंद है । उसमें सत चित और आनंद इन तीन शक्तियों में से आह्लादिनी शक्ति आनंद का अंश है ।

Dasabhas Lekhni Part 1

 दासाभास लेखनी

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        दासाभास लेखनी
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💎 भाग 1⃣

1⃣ रुचि एवं आसक्ति का अंतर -   रुचि भजन में होती है और आसक्ति कृष्ण में .

2⃣ रोना सीखना है प्रभु के लिए - कथा गाना नहीं सिखाती रोना सिखाती है, कबिरा हसना बन्द कर रोने से कर प्रीत .

3⃣ प्राय सभी स्तव स्तोत्रों में फल श्रुति होती है कि इसके पाठ से पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन फिर भी व्यक्ति कष्ट क्यों भोगता है। इसमें भाव ये है कि हमारे अनन्तानन्त पाप हैं। अवश्य ही पाठ-स्तव आदि से कुछ हमारे पाप कट ही जाते हैं फिर भी कुछ रह जाते हैं, हमें उन्हें भोगना पड़ता है. पाठ आदि न करें तो इतने पाप हो जाय, भोगने पड़े कि हद हो जाय।

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Tuesday, 1 August 2017

Aar Ya Par


​ ✔  *आर या पार*    ✔

▶ एक तो यह आर पार वाली शैली होती है । और दूसरी शैली होती है संतुलन ।

▶ कहीं-कहीं हमें आर या पार वाली शैली को अपनाना पड़ता है और कहीं कहीं संतुलन वाली शैली को अपनाना पड़ता है ।

▶ लेकिन हम लोग संतुलन वाली जगह आर या पार कर देते हैं और आर या पार वाली जगह संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं ।

▶ घर हो ग्रहस्थ हो और भजन हो इन दोनों में संतुलन बनाना है । अपने सांसारिक परिस्थिति के अनुसार संसार का समय और भजन के समय को निश्चित करना है ।

▶ दासाभास जैसा संसार के दायित्वों से मुक्त व्यक्ति को भजन में अधिक समय देना है । संसार में कम समय देना है ।

▶ अभी सांसारिक दायित्व जिन पर हैं उन्हें संसार में अधिक समय देना है, भजन में कम समय देना है । धीरे धीरे बढाना है ।

▶ ऐसे ही सोशल मीडिया पर हमें एक सीमा में समय देना चाहिए । यदि हम अति करते हैं और दिनभर सोशल मीडिया पर लगे रहते हैं ।

▶ तो ऐसा लंबे समय तक नहीं चलता है । एक दिन ऐसा आता है कि हम एकदम छोड़ देते हैं । यहां भी संतुलन बैठाने की जरूरत है ।

▶ सारी परिस्थितियों को देखते हुए सोशल मीडिया पर यदि हम संतुलन से समय देंगे तो हमें ना तो इसमें डूबने की जरूरत पड़ेगी और ना इस से भागने की जरुरत पड़ेगी यहां संतुलन बहुत आवश्यक है ।

▶ और यदि कुछ अन्य व्यस्तताएं हैं तो सोशल मीडिया को एक-दो दिन के लिए इग्नोर भी किया जा सकता है और कम समय देकर इसका आनंद भी लिया जा सकता है ।

▶ अतिवादिता कहीं भी अच्छी नहीं । गीता में भी कहा गया है कि

▶ ना अधिक खाने वाला और
ना अधिक भूखा रहने वाला
ना आलसी और
न अधिक परिश्रमी  ।

▶ अपितु जो संयत है वही लक्ष्य या भगवद्भक्ति को प्राप्त कर सकता है ।

▶ अतिवादी कभी भी किसी भी उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता है । यदि कदाचित वह कर भी लेता है तो उसकी जो उसको कीमत चुकानी पड़ती है आंख खुलने पर बड़ा पछताता है ।

▶ इसलिए हम चेक करें जहां भी हम अतिवादी हैं उसको कम करें और संसार से, भजन से, सोशल मीडिया से, मित्रों से लंबी लंबी बात करने से अथवा जो भी हो हम अपने बारे में स्वयं जानते हैं । उसमे सन्तुलन लाएं ।

▶ केवल दूसरा व्यक्ति या दासाभास आप को इंगित कर सकता है । आप स्वयं अपने आप को चेक करें और जहां भी

▶ अतिवादिता है या अभाव है
उसको दूर करें ।
संतुलित रहें । मस्त रहें

▶ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Monday, 31 July 2017

Kripa Kese Ho

Kripa Kese Ho

​ ✔  *कृपा कैसे हो*    ✔

▶ कृपा बहुत ही सामान्य रुप में प्रयोग होने वाला शब्द है । लेकिन यह एक तत्व है ।

▶ कृपा का अर्थ साक्षात राधा रानी । कृपा सर्वतंत्र स्वतंत्र है । यहां तक कि भगवान श्री कृष्ण के वश में भी नहीं है ।

▶ भगवान का मन तो करता है कि मैं अपने अंश स्वरुप सब जीवो सहित दासाभास पर थोक में कृपा कर दूं । लेकिन कृपा भगवान के वश में नहीं है । कृपा सर्वतंत्र स्वतंत्र है ।

▶ जब जीव में भजन साधन द्वारा की गई योग्यता को देखती है तो स्वत उदित होती है ।  कृपा के बिना कृष्ण को पाना , कृष्ण चरण सेवा को पाना असंभव है ।

▶ इसीलिए राधा दास्य या राधा दासी का स्वरूप निर्धारित किया गया कि राधा रानी को प्रसन्न करो ।

▶ राधा रानी बातों से  प्रसन्न नहीं होती है । राधा रानी को प्रसन्न करने के लिए जो विधान है, जो नियम है, जो भजन है, जो आचरण है, वह आप सहित दासाभास को करना ही होगा ।

▶ संत, सदगुरु, वैष्णव के हाथ में तो कृपा बिल्कुल ही नहीं है । क्योंकि कौन गुरु चाहता है कि मेरे सारे चेले एक से वैष्णव न हों ?

▶ गुरु के हाथ में होती तो वह भी रेवड़ी की तरह सबको कृपा बांट देते । गुरुदेव के हाथ में भी नहीं है । जब कृष्ण के हाथ में नहीं तो गुरु संत वैष्णव के हाथ में कहां से आई ।

▶ और राधा रानी के चरण पर पलौटते हुए श्री कृष्ण सदा ही रहते हैं यह हम सब जानते ही हैं ।

▶ बहुत से वैष्णव बात बात में यह कहते हैं ।दासाभास ! आपकी कृपा हो जाए या आप मेरे सिर पर हाथ रख दो आप मुझ पर कृपा करो । संत मुझ पर कृपा करें, धाम मुझ पर कृपा करें, वैष्णव मुझ पर कृपा करें ।

▶ अरे भाई वह सब तो तैयार बैठे हैं । तुम वह योग्यता पैदा करो । जिस दिन दासाभास में वह योग्यता पैदा हो जाएगी उस दिन कृपा बरस जाएगी ।

▶ इस सिद्धांत को यदि हम ध्यान में रखेंगे तो भ्रम नहीं होगा । यह वैसे ही है जैसे पांचवी क्लास पास बच्चा यह कहे कि मुझे इंटर के पेपर में बैठवा दो ।

▶ इंटर के पेपर में बैठने के लिए इंटर की पढ़ाई कर के वहां तक पहुंचना होगा फिर किसी की ताकत नहीं कि आप को इंटर की परीक्षाओं में रोक सके ।

▶ और यदि फॉर्मेलिटी पूरी नहीं है तो अनेकों को रोकते हुए भी देखा है ।

▶ साथ ही कृपा और करुणा के अपवाद भी हैं अकारण कृपा भी होती है । लेकिन नियम यही है कि कृपा की योग्यता साधन और भजन द्वारा प्राप्त करिए ।

▶ कृपा अपने आप ही आएगी । कृपा मांगिए मत, कृपा की योग्यता पैदा करिए । इंग्लिश मैं कहते हैं न

▶ फर्स्ट डिज़र्व देन डिजायर

▶ इसलिए भ्रम से निकलिए और साधन-भजन में लग जाइये । भजन भजन भजन ।

▶ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम!

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
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 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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