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दासाभास लेखनी
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💎 भाग 7⃣
1⃣ ।। सब एक ही बात नहीं है ।।
अपनी साधना में जो सिद्ध हो चुके हैं ऐसे शांतरस के साधक - सिद्ध लोक को
दास्य भाव के साधक - वैकुण्ठ लोक को
शुद्ध सख्य- वात्सल्य- मधुर भाव के साधक गोलोक में जाते हैं। उपासना एवं भाव से अलग-अलग लोकों की प्राप्ति होती है.
2⃣ आम आदमी सांप को मार सकता नहीं। सपेरा मार सकता है, लेकिन मारता नहीं। उसके विषदन्त निकाल कर खेलता है ऐसे ही कामना वासना को मारो नहीं, उनमें से संसार-विषय विष निकाल कर उन्हें श्रीकृष्ण सेवा में लगा कर खेलो और आनंदित रहो.
3⃣ बन्दूक - जिस प्रकार एक गोली अपनी बन्दूक द्वारा प्रयोग करने पर ही काम करती है। उसी प्रकार मंत्र या भजन गुरुदेव द्वारा प्राप्त होने पर, उनके आनुगत्य में करने पर ही फल देता है। यदि भजन शुरू हो भी जाए तो पहले गुरुदेव मिलेंगे। फिर भजन का फल श्रीकृष्ण-सेवा मिलेगी वैसे ही जैसे यदि गोली मिल जाय तो बन्दूक खरीदनी पड़ेगी और बन्दूक मिल जाय तो गोली भी चाहिये।
🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई ।। 🔔
🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn
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