Wednesday, 29 November 2017

Hanji hanji kahna Isi gaanv me rahna

Hanji hanji kahna Isi gaanv me rahna

हांजी हांजी कहना
इसी गांव में रहना

भक्ति या भजन का प्रथम लक्षण है अपने आप में दीनता का भाव आ जाना ।

इसका एक कारण भी है ।
भक्ति क्या है ।
भक्ति है श्रीकृष्ण चरणों की सेवा,
वैष्णवों की सेवा
तुलसी की सेवा
गुरुदेव की सेवा
ग्रंथ की सेवा
अर्थात सेवा सेवा सेवा सेवा

जब भक्तों का मुख्य कार्य सेवा हो गया तो भक्तों का स्वरूप क्या निकल कर आया । एक सेवक का ।। कहा भी है कि जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है ।

और जब हम एक सेवक हैं, हम एक नौकर हैं, हम एक दास हैं तो फिर अकड़ किस बात की । नौकर या दास या सेवक तो दीन ही होता है

हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना । सेवक में अभिमान कैसा,  सेवक का गुमान कैसा, सेवक की श्रेष्ठता कैसी, वह तो सभी का सेवक ही है सभी की सेवा ही करनी है ।।

यह भाव सदैव एक वैष्णव को पुष्ट करना चाहिए यदि यह भाव दृढ़ता से पुष्ट हो जाएगा तो आप सच मानिए भक्ति का जो प्रथम लक्षण वैष्णवोंमें आता है वह आता है दैन्य । वह आ जाएगा ।

भक्ति का प्रथम लक्षण जो वातावरण में आता है वह आता है क्लेषघ्नी । समस्त क्लेशों को नष्ट कर देती है सच्ची भक्ति ।

आजकल उल्टा हो रहा है भक्ति प्रारंभ हुई और घर में कलेश प्रारंभ हुए । यदि ऐसा है तो हम भक्ति या भजन नहीं कर रहे हैं । हम भक्ति के नाम पर नाटक, अहंकार पोषण एवं अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर रहे हैं ।

कर के देखिए अंतर महसूस होगा ।
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

धन्यवाद!!
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