श्री कृष्ण का आविर्भाव
अर्चा विग्रह
संत सद्गुरु
नाम
धाम
श्रीमद्भागवत
इन पांच वस्तुओं में भगवान श्रीकृष्ण का सदा आविर्भाव रहता है अथवा यूं कहें कि यह पांचों श्री कृष्ण का ही स्वरुप है ।
पहला है अर्चा विग्रह
अर्थात वह विग्रह, जो आपके घर के मंदिर में विराजमान हैं और आप उसका अर्चनं वंदनं पूजन सेवा आदि करते हैं । वह कोई शो पीस नहीं । सदा ये भाव रहे कि कृष्ण यहाँ विराजमान होकर हमारी सेवा स्वीकार कर रहे हैं ।
दूसरा है संत सदगुरु
विशेषकर सद्गुरु । सद्गुरु वह होते हैं जो शिष्य को सिर पर हाथ रखकर आत्मसात कर लेते हैं अर्थात शिष्य की भजन क्रिया आदि से प्रसन्न होकर शिष्य के प्रति उनमें आत्मीयता हो जाती है । वह सद्गुरु होते हैं । अन्यथा गुरु होते हैं ।
तीसरा है नाम
श्रीहरिनाम, श्री कृष्ण नाम, श्री राम नाम। भगवान का नाम भी साक्षात श्रीकृष्ण ही है । साक्षात भगवान ही है । नाम में भी सदा श्री कृष्ण का आविर्भाव रहता ही है अपितु नाम को कृष्ण से भी बड़ा कहा गया है ।
चौथा है धाम
कृष्ण के लिए श्री वृंदावन धाम । राम के लिए श्री अयोध्या धाम । धाम भी श्री कृष्ण का ही स्वरुप है । इसलिए शास्त्र कहते हैं कि यदि धाम वास प्राप्त हो गया तो समझो श्रीकृष्ण मिल गए ।
धाम में भी कृष्ण का आविर्भाव है । धाम भी साक्षात श्री कृष्ण का ही स्वरुप है । यदि धाम को छोड़कर हम बार बार भाग रहे हैं तो धाम प्राप्त होने पर भी भागना इससे बड़ी कृष्ण उपेक्षा नही हो सकती ।
पांचवां है श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न
श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न में उपरोक्त चारों के विषय में चर्चा की गई है । अर्चा विग्रह, संत सद्गुरु, नाम, और धाम । इसीलिए श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न में भी सदैव श्रीकृष्ण का आविर्भाव रहता है ।
यहां मैं कहता चलूँ श्रीमदभगवदगीता में कृष्ण का आविर्भाव शास्त्र में नहीं कहा गया है । क्योंकि उसमें इन चारों की चर्चा नहीं है ।
जितने भी ग्रन्थ है वह प्रभु के श्री विग्रह ही है लेकिन श्रीमद् भागवत साक्षात श्रीकृष्ण ही है अतः जब भी हम इन पांचों का सेवन करें तब मन में यह दृढ़ विश्वास रहे कि हम श्रीकृष्ण का सेवन कर रहे हैं ।
समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम
जय श्री राधे जय निताई
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