Thursday, 10 August 2017

Bhaya Se Bhakti

Bhaya Se Bhakti

​ ✔  *भय से भक्ति*    ✔

▶ भक्ति का जो अर्थ है वह है सेवा । अपने इष्ट की सेवा । श्रीकृष्ण की सेवा ।

▶ कृष्ण भक्ति
देश की सेवा देशभक्ति
पिता की सेवा पिता भक्ति आदि आदि

▶ भक्ति में दो कारणों से हम लोग प्रविष्ट होते हैं पहला कारण तो श्रद्धा और भाव ।

▶ अपने इष्ट के सुख की कामना । कृष्ण को सुख मिले । कृष्ण प्रसन्न हो । इसलिए हम श्री कृष्ण भक्ति में प्रविष्ट होते हैं और हर्दय से तनसे मनसे उस सेवा में जुड़ जाते हैं ।

▶ यही भक्ति वास्तविक भक्ति है

▶ दूसरे प्रकार की भक्ति ।
जिसका कारण भय होता है या जिसका कारण शास्त्र का आदेश होता है ।

▶ शास्त्र का आदेश न पालन करने पर अनिष्ट होगा । पाप लगेगा । नर्क वास होगा । हमें दुख होगा । हमें तकलीफ होगी ।

▶ हम यह काम नहीं करेंगे तो हमारा हानि होगी इस भाव से की गई भक्ति को शास्त्र में वेधी भक्ति या भय भक्ति कहते हैं ।

▶ गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है
भय बिनु प्रीत न होय गोसाई

▶ प्रारंभिक अवस्था में जैसे बालक अपने माता पिता और अध्यापक के भय से पढ़ता है । लिखता है ।

▶ होमवर्क नहीं होगा तो मैडम सीट पर खड़ा कर देंगी । इस भय से वह पढ़ता है । लेकिन धीरे-धीरे धीरे-धीरे जब वह समझदार हो जाता है तो फिर अपने हित के लिए पड़ता है ।

▶ मुझे कुछ बनना है । मुझे जीवन में कुछ प्राप्त करना है । इसलिए वह लग्न से पढ़ता है और अपनी शिक्षा कंप्लीट करता है । इसी प्रकार प्रारंभ में

▶ "गुरु जी कह रहे हैं" शास्त्र कह रहे हैं । दासाभास कह रहा है इसलिए माला में भजन में ग्रंथ अध्ययन में हम लोग लगते हैं ।

▶ यह करते करते एक समय यह आता है कि हमें पता चल जाता है कि हमारा यह जीवन श्री कृष्ण भक्ति के लिए ही प्राप्त हुआ है और कृष्ण को सुख देने का भाव हृदय में उत्पन्न हो जाता है ।

▶ और हम भजन में दृढ़ता पूर्वक प्रविष्ट हो जाते हैं यदि अभी भी हम भय से भक्ति कर रहे हैं तो मन में यह भावना रखनी ही चाहिए के भय की कोई बात नहीं है हमें कृष्ण सुख के लिए यह करना ही है ।

▶ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindab

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