✔ *कृपा * ✔
▶ एक अध्यापक कभी नहीं चाहता कि उसके क्लास का एक भी बालक फेल हो, अपितु वह यह चाहता है की सभी अधिकाधिक नंबर प्राप्त करें ।
▶ लेकिन उसके चाहने से कुछ नहीं होता विद्यार्थियों का परिश्रम ही उसका कारण बनता है ।
▶ जो जितना परिश्रम करता है, जो जितने लगन से पड़ता है, उसको उसकी परिश्रम लग्न एवं योग्यता के अनुसार अंक प्राप्त होते हैं ।
▶ इसी प्रकार कोई भी गुरु देव नहीं चाहते कि मेरा शिष्य भगवत भजन में असफल हो । वे तो यही चाहते हैं कि सभी परम भक्त बन जाए ।
▶ लेकिन ऐसा नहीं होता । जो वैष्णव, जो शिष्य जितना भजन में इनपुट देते हैं वह उसी स्तर के भक्त बनते हैं ।
▶ अतः कृपा प्राप्ति के लिए आवश्यक है परिश्रम हम जितना परिश्रम करते हैं जितना इनपुट देते हैं, उतनी ही कृपा हमें प्राप्त होती है ।
▶ कृपा ना तो गुरुदेव के वश में है । ना भगवान के ही वश में है । कृपा का साक्षात स्वरुप है श्री राधा रानी ।
▶ और श्री राधा रानी के चरणों की सेवा करते रहते हैं श्रीशाम सुंदर । अतः हम अधिक से अधिक साधन करते हुए भजन में लगे ।
▶ जितने अधिक लगेंगे उतनी अधिक कृपा होगी और जितनी अधिक कृपा होगी उतने ही शीघ्र हम अपने जीवन के उद्देश्य प्रिया प्रीतम के चरणों की सेवा को प्राप्त कर लेंगे ।
▶ अतः सावधान कृपा यदि नहीं हो रही है तो कमी गुरुदेव या भगवान की नहीं हमारे ही प्रयास और परिश्रम में कमी है । और प्रयास करें, और परिश्रम करें । कृपा तो प्राप्त होनी ही है होगी ही
समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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