✔ *कृपा कैसे हो* ✔
▶ कृपा बहुत ही सामान्य रुप में प्रयोग होने वाला शब्द है । लेकिन यह एक तत्व है ।
▶ कृपा का अर्थ साक्षात राधा रानी । कृपा सर्वतंत्र स्वतंत्र है । यहां तक कि भगवान श्री कृष्ण के वश में भी नहीं है ।
▶ भगवान का मन तो करता है कि मैं अपने अंश स्वरुप सब जीवो सहित दासाभास पर थोक में कृपा कर दूं । लेकिन कृपा भगवान के वश में नहीं है । कृपा सर्वतंत्र स्वतंत्र है ।
▶ जब जीव में भजन साधन द्वारा की गई योग्यता को देखती है तो स्वत उदित होती है । कृपा के बिना कृष्ण को पाना , कृष्ण चरण सेवा को पाना असंभव है ।
▶ इसीलिए राधा दास्य या राधा दासी का स्वरूप निर्धारित किया गया कि राधा रानी को प्रसन्न करो ।
▶ राधा रानी बातों से प्रसन्न नहीं होती है । राधा रानी को प्रसन्न करने के लिए जो विधान है, जो नियम है, जो भजन है, जो आचरण है, वह आप सहित दासाभास को करना ही होगा ।
▶ संत, सदगुरु, वैष्णव के हाथ में तो कृपा बिल्कुल ही नहीं है । क्योंकि कौन गुरु चाहता है कि मेरे सारे चेले एक से वैष्णव न हों ?
▶ गुरु के हाथ में होती तो वह भी रेवड़ी की तरह सबको कृपा बांट देते । गुरुदेव के हाथ में भी नहीं है । जब कृष्ण के हाथ में नहीं तो गुरु संत वैष्णव के हाथ में कहां से आई ।
▶ और राधा रानी के चरण पर पलौटते हुए श्री कृष्ण सदा ही रहते हैं यह हम सब जानते ही हैं ।
▶ बहुत से वैष्णव बात बात में यह कहते हैं ।दासाभास ! आपकी कृपा हो जाए या आप मेरे सिर पर हाथ रख दो आप मुझ पर कृपा करो । संत मुझ पर कृपा करें, धाम मुझ पर कृपा करें, वैष्णव मुझ पर कृपा करें ।
▶ अरे भाई वह सब तो तैयार बैठे हैं । तुम वह योग्यता पैदा करो । जिस दिन दासाभास में वह योग्यता पैदा हो जाएगी उस दिन कृपा बरस जाएगी ।
▶ इस सिद्धांत को यदि हम ध्यान में रखेंगे तो भ्रम नहीं होगा । यह वैसे ही है जैसे पांचवी क्लास पास बच्चा यह कहे कि मुझे इंटर के पेपर में बैठवा दो ।
▶ इंटर के पेपर में बैठने के लिए इंटर की पढ़ाई कर के वहां तक पहुंचना होगा फिर किसी की ताकत नहीं कि आप को इंटर की परीक्षाओं में रोक सके ।
▶ और यदि फॉर्मेलिटी पूरी नहीं है तो अनेकों को रोकते हुए भी देखा है ।
▶ साथ ही कृपा और करुणा के अपवाद भी हैं अकारण कृपा भी होती है । लेकिन नियम यही है कि कृपा की योग्यता साधन और भजन द्वारा प्राप्त करिए ।
▶ कृपा अपने आप ही आएगी । कृपा मांगिए मत, कृपा की योग्यता पैदा करिए । इंग्लिश मैं कहते हैं न
▶ फर्स्ट डिज़र्व देन डिजायर
▶ इसलिए भ्रम से निकलिए और साधन-भजन में लग जाइये । भजन भजन भजन ।
▶ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम!
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
No comments:
Post a Comment