✔ *अपने से श्रेष्ठ या कनिष्ठ* ✔
▶ शास्त्र म् कहा गया है कि सदा ही
1। अपने से ऊँचे स्तर के वैष्णव का संग करो । परिणाम स्वरूप आप भी ऊँचे की तरफ बढ़ोगे
2। जो स्निग्ध हो । उसका संग करो । वो चिड़चिड़ायेगा नही दासाभास की तरह, अपितु प्रेम से आपको समझायेगा
3 । सजातीय अर्थात जो उपासना, जो सम्प्रदाय, जिस भाव के आप उपासक हो, वह भी उसी भाव आदि का हो, अन्यथा विवाद हो सकता है
▶ ये तो है भजन की बात । ऐसा करने से भजन बढ़ेगा ही । और भजन ही बढ़ाना है , लौकिक विषय को बढ़ाना नही, अपितु छोड़ना है । निकलना है इस जाल से ।
▶ इसलिए लौकिक जगत में सदा ही अपने से छोटे स्तर के लोगों के साथ रहो । इससे सदा संतुष्टि बनी रहेगी ।
▶ यदि अपने से बड़े लोगों के साथ उठेंगे बैठेंगे तो उनकी समृद्धि, उनके स्तर, उनकी विलासिता को देखकर हमारे मन में भी वैसा बनने की इच्छा जागृत होगी ।
▶और कहीं ना कहीं हम भी वैसा बनने का प्रयास करेंगे । यदि वैसा बन गए तो इस जंजाल में फंसते जाएंगे और भजन छूटता जाएगा ।
▶ यदि नहीं बन पाए तो मन में खिन्नता रहेगी और एन केन प्रकारेण वैसा बनने का संकल्प मन में रहेगा जो मन को चंचल करेगा ।
▶अतः श्रेष्ठ भजन आनंदी का संग करने से भजन बढ़ेगा और श्रेष्ठ लॉकिंक सुख सुविधा वाले का संग करने से लौकिक सुख सुविधा बढ़ेगी ।
▶लेकिन एक वैष्णव यह जानता है कि लौकिक सुख सुविधाओं में आनंद नहीं है ।क्लेश ही क्लेश है । यह छोड़नी ही है । और इनको छोड़ने पर जोर नहीं देते हुए, भजन को पकड़ने पर जोर देना है ।
▶जैसे-जैसे भजन बढ़ता जाएगा यह चीजें छूटती जाएगी । अतः एक वैष्णव के लिए संग श्रेष्ठ वैष्णव का और लौकिक संग अपने से छोटे स्तर वाले व्यक्ति का ।
▶इससे मन भागेगा नहीं और संतुष्ट रहेगा ।
परिणाम स्वरुप भजन में लगे रहेंगे हम और आप ।
▶समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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