✔ *चार प्रकार के वक्ता* ✔
1⃣ पहले प्रकार के वक्ता वो होते हैं जो कहीं कथा सुनकर या चलते-फिरते टी वी आदि में सुनकर उसको याद कर लेते हैं और श्रोताओं को सुना देते हैं ।
➡ उस विषय का उन्हें ज्ञान नहीं होता है । कोई तर्क करें या पूछें तो वह कुछ बता नहीं पाते हैं या उलटा सीधा बताते हैं ।
2⃣ दूसरे प्रकार के वक्ता हैं जो श्रवण तो करते ही हैं, सुनते हैं, साथ ही उस विषय का अध्ययन भी करते हैं ।
ग्रंथों में पढ़ते हैं और समझते हैं । सुन कर, समझ कर फिर श्रोताओं को बताते हैं ।
3⃣ तीसरे प्रकार के वक्ता हैं जो पहले तो श्रवण करते हैं, सुनते हैं । फिर ग्रंथों में पढ़ते हैं उसको समझते हैं । उसके बाद स्वयं उस विषय में आचरण करते हैं । आचरण करके फिर श्रोताओं को बताते हैं ।
➡ जो आचरण करने वाले वक्ता होते हैं, वास्तव में वही आचार्य हैं । न कि परंपरा से उत्पन्न हुए या आचार्य का पुत्र आचार्य । ऐसा कदापि नहीं है ।
➡ इनको महत्तर वक्ता कहा गया है । इनके द्वारा इनके श्री मुख से कथा श्रवण करने पर हृदय में थोड़ा-बहुत प्रभाव पड़ता है ।
4⃣ इस से भी ऊपर एक प्रकार के वक्ता होते हैं जो श्रवण भी करते हैं, ग्रंथों में अध्ययन भी करते हैं, उसका आचरण भी करते हैं । और मन वचन कर्म से इस प्रकार आचरण करते हैं कि जो वह कहते हैं उन्हें उसका अनुभव हो जाता है ।
➡ और वह ताल ठोक कर , कॉन्फिडेंस से किसी बात को कहते हैं । क्योंकि उन्हें उस बात का पक्का पक्का अनुभव होता है, जिसे हम टेक्निकल भाषा में विज्ञान बोलते हैं ।
➡ ज्ञान के साथ साथ अनुभव हो जाना विज्ञान कहलाता है । विज्ञानी वक्ता के मुख से यदि कथा श्रवण की जाए तो वह कथा हृदय में उतर जाती है ।
➡ और उसका एक एक शब्द जीव का बहुत ही शीघ्र कल्याण कर देता है । यही कारण है कि आज-कल कथाएं तो बहुत हो रही हैं, लेकिन वक्ताओं का स्तर आप स्वयं निर्णय करें कि कौन सा है ।
➡ पैसा लेकर कथा करने वाला कभी भी विज्ञानी नहीं हो सकता । कभी भी आचरण शील नहीं हो सकता । धामकी अंगणित महिमा गाने वाला धाम छोड़कर 320 दिन धाम से बाहर रहता है ।
➡ उसकी बातों का हृदय पर क्या असर होना है जप करो, जप करो, नाम करो, नाम करो, कहने वाले के हाथ में कभी माला झोली नहीं देखी गई उसके कहने से क्या प्रभाव होगा ।
➡ इसलिए जहां भी भगवत कथा सुनने की बात कही गई है महत्तम या कम से कम महत्तर वैष्णव के मुख से कथा श्रवण करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है ।
➡ महत्तम तो मिलना बहुत ही कठिन है । महत्तम कथा वाचक थे श्री शुकदेव ।
➡ उन्होंने परीक्षित को कथा सुनाई और कथा के वह दृश्य उपस्थित कर दिए और पूरी की पूरी कथा को परीक्षित को हृदयंगम करा दिया ।
➡ ना कोई भेंट मांगी । ना दक्षिण मांगी । न पंडाल बनाया । न संगीत के वादक । ढोलक थी । और वह कथा जीवन में श्री शुकदेव जी ने एक ही बार कही ।
➡ हर तीसरे दिन उनका टेक्सास में कथा नहीं होती थी । अतः चिंतन करें और सावधान रहें ।
➡ नाभि से जो निकले, ह्रदय से जो निकले, वो श्रेष्ठ कथा । नाभि या ह्रदय से भक्तों का चरित भक्तमाल लिखने वाले नाभादास हो गए । इनका पूर्व का नाम नारायण दास था
➡ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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