Tuesday, 1 August 2017

Aar Ya Par


​ ✔  *आर या पार*    ✔

▶ एक तो यह आर पार वाली शैली होती है । और दूसरी शैली होती है संतुलन ।

▶ कहीं-कहीं हमें आर या पार वाली शैली को अपनाना पड़ता है और कहीं कहीं संतुलन वाली शैली को अपनाना पड़ता है ।

▶ लेकिन हम लोग संतुलन वाली जगह आर या पार कर देते हैं और आर या पार वाली जगह संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं ।

▶ घर हो ग्रहस्थ हो और भजन हो इन दोनों में संतुलन बनाना है । अपने सांसारिक परिस्थिति के अनुसार संसार का समय और भजन के समय को निश्चित करना है ।

▶ दासाभास जैसा संसार के दायित्वों से मुक्त व्यक्ति को भजन में अधिक समय देना है । संसार में कम समय देना है ।

▶ अभी सांसारिक दायित्व जिन पर हैं उन्हें संसार में अधिक समय देना है, भजन में कम समय देना है । धीरे धीरे बढाना है ।

▶ ऐसे ही सोशल मीडिया पर हमें एक सीमा में समय देना चाहिए । यदि हम अति करते हैं और दिनभर सोशल मीडिया पर लगे रहते हैं ।

▶ तो ऐसा लंबे समय तक नहीं चलता है । एक दिन ऐसा आता है कि हम एकदम छोड़ देते हैं । यहां भी संतुलन बैठाने की जरूरत है ।

▶ सारी परिस्थितियों को देखते हुए सोशल मीडिया पर यदि हम संतुलन से समय देंगे तो हमें ना तो इसमें डूबने की जरूरत पड़ेगी और ना इस से भागने की जरुरत पड़ेगी यहां संतुलन बहुत आवश्यक है ।

▶ और यदि कुछ अन्य व्यस्तताएं हैं तो सोशल मीडिया को एक-दो दिन के लिए इग्नोर भी किया जा सकता है और कम समय देकर इसका आनंद भी लिया जा सकता है ।

▶ अतिवादिता कहीं भी अच्छी नहीं । गीता में भी कहा गया है कि

▶ ना अधिक खाने वाला और
ना अधिक भूखा रहने वाला
ना आलसी और
न अधिक परिश्रमी  ।

▶ अपितु जो संयत है वही लक्ष्य या भगवद्भक्ति को प्राप्त कर सकता है ।

▶ अतिवादी कभी भी किसी भी उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता है । यदि कदाचित वह कर भी लेता है तो उसकी जो उसको कीमत चुकानी पड़ती है आंख खुलने पर बड़ा पछताता है ।

▶ इसलिए हम चेक करें जहां भी हम अतिवादी हैं उसको कम करें और संसार से, भजन से, सोशल मीडिया से, मित्रों से लंबी लंबी बात करने से अथवा जो भी हो हम अपने बारे में स्वयं जानते हैं । उसमे सन्तुलन लाएं ।

▶ केवल दूसरा व्यक्ति या दासाभास आप को इंगित कर सकता है । आप स्वयं अपने आप को चेक करें और जहां भी

▶ अतिवादिता है या अभाव है
उसको दूर करें ।
संतुलित रहें । मस्त रहें

▶ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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