Thursday, 3 August 2017

Bhakti Kya Hai

Bhakti Kya Hai

​ ✔  *भक्ति क्या है*    ✔

▶ भगवान श्रीकृष्ण में वैसे तो अनंत शक्तियां हैं, लेकिन उनकी समस्त शक्तियां इन तीन शक्तियों के अंतर्गत है ।

▶ पहली है आह्लादिनी शक्ति अर्थात श्री राधाजु, अर्थात आनंद देने वाली शक्ति ।

▶ भगवान का स्वरूप सच्चिदानंद है । उसमें सत चित और आनंद इन तीन शक्तियों में से आह्लादिनी शक्ति आनंद का अंश है ।


▶ दूसरी शक्ति है संवित । जो चित् का अंश है और इसके अंतर्गत श्री गुरुदेव । समस्त ग्रंथ एवं ज्ञान के समस्त स्रोत और ज्ञान आते हैं । इसके द्वारा श्री कृष्ण की महिमा का ज्ञान होता है । महिमा ज्ञान के बिना रूचि नही होती ।

▶ तीसरी शक्ति है सत । सत के अंश से संधिनी शक्ति है । जिसके अंतर्गत श्री कृष्ण का धाम श्री वृंदावन आदि आता है ।

▶ भक्ति चित और आनंद का मिश्रित स्वरुप है । चित माने ज्ञान ग्रंथ, गुरुदेव और आनंद माने श्री पियाजी के आनुगत्य में प्रिया प्रियतम को आनंद देना और

▶ उस आनंद से स्वाभाविक रूप में स्वयं आनंदित होना ही भक्ति है । यदि हम भक्ति कर रहे हैं और स्वयं आनंद का अनुभव नहीं कर रहे हैं और प्रिया प्रियतम को आनंदित नहीं कर रहे हैं तो वह भक्ति नहीं कुछ और है ।

▶ भक्ति का अर्थ ही है भगवान का सुख और भगवान का सुख कैसे प्राप्त होता है पहले यह समझना होगा और फिर वह करना होगा तब उस भजन साधन करने से श्रीकृष्ण को आनंद प्राप्त होगा ।

▶ इसी का नाम भक्ति है जो कि आनंद एवं ज्ञान का मिश्रित रूप है । हमारा जीवन इसी के लिए मिला है । अतः हम चेष्टा पूर्वक इसमें लग जाए ।

▶ साथ ही यदि हमें ऐसा अवसर मिले कि हम धाम में निवास करते हुए भक्ति की महिमा को जानकर भक्ति का आचरण करें

▶ तो इसमें सत चित आनंद तीनों शक्तियों की कृपा का अनुभव होगा और सच्चिदानंद भगवान की सेवा हमें प्राप्त होगी ही होगी ।

▶ वैसे भी अन्य श्रवण कीर्तन आदिको साधन कहा गया है और बृजधाम के वास को साध्य कहा गया है ।

▶ यह धाम का वास यदि प्राप्त हो गया तो समझो बहुत कुछ प्राप्त हो गया । धाम नाम और ग्रंथ या गुरु या ज्ञान इन तीनों का आश्रय जीवन को सफलता प्रदान करता है । इन्हें कस कर पकड़े रहना है ।

▶ समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम 

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

No comments:

Post a Comment