श्रीराम श्रीकृष्ण
श्री राम हों या श्री कृष्ण हों, वामन हों, नृसिंह हों, या श्री कृष्ण के अनेक स्वरुप श्री राधारमण हों, श्री बिहारी जी हों, श्री राधावल्लभ हों, श्री गोविंद देव आदि हों, यह सब एक ही स्वरुप है।
यह सब एक ही हैं । इनमें तत्वतः कोई भेद नहीं, ठीक वैसे जैसे बीए हो, बीकॉम हो, बीएससी हो बीसीए हो यह सभी ग्रेजुएट डिग्रियां हैं ।
लेकिन जब हम निश्चित कर लेते हैं कि हमें बीकॉम करना है तो हम बी कॉम की कक्षा में जाते हैं, बीकॉम की पुस्तकें पढ़ते हैं, बीकाम की ही कोचिंग लेते हैं और बीकॉम में पढ़ने वाले अपने साथियों का संग करते हैं ।
इसका अर्थ बीसीए या बीएससी की निंदा नहीं, उपेक्षा नहीं लेकिन केंद्र एक पर ही है ।
थोड़ा-थोड़ा अंतर भी इनमें होता है । बीकॉम करने वाला कभी डॉक्टर नहीं बन सकता । इसलिए उपासना के रूप में जब हम इन भगवान के विभिन्न स्वरूपों को देखते हैं तो यहां भी थोड़ा थोड़ा अंतर है ।
नरसिंह की उपासना और कृष्ण की उपासना और श्री राम की उपासना तीनों में अंतर है और उपासना के फल में भी अंतर है ।
श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं
राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और
नरसिंह ने प्रहलाद की रक्षा की
इसलिए जब हम दीक्षित हो गए तब इष्ट रूप में हमें अपने गुरु परंपरा से प्राप्त श्री विग्रह के स्वरूप को ही सदा देखना चाहिए ।
उसी विषय के ग्रंथ पढ़ने चाहिए , उसी विषय के वैष्णवों का संग करना चाहिए, अपमान तो प्राणी मात्र का नहीं करना है फिर यह सब तो भगवान है ।
जब तक उपासना में अनन्यता नहीं आएगी तो इष्ट के प्रति दृढ़ बुद्धि एवं समर्पण नहीं आएगा और दृढ़ निष्ठा एवं समर्पण ना होने से प्राप्ति में बहुत विलंब होगा ।
अतः अनन्यता पूर्वक यथासंभव अधिक से अधिक अपने
इष्ट के विषय में बात करें ।
इष्ट के विषय में चिंतन करें ।
इष्ट का दर्शन करें
इष्ट के आचार्यों से मिले
तो हम शीघ्र ही इष्ट की कृपा प्राप्त कर उनके चरणों की सेवा प्राप्त कर लेंगे
समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
No comments:
Post a Comment