अमृतस्वरूप भक्ति
नारद भक्ति सूत्र का दूसरा सूत्र है
जिसके अनुसार भक्ति अमृत स्वरुप है ,अथवा अमृत है
अमृत यानि अ+मृत जो मृत नहीं होती ,जिसका
नाश नहीं होता ,जो सदेव है ,अमर है
इस जनम मै जितनी भक्ति करोगे ,जितनी सीड़ी
चड़ोगे , मृत्यु के साथ वह समाप्त नहीं होगी ,
अगले जन्म में अगली सीढी से प्रारंभ करना होगा
पिछली सीढीयां अमर है ,हर जनम मे जुड़ती जायगी
भक्ति का नाश नहीं , न ही भक्त का नाश है -'न मे भक्त प्रनश्यति'
जबकि कर्म का फल
भोग या मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है
अतः इस भक्ति अमृत का अवश्य पान करो
जितना हो उतना करो -यह अमर है -हर जन्म में जुड़ता रहेगा
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
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