Monday, 1 October 2012

253, SHUDDH PREM



शुद्ध प्रेम

कामना, वासना, स्वार्थ, या किसी
मकसद के लिए किया गया प्रेम लौकिक है
यह उद्देश्य-पूर्ती के साथ-साथ समाप्त हो जाता है या ढीला पड़ जाता है

विशुद्ध प्रेम आत्मिक है, आत्मा की वस्तु है
शरीर रहे न रहे, मकसद रहे न रहे, प्रेम  रहता ही है
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

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