कदा, अहो, अद्य
'कदा' में भक्त की विकलता प्रकट होती है-
कदा करिश्यसीह माँ कृपा....
हे प्रभु कब ? आखिर कब?? मुझ पर कृपा होगी??
अहो !
"अहो! बकी यं स्तन कालकूटम" में प्रभु की अपरिमित करुना के दर्शन साधक को होते है.
अद्य
में ठाकुर के दर्शन श्रृंगार का अनुपम आनंद साधक को प्राप्त होता.
"आज बनी सुन्दर अति जोड़ी "
यानी जेसे आज बनी है वैसी कभी नहीं बनी.
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