ध्रुव की भक्ति
भगवन की भक्ति करते हुए अपने लिए कुछ मांगना
शत प्रतिशत भक्ति नहीं है. सकाम भक्ति है. लेकिन सकाम भक्ति करते करते
एक अवसर ऐसा आता है की भक्त विशुद्ध भक्ति
तक पहुच कर भगवान् के श्री चरणों की सेवा के अतिरिक्त
कुछ नहीं मांगता .
न करने से बेहतर है सकाम भक्ति ही सही., भक्ति करो.
ध्रुव को जब उनकी सौतेली माँ ने दुत्कार दिया तो
ध्रुव न्र भगवान् की उपासना शुरू की.
कामना यह ही थी की मुझे पिता से भी बड़ा राज्य मिले
और पिता स्वयं मुझे गोदी में बताने के लिए बुलाये. लेकिन भक्ति भजन
करते करते जब भगवान प्रकट हुए कहा वर मांगो तो
ध्रुव ने कहा की जब आपके श्री चरणों के दर्शन होगये तो अब क्या राज्य और क्या गोदी?
मुझे तो अपने श्री चरनोको सेवा देदीजिए,
प्रभु ने कहा ध्रुव तुम निश्चित हे मेरी सेवा के अधिकारी हो
लेकिन तुमने जिस कामना के लिए भक्ति प्रारंभ की थी यह भी पूर्ण करूंगा.
भगवन ने विशाल राज्य दिया. हजारो वर्ष तक ध्रुव ने राज्य सुख भोगा और अंत में
मृत्यु के सर पर पैर रखकर भगवद धाम को गए और आज भी तारा मंडल में दर्शनीय है.
सकाम भक्ति वाला विशुद्ध भक्ति तक पहुचता तो है
लेकिन उसे देर लगती है बीच का समय या अनेक अनेक जनम कामना पूर्ति में नष्ट हो जाते है.
अतः जल्दी प्रभु चरण प्राप्ति हेतु विशुद्ध भक्ति पर केन्द्रित करना चाहिए.
कामनायो का अंत नहीं है. इन्हें छोड़ना ही पड़ता है...
छोड़ना चाहिए भी.
JAI SHRI RADHE
No comments:
Post a Comment