प्रेम के प्रकार
१. सात्विक
इस प्रेम में केवल देना ही देना स्वभाव बन जाता है
उसका सुख, उसकी अनुकूलता ,उसके लिए सब कुछ
भक्ति यद्यपि त्रिगुणातीत है लेकीन इसे भी भक्ति या शुद्ध प्रेम कह सकते है
२. राजसिक
इस प्रेम में लेना व देना दोनों चलते है
मैने तुमको इतना प्रेम किया - बदले में तुमने मुझे क्या दिया ?
बस यह दिया ? यही सिला दिया मेरे प्यार का ?
३. तामसिक
प्रेम के कारण जान देने या लेने को उतारू हो जाना
जेसे कि आतंक वादी
उसे भी कुछ न कुछ प्रेम हो जाता है की वह उसके लिए
दुसरे की जान लेने और अपनी जान देने को तैयार रहता है
सर्वोत्तम : प्रेम - भक्ति
और इन तीनों से परे श्री कृष्ण की अनुकुलतामयी
स्वसुख गंध लेश शून्य जो क्रिया है -वह है भक्ति
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
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