Friday, 2 September 2011

42. vanshi ki atmkatha

JAI SHRI राधे


वंशी एक बांस का टुकड़ा होता है, सबसे पहले तो उसे
 उसके मूल से काटा जाता है फिर उसके अन्दर के
 विकारों को अग्नि से जलाया जाता है , वह पोला हो
 जाता है इतने से भी पूर्ति नहीं होती, उसके शारीर में
 छेद कर के उसमें योग्यता का समावेश किया जाता है, अभी भी कम पूरा नहीं हुआ, उसके मस्तक को तिरछा काटा जाता है, फिर उसमें एक गिट्टक फसयी जाती है, तब कहीं जाकर वह वंशी बनता है और प्रभु के अधरामृत का पान कर पाटा है . है कोई और ऐसा जड़ पदार्थ, जिसने इतने बलिदान दिए हों ??
जड़ की तो बात ही अलग है जो हम आप चेतन हैं उन्हें
 भी इतने बलिदान करके योग्यता हासिल करनी पड़ती
 तब कहीं जाकर कृपा का एक कण मिल पाटा है
, उसमे भी फिर भक्तिजत अनर्थों के कारन जीव में
 अभिमान आ जाता है की में तो अब भक्त बन गया -
 ऐसा होते ही वह गया काम से
अतः बहुत संभल कर चलने का काम है-
'बहुत  कठिन है डगर पनघट की'

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