Monday, 19 September 2011

68. NARTAN HEERAA

NARTAN HEERAA



जोगी जुरें जुग-जुग  फिरैं, और ज्ञानी गहे गति ज्ञान सुखारी | 

कहू कर्मी  कर्म कमाई करैं, अरु त्यागी तुले तजि सम्पति ताती ||
विषयी विषयन हित बिक विचरइ, निज-निज धुन नाचै नर अरु नारी |
यै ललिताविहारिणी क्यों कर जानै किन  पे कैसी  है रीझ  तिहारी ||

हाय !   जीवन पूरों नीत चल्यौ, जड़ झूठे जगत झमेलों मैं |
मनमोहन मुख -मकरंद त्यागि मन योतो मयिक मेलों मैं ||
अब वृद्दा मैं पछतानो क्या ? जब जीवन खोयो खेलों मैं |
'श्यामदास' यह नरतन हीरा, हाथो से गयों अधेलों  मैं ||  


-- 
JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

No comments:

Post a Comment