मेरी मासिक पत्रिका श्री हरिनाम के
एक पाठक का फोन आया,
बोले- में मनमोहन पाठक बोल रहा हूँ
मैंने प्रणाम किया, कहा
आदेश कीजिये,
बोले- में दर्शन के लिए
वृन्दाबाब आना चाहता हु
श्री राधारमण
श्री राधा दामोदर
श्री राधा श्याम सुन्दर
श्री सेवाकुंज आदि मंदिर
एवं कुछ ख़ास सच्चे संतो के
दर्शन करना चाहता हु
और ख़ास कर श्री बिहारी जी के दर्शन के लिए
श्री वृन्दाबन आना चाहता हु
में बोला- आइये!
अच्छा संकल्प है, अच्छा विचार है.
बोले-आप वृन्दाबन में कहाँ रहते हैं ?
मैंने कहा- में वृन्दाबन में कहाँ रहता हूँ,
में तो मन से भटकता रहता हूँ- इधर-उधर, इधर-उधर.
वैसे- बिहारी जी से केवल पांच मिनट की
पैदल दूरी पर मेरा घर है,
घर में ही मेरा दफ्तर है
बोले फिर तो ठीक है
में आपके ही घर आता हूँ,
आप तो बिहारी जी के अति निकट हैं
पांच मिनट में उनसे मिलवा दोगे !
मैंने कहा- आइये!
येह तो मेरा भी सौभाग्य होगा
जो आपके बहाने में भी उनसे मिल आउंगा
चार बातें कर आउंगा,
उनसे थोड़ा भिड़ आउंगा, लड़ आउंगा
कुछ गिला कर आउंगा, कुछ शिकवा सुन आउंगा.
उनसे कहूंगा-
यथा नाम-तथा गुण मनमोहन पाठक को बुलाते हो !
मुझे क्यों भुलाते हो ?
शालू को पटाते हो! उसका फूल खाते हो!
'दिल्ली दूर' बताते हो! बच्ची को रुलाते हो !
'निधि' पर राधाक्रिपा, 'हरिप्रिया' बनाते हो !
'नीतू' करे दिव्या सेवा,
'किकरी-सखी' मेहरा जी को क्यों नहीं बसाते हो?
'मंजू' को जगा दिया, सतीश को भगा दिया
और 'अंजू चौधरी के घर आते-जाते हो !
शालिनी, रागिनी,योगिनी,आभा, गोपिका प्रेम करें
रूपा, किशोरी, नरेश पर किरपा बरसाते हो !
रोहन, मधुर, राजू, रमन, गुलशन,जैसे कितनो का
दिल है इनका नेक दिल उसमे क्यों नहीं समाते हो ?
बोले - नटखट हूँ न!
आता हु, जाता हु, बांसुरी बजाता हु
किसी को रुलाता हु, किसी को हंसाता हु
तभी तो नटवर कहलाता हु गिरिधर कहलाता हु
'बांके' कहलाता हु, 'गिरिराज' से लिखाता हु
बिहारी बन जाता हु, बिहारी हो जाता हूँ.
और सुनो ! सुनो ! सुनो! गज़ब एक हो gayaa
नींद मेरी खुल गयी, स्वप्न मेरा छल गया
हृदय मेरा खिल गया - आज मुझे बिस्तर पर
एक 'मोरपंख' मिल गया
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD thru Family n Humanity
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