कल एक सज्जन आये
सत्संग हुआ, चर्चा हुयी, आनंद हुआ |
उनके साथ एक बालक भी था |
बोला - अंकल आप ये क्या कर रहे हो ?
मैं बोला - बेटे ! मैं इस ग्रन्थ का
संपादन कर रहा हूँ |
'यानी आप किताब लिख रहे हो ?
मैंने कहा - हाँ,
'तो आप तो बहुत - पढ़े लिखे होओगे ?
मैंने कहा - हाँ,
'बहुत पढ़े लिखे ?
हाँ ! मैं पी.एच.डी. हूँ | डाक्टरेट हूँ |
'तो फिर मुझे २४ का टेबल सुनाइये ?
मैं बगलें झाँकने लगा |
बोला -झूठ ! आप क्लास ४ पास भी नहीं हो
मैं भी लास्ट यीअर २४ का टेबल न
सुनाने पर फेल हो गया था |
आप भी ४ फेल हो
फिर इतनी मोटी किताब कैसे लिख
रहे हो ?
मैं सकपकाया
लेकिन उसका ज्ञान और अनुभव भी
गलत नहीं था - यह उसके ज्ञान का स्तर था
ऐसे ही हमारी बुद्धि का स्तर होता है
जैसा हमें ठीक लगता है -
वह तो ठीक होता ही है, उसके
आगे भी कुछ होता है
बढ़ते रहो, चलते रहो, पढ़ते रहो
ज्ञान अनंत है - सीखते रहो
समझते रहो
made to serve ; GOD thru Family n Humanity
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