Tuesday, 6 September 2016

वचन कर्म ओर मन

✔  *वचन कर्म  ओर मन  *    ✔


🔴श्री राधा रस सुधा निधि के रचनाकार
श्री प्रबोधानंद सरस्वती रचित
श्रीवृन्दाबन महिमामृत की रसमय कथा कहें
🔴 बरज रज की अद्भुत महिमा बखान करें

ये हो गया वचन

🔴 बरज रज को सदा मस्तक पर पोते रहें
🔴 बरज को छोड़कर कहीं न जाएँ
🔴 बरजरज म कभी चप्पल न पहने

ये हो गया कर्म

🔴 हरदय सदा ब्रज की रज रानी की कृपा से
      पूरित रहे ।
🔴 आखें डबडबाई रहें सदा

ये हो गया मन । जिसका मन वचन कर्म एक सा वही साधू । वही सन्त । अन्यथा तो

खूब चटपटी वृन्दाबन की कथा कहने वाले
🔵 न तो वृन्दाबन म रहें
🔵 न रज मस्तक पर लगाएं
🔵 और मर्सीडीज़ में चलें

केवल बातें ही बातें । कोरी बातें । न मन म भाव । न आचरण । ऐसे लोगों से श्रवण का उतना असर नही होता जितना मन वचन कर्म वाले साधू क मुख से श्रवण से ।

चिंतन कीजिये


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
 
वचन कर्म  ओर मन


No comments:

Post a Comment