✔ *साधु वैष्णव सेवा* ✔
▶ 2 या 4 या 10 वैष्णवों को घर पर बुला लेना उन्हें खीर पूरी हलवा सब्जी रायता का प्रसाद खिला देना । 50 । 100 रूपय दक्षिणा देना वस्त्र देना । प्रणाम कर लेना ।
▶ अथवा किसी आश्रम में ही 25 या 50 वैष्णवों की प्रसाद सेवा आदि कर देना और एक मुश्त राशि आश्रम में दे देना बहुत ही अच्छी बात है।
▶ बहुत सुंदर है । ऐसा करना ही चाहिए । यह भक्ति अंग के वैष्णव सेवा के अंतर्गत आता है
▶ लेकिन साथ ही साथ यदि कोई वैष्णव जन अचानक कष्ट में आ गया
▶ वह गृहस्थ है या विरक्त है ।
▶ और यह हमें पता है कि वह परम वैष्णव है ।
▶ धाम वासी है ।
▶ जप करता है।
▶ दर्शन करता है
▶ सात्विक जीवन जीता है
▶ यदि उसे किसी प्रकार का कष्ट हो और हमें लगे कि हमारी सहायता । हमारी सेवा से उसको सांत्वना या आनंद मिल सकता है । तो इससे बड़ी साधु वैष्णव सेवा कोई नहीं ।
▶ यहां हमारी सेवा की आवश्यकता है । सेवा न करने पर या इग्नोर करने पर वैष्णव को कष्ट हो सकता है या चिंता हो सकती है ।
▶ और वहां जो हम साधु वैष्णव की प्रसाद सेवा करते हैं । वहां हमारी कोई जरूरत नहीं है वह एडिशनल है ।
▶ हमने प्रसाद पवा दिया तो ठीक । अन्यथा वह प्रसाद पा तो रहे ही थे । हम न पवाते तो उन्होंने भूखे नही रहना था ।
▶ लेकिन यहां पर कष्ट में । दुख में किसी की सेवा का अवसर प्राप्त होने पर उसे करना यह एडिशनल नहीं । अपितु चेष्टा शील रहकर ऐसे अवसरों पर उत्साह एवम् सामर्थ्य शक्ति से यदि सेवा होती रहे तो फिर वो दूसरी सेवा हो या न हो
▶ ऐसी यह सेवा आवश्यक है । परम आवश्यक है । और मैं तो यह कहता हूं कि एक साधक के लिए इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है कि किसी वैष्णव के दुख में । कष्ट में । यह शरीर और यह समय किंचित रूप से भी काम में आ जाए ।
▶ लेकिन हम लोग प्राय इस विषय में इग्नोरिंग मूड में रहते हैं, और वैष्णवों को प्रसाद पवाने मे अधिक रूचि लेते हैं । जबकि इस प्रकार की सेवा के प्रति सदैव चेष्टा शील रहना चाहिए
▶ संत वैष्णव सद्गुरु कृपा से ही हमें यह अवसर मिला कि हम शरीर द्वारा मन द्वारा धन द्वारा किसी साधू वैष्णव भजन में आनंदी जन की सेवा कर पाए ।
▶ अतः हम चिंतन करें और प्राथमिकताओं को निश्चित करें ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ 2 या 4 या 10 वैष्णवों को घर पर बुला लेना उन्हें खीर पूरी हलवा सब्जी रायता का प्रसाद खिला देना । 50 । 100 रूपय दक्षिणा देना वस्त्र देना । प्रणाम कर लेना ।
▶ अथवा किसी आश्रम में ही 25 या 50 वैष्णवों की प्रसाद सेवा आदि कर देना और एक मुश्त राशि आश्रम में दे देना बहुत ही अच्छी बात है।
▶ बहुत सुंदर है । ऐसा करना ही चाहिए । यह भक्ति अंग के वैष्णव सेवा के अंतर्गत आता है
▶ लेकिन साथ ही साथ यदि कोई वैष्णव जन अचानक कष्ट में आ गया
▶ वह गृहस्थ है या विरक्त है ।
▶ और यह हमें पता है कि वह परम वैष्णव है ।
▶ धाम वासी है ।
▶ जप करता है।
▶ दर्शन करता है
▶ सात्विक जीवन जीता है
▶ यदि उसे किसी प्रकार का कष्ट हो और हमें लगे कि हमारी सहायता । हमारी सेवा से उसको सांत्वना या आनंद मिल सकता है । तो इससे बड़ी साधु वैष्णव सेवा कोई नहीं ।
▶ यहां हमारी सेवा की आवश्यकता है । सेवा न करने पर या इग्नोर करने पर वैष्णव को कष्ट हो सकता है या चिंता हो सकती है ।
▶ और वहां जो हम साधु वैष्णव की प्रसाद सेवा करते हैं । वहां हमारी कोई जरूरत नहीं है वह एडिशनल है ।
▶ हमने प्रसाद पवा दिया तो ठीक । अन्यथा वह प्रसाद पा तो रहे ही थे । हम न पवाते तो उन्होंने भूखे नही रहना था ।
▶ लेकिन यहां पर कष्ट में । दुख में किसी की सेवा का अवसर प्राप्त होने पर उसे करना यह एडिशनल नहीं । अपितु चेष्टा शील रहकर ऐसे अवसरों पर उत्साह एवम् सामर्थ्य शक्ति से यदि सेवा होती रहे तो फिर वो दूसरी सेवा हो या न हो
▶ ऐसी यह सेवा आवश्यक है । परम आवश्यक है । और मैं तो यह कहता हूं कि एक साधक के लिए इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है कि किसी वैष्णव के दुख में । कष्ट में । यह शरीर और यह समय किंचित रूप से भी काम में आ जाए ।
▶ लेकिन हम लोग प्राय इस विषय में इग्नोरिंग मूड में रहते हैं, और वैष्णवों को प्रसाद पवाने मे अधिक रूचि लेते हैं । जबकि इस प्रकार की सेवा के प्रति सदैव चेष्टा शील रहना चाहिए
▶ संत वैष्णव सद्गुरु कृपा से ही हमें यह अवसर मिला कि हम शरीर द्वारा मन द्वारा धन द्वारा किसी साधू वैष्णव भजन में आनंदी जन की सेवा कर पाए ।
▶ अतः हम चिंतन करें और प्राथमिकताओं को निश्चित करें ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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