✔ *अजीब बात है* ✔
▶ भक्ति के विकास में अनेक बाधाओं के साथ साथ गोस्वामी पादने एक विशेष कारण का भी उल्लेख किया है वह है । विनियम आग्रह ।
▶ विनियम बोलते हैं नियम ना होना, अर्थात नियम न होने में आग्रह । आग्रह माने पक्ष लेना, अर्थात कोई भी नियम ना होने का पक्ष लेना ।
▶ इस शब्द को नियमअनाग्रह भी लिख सकते थे अर्थात नियम में आग्रह ना होना । नियम में आग्रह या नियम में भूल या नियम में लापरवाही तो होती ही है
▶ लेकिन नियम के प्रति हमारा निष्ठा आग्रह फेेवर होता है यहां पर इसकी उल्टी बात कही गई है कि नियम में आग्रह की बजाए अनियम, विनियम में किसी भी प्रकार के कोई नियम में आग्रह ना होना
▶ जैसे जप से भजन में नियम से कुछ नहीं होता है ठाकुर जी तो बड़े दयालु हैं इनको कोई फर्क नहीं पड़ता, मुझे जब टाइम मिलता तब इनको खिला देती, पिला देती
▶ यह तो संसार के मालिक हैं इन को भला कौन खिला सकता । अब देखो घर है गिरस्ती है 50 काम है । जब टाइम मिले या ना मिले तब इनको खुश कर दो । यह तो ऐसे ही खुश हो जामें ।
▶ दूसरा इन्होंने तो अनगिनत सुख-सुविधा हमें दी हुई है इनको क्या गिन गिन के नाम करो और गिन गिन के सुनाओ, गिन गिन के भजन करो, यह सब ना होता हमसे । और इसकी कोई जरुरत भी नहीं ।
▶ किताब लेकर बैठना, माला लेकर बैठना और हरे कृष्ण हरे राम करना, नहाना-धोना शुद्ध होना यह सब बेकार की बातें हैं ।
▶ भगवान तो हमारे हृदय में है । मैं तो हर समय चलते-फिरते उनका नाम लेती रहती हूं भला माला से ही क्या हो जाना है
▶ भगवान का तो स्मरण रहना चाहिए, भगवान तो घट घट वासी है । मैं तो चलते-फिरते हर समय उनका नाम लेती हूं
▶ लो भला भगवान का नाम लेने का भी कोई टाइम होवे है ।
▶ इस प्रकार का विनियम, इस प्रकार की बातों का विश्वास, इस प्रकार की बातों का मन में बैठ जाना ही विनियम आग्रह कहलाता है
▶ कुल मिलाकर भजन में, चिंतन में यहां तक कि ठाकुर सेवा में भजन में राग में शरीर शुद्धि में किसी भी प्रकार के अनुशासन में अपने आप को न बांधना ही विनियम आग्रह कहलाता है
▶ जिसे गोस्वामी पादने भक्ति की एक बहुत बड़ी बाधा कहा गया है । ऊपर ऊपर की बातों से तो यह हम आप जैसे साधारण साधक से ऊंचा भाव दिखता है
▶ लेकिन यह ऊंचा भाव नहीं है मेरे भाई । यह भक्ति की एक बाधा है , जो हमें भक्ति की ओर बढ़ने नहीं देती ।
▶ इस से निकलकर एक साधक को भले ही थोड़ा सा सही , छोटा सा सही, तिनके जितना सही भजन का नियम, भजन का अनुशासन अवश्य लेना चाहिए
▶ और भजन की कृपा से ही हम अनेक बार देखते हैं कि यह तिनका वृक्ष का रूप धारण कर लेता है और हमारे भजन के पथ को प्रशस्त करता है ।
समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ भक्ति के विकास में अनेक बाधाओं के साथ साथ गोस्वामी पादने एक विशेष कारण का भी उल्लेख किया है वह है । विनियम आग्रह ।
▶ विनियम बोलते हैं नियम ना होना, अर्थात नियम न होने में आग्रह । आग्रह माने पक्ष लेना, अर्थात कोई भी नियम ना होने का पक्ष लेना ।
▶ इस शब्द को नियमअनाग्रह भी लिख सकते थे अर्थात नियम में आग्रह ना होना । नियम में आग्रह या नियम में भूल या नियम में लापरवाही तो होती ही है
▶ लेकिन नियम के प्रति हमारा निष्ठा आग्रह फेेवर होता है यहां पर इसकी उल्टी बात कही गई है कि नियम में आग्रह की बजाए अनियम, विनियम में किसी भी प्रकार के कोई नियम में आग्रह ना होना
▶ जैसे जप से भजन में नियम से कुछ नहीं होता है ठाकुर जी तो बड़े दयालु हैं इनको कोई फर्क नहीं पड़ता, मुझे जब टाइम मिलता तब इनको खिला देती, पिला देती
▶ यह तो संसार के मालिक हैं इन को भला कौन खिला सकता । अब देखो घर है गिरस्ती है 50 काम है । जब टाइम मिले या ना मिले तब इनको खुश कर दो । यह तो ऐसे ही खुश हो जामें ।
▶ दूसरा इन्होंने तो अनगिनत सुख-सुविधा हमें दी हुई है इनको क्या गिन गिन के नाम करो और गिन गिन के सुनाओ, गिन गिन के भजन करो, यह सब ना होता हमसे । और इसकी कोई जरुरत भी नहीं ।
▶ किताब लेकर बैठना, माला लेकर बैठना और हरे कृष्ण हरे राम करना, नहाना-धोना शुद्ध होना यह सब बेकार की बातें हैं ।
▶ भगवान तो हमारे हृदय में है । मैं तो हर समय चलते-फिरते उनका नाम लेती रहती हूं भला माला से ही क्या हो जाना है
▶ भगवान का तो स्मरण रहना चाहिए, भगवान तो घट घट वासी है । मैं तो चलते-फिरते हर समय उनका नाम लेती हूं
▶ लो भला भगवान का नाम लेने का भी कोई टाइम होवे है ।
▶ इस प्रकार का विनियम, इस प्रकार की बातों का विश्वास, इस प्रकार की बातों का मन में बैठ जाना ही विनियम आग्रह कहलाता है
▶ कुल मिलाकर भजन में, चिंतन में यहां तक कि ठाकुर सेवा में भजन में राग में शरीर शुद्धि में किसी भी प्रकार के अनुशासन में अपने आप को न बांधना ही विनियम आग्रह कहलाता है
▶ जिसे गोस्वामी पादने भक्ति की एक बहुत बड़ी बाधा कहा गया है । ऊपर ऊपर की बातों से तो यह हम आप जैसे साधारण साधक से ऊंचा भाव दिखता है
▶ लेकिन यह ऊंचा भाव नहीं है मेरे भाई । यह भक्ति की एक बाधा है , जो हमें भक्ति की ओर बढ़ने नहीं देती ।
▶ इस से निकलकर एक साधक को भले ही थोड़ा सा सही , छोटा सा सही, तिनके जितना सही भजन का नियम, भजन का अनुशासन अवश्य लेना चाहिए
▶ और भजन की कृपा से ही हम अनेक बार देखते हैं कि यह तिनका वृक्ष का रूप धारण कर लेता है और हमारे भजन के पथ को प्रशस्त करता है ।
समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
No comments:
Post a Comment