Saturday, 3 September 2016

इसे प्रेम का नाम न दो

 🌹  इसे प्रेम का नाम न दो 🌹

🍎प्रेम  के विषय श्री कृष्ण है । प्रेम केवल श्रीकृष्ण से ही हो सकता है । किसी अन्य से यदि हमारा प्रेम है तो वह निश्चित ही स्वार्थ के कारण है

🌷माता का प्रेम जो छोटे बालक के प्रति होता है वह वात्सल्य के का रण होता है बड़े होने पर 50 मौके ऐसे हैं जो माता पिता । माता पुत्र के झगड़े के हैं

🍉भाई बहन  । भाई भाई । पिता पुत्र । यहां तक कि प्रेमी-प्रेमिका । पति पत्नी । रोज ब्रेकअप हो रहे हैं ।  रोज तलाक हो रहे ।

🍒आप सूक्ष्मता से देखिए जब तक सामने वाला हमारे अनुकूल है तभी तक वह अच्छा लगता है अभी वो खरी खरी बात यदि वह सुना दें तो चाहे प्रेमी हो चाहे प्रेमिका हो । चाहे मंगेतर हो । चाहे पति हो । चाहे पत्नी । हो सारा प्रेम धरा रह जाता है

🌳और विशेषकर बिना देखे । बिना समझे । बिना आत्मसात किए । बिना मिले । बिना संग किए जो प्रेम होता है वह वास्तव में प्रेम नहीं प्रशंसा सुनने की आदत है

🔴जिस दिन प्रशंसा बंद हुई उस दिन प्रेम टूट जाएगा । इसलिए प्रेम केवल और केवल श्रीकृष्ण से करना है बाकी किसी से झगड़ना नहीं है

🙊बाकी सब से जो है वह रिश्ता है  । वह स्वार्थ है। वह जी हजूरी है । वह प्रशंसा सुनने की आदत है वह समझौता है । वह मजबूरी है । प्रेम कम से कम नहीं । एडजस्टमेंट है

🙈अतः इन सब को हम प्रेम का नाम ना दें । प्रेम के विषय श्री कृष्ण है और प्रेम का आश्रय श्री राधारानी है । श्री नित्यानंद है । श्री गुरुदेव है। और हम जीव है ।

🔵प्रेम  केवल कृष्ण से करें । प्रेम में सबसे बड़ा जो भाव है वह तत् सुख सुखित्व है । सामने वाले के सुख में सब कुछ न्यौछावर ।

🔵🔴जसा श्री राधा रानी एवं गोपिका गण ने किया लोकधर्म  । वेद धर्म । पातिवृत्य । स्वर्ग नर्क की चिंता इत्यादि सब कुछ त्याग दिया

💃यहां तक की श्री राधादि गोपिगण को त्यागने में यदि कृष्ण को सुख मिला तो वह उसमें भी आनंदित रहे ।

📍उनका टारगेट प्रेमी श्रीकृष्ण का सुख । यहां तक कि श्री कृष्ण स्वयं भी नहीं । कृष्ण का सुख। इसी प्रकार हम जीवो के लिए भी कृष्ण नहीं कृष्ण चरण सेवा

⛱अतः कृष्ण चरण सेवा हेतु प्रयास करें उसी का नाम है श्री कृष्ण प्रेम या श्री कृष्ण प्रेम से चरण सेवा प्राप्त होगी

समस्त वैष्णव जन को मेरा सादर प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn




इसे प्रेम का नाम न दो


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