Tuesday 20 September 2016

सुख-दुख में समान रहना

​​​​​​✔  *सुख-दुख में समान रहना*    ✔

▶ प्राय हम लोग इस विषय में बात करते हैं कि सुख हो दुख या कैसी भी परिस्थिति हो हमें चेष्टा करके समान रहना चाहिए

▶ यह बात बिल्कुल ठीक है लेकिन केवल बात से तो काम नहीं चलता । संसार में यदि हम देखें तो जिस से हमारा मतलब है उसमें हमारी वृति और चेष्टा रहती है

▶ जिससे हमारा मतलब नहीं है उसके प्रति हम अपेक्षा रहित रहते हैं और शायद सहज भी रहते हैं

▶ अभी कोई हमसे कहे के बस के दो कंडक्टर आपस में लड़ रहे थे तो हम कहेंगे लड़ने दो ना हमें क्या करना है । हमारा लेना एक न देना दो हमें बस के कंडक्टरों की लड़ाई से क्या मतलब

▶ हम तो शॉपिंग करने आए हैं जल्दी-जल्दी शॉपिंग कर लो । यहां पर केंद्र शॉपिंग पर है और कंडक्टरों की लड़ाई से कोई मतलब नहीं है मतलब इसलिए नहीं है कि हमारा केंद्र शॉपिंग है

▶ इसी प्रकार जीवन में यदि हम अपना एक केंद्र निश्चित कर लेंगे तो दूसरी बातों के प्रति हम समान हो जाएंगे

▶ जिसे धन कमाना होता है जो धन के पीछे पागल होता है वह दूसरी बातों को छोड़ देता है

▶ एक वैष्णव को भजन के पीछे पागल हो जाना चाहिए किसी भी बात को वह तभी रुचि ले जब उसके भजन में लाभ हो अथवा भजन में हानि हो

▶ भजन से कोई लेना-देना यदि ना हो तो उसमें उसकी सामान बुद्धि हो जाती है चाहे वह भोजन हो चाहे भर स्वस्थ रहो चाहे वस्त्र हो या मान अपमान अथवा कोई भी सांसारिक स्थिति परिस्थिति

▶ कस  कर जब तक हम भजन को नहीं पकड़ेगे और हर बात में भजन को मानदंड नहीं बनाएंगे तो समता भी नहीं आएगी

▶ उपेक्षा से भी समता प्राप्त होती है जैसे हमारे पडोसी का लड़का कुछ भी करें हम समान रहते हैं क्योंकि हमें अपने पडोसी से कोई लेना देना नहीं है

▶ लेकिन हमारा लड़का यदि बदमाशी करें और तब भी हम समान रहें यह है समता और इस समता का केंद्र है भजन

▶ हमारा भजन बनता रहे या भजन की हानि ना हो उसके अतिरिक्त जो होता रहे उसमें हम समान रहे

▶ लेकिन यह है बहुत कठिन । तीन परिस्थितियां होती हैं मन वचन कर्म । तो कर्म में यदि अभी आ पाए तो मन में धारण का प्रयास, बैठाने का प्रयास करना चाहिए

▶ मन में यदि बैठ जाएगा तो यह हमारी वाणी में आ जाएगा वाणी में आने से धीरे धीरे हमारी क्रिया में भी आ जाएगा

▶ 1 दिन में कुछ भी नहीं होने वाला है धीरे धीरे प्रयास से सब होगा । इतिहास गवाह है लोग सम हुए हैं । अनेक हुए हैं तो हम क्यों नहीं हो सकते ?


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn


सुख-दुख में समान रहना

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