✔ *प्रेम भक्ति यानि उनका सुख* ✔
▶ अरे भाई । आजकल तो बहुत बरसात हो रही है फिर आप तुलसी जी में जल क्यों दे रहे हो
▶ अरे वाह । कोई में आज जल थोड़ी दे रहा हूं मेरा तो पिछले जब से होश संभाला है तबसे तुलसी जी में जल देने का नियम है उस नियम को कैसे तोड़ दूं
▶ अरे भाई । तो यह नियम तुमने क्यों बनाया था
▶ अरे वाह । नियम तो नियम है । जीवन में नियम बनाने से जीवन व्यवस्थित होता है । और तुलसी जी को जल देने से पाप कटते हैं । भगवत भक्ति प्राप्त होती है । उनकी कृपा प्राप्त होती है । रोग निवृत्त होते हैं । कोई एक बात थोड़े ही है
▶ अरे भाई । यह सब तो ठीक है लेकिन तुलसी जी का भी कुछ ध्यान करोगे या अपना अपना करते रहोगे
▶ अरे वाह । तुलसी जी का ही ध्यान तो है ये ।
▶ अरे भाई । यदि इतना बरसात का शुद्ध जल मिलने पर भी तुम अधिक जल दोगे तो हो सकता है तुलसी जी को हानि पहुंचे और तुलसी जी रम जाएं या उनका विकास ना हो
▶ अरे वाह । यह सब बातें हम सोचेंगे तो हमारे नियम का क्या होगा । बरसात तो 4 महीने पड़ती है तो क्या हम 4 महीने नियम छोड़ दें । और नियम तोड़ने से क्या हमें पाप नहीं लगेगा हमारे नियम का क्या होगा ।
▶ अरे भाई । तुम अपने नियम की बात कर रहे हो अपनी अपनी बात कर रहे हो ।
🌹अपना कल्याण
🌹अपना पाप कटना
🌹अपना नियम
▶ यह उचित नहीं है । इसका साफ-साफ अर्थ है कि तुम अपने लिए कुछ कर रहे हो । यह स्वार्थ है यह प्रेम नहीं भक्ति नहीं है । यह मेरा नियम । मेरा कल्याण । मेरे पाप कटे । मेरा नियम । मेरा मेरा मेरा मेरा । जो संसार में लगाया वही भजन पथ में भी शुरू हो गए
▶ जबकि जिसे प्रेम कहते हैं , उसमें देना ही देना होता है , उसमें प्रेमी का , जिसके प्रति हम प्रेम कर रहे हैं , उसका सुख देखा जाता है , उसके सुख में ही सुखी रहा जाता है
▶ अरे भाई । तुमको यह सोचना चाहिए कि में जो तुलसी जी में जल देता हूं , उससे तुलसी जी को सुख मिलता है । और तुलसी जी को सुख मिले वही काम मुझे करना है
▶ यदि तुलसी जी को दुख हो , हानि हो वह काम मुझे नहीं करना है । यही प्रेम है । आप गोपियों को देखो ।
▶ भगवान कृष्ण 125 वर्ष धरा पर रहे । लेकिन गोपियों के पास केवल 10।11 वर्ष रहे ।
▶ गोपियों ने कभी शिकायत नहीं की । गोपियों को जब किसी ने बताया कि कृष्ण ने कुब्जा को पत्नी बना लिया है । तो गोपियां प्रसन्न हुई चलो अच्छा है कृष्ण को सुख मिल रहा है ना
▶ ऐसे ही द्वारका की 16108 रानियों का जब पता चला तब भी गोपियों ने यही कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है श्रीकृष्ण को आनंद मिल रहा है
▶ अन्यथा सौत की खबर सुनकर कोई महिला आजतक प्रसन्न हुई है क्या ।
▶ इस प्रसन्नता का कारण केवल कृष्ण सुख । कृष्ण में सच्चा प्रेम ।
▶ यही एक वैष्णव को ध्यान रखना है । अपने नियम । अपने कल्याण । अपनी जो बात करता है वह सकाम भक्ति है । वह प्रेम नहीं है
▶ प्रेम भक्ति तो वही है , और प्रेम भी वही है जिसमें सामने वाले के सुख का, उसके आनंद का , उस की भलाई का । उस की सुविधा का । उसकी इच्छा का । उसका ही ध्यान रखा जाए ।
▶ और आप सोचिए प्रेम में सदा दो लोग होते हैं यदि दोनों लोगों में यही भाव रहे तो हम उसका ध्यान रखेंगे और वह हमारा ध्यान रखेगा
🌹यदि हम श्रीकृष्ण के शरणागत हैं तो
🌹कष्ण भी भक्त पराधीन हैं
▶ नुकसान कुछ होने वाला नहीं है । केवल भावों का अंतर है । अतः कृष्ण भक्ति का अर्थ कृष्ण सुख । कृष्ण प्रेम का अर्थ कृष्ण सुख । और प्रेम का अर्थ ही है कृष्ण का सुख । सामने वाले का सुख । प्रेमी का सुख ।
▶ और तुलसी जी में जल देने का भाव तुलसी जी का आनद । तुलसी जी का सुख ।
🌹नियम तुलसी जी के सुख का लें ।
🌹न कि रोज़ जल देने का ।
▶ हम चिंतन करें कि हम कितने पानी में है
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ अरे भाई । आजकल तो बहुत बरसात हो रही है फिर आप तुलसी जी में जल क्यों दे रहे हो
▶ अरे वाह । कोई में आज जल थोड़ी दे रहा हूं मेरा तो पिछले जब से होश संभाला है तबसे तुलसी जी में जल देने का नियम है उस नियम को कैसे तोड़ दूं
▶ अरे भाई । तो यह नियम तुमने क्यों बनाया था
▶ अरे वाह । नियम तो नियम है । जीवन में नियम बनाने से जीवन व्यवस्थित होता है । और तुलसी जी को जल देने से पाप कटते हैं । भगवत भक्ति प्राप्त होती है । उनकी कृपा प्राप्त होती है । रोग निवृत्त होते हैं । कोई एक बात थोड़े ही है
▶ अरे भाई । यह सब तो ठीक है लेकिन तुलसी जी का भी कुछ ध्यान करोगे या अपना अपना करते रहोगे
▶ अरे वाह । तुलसी जी का ही ध्यान तो है ये ।
▶ अरे भाई । यदि इतना बरसात का शुद्ध जल मिलने पर भी तुम अधिक जल दोगे तो हो सकता है तुलसी जी को हानि पहुंचे और तुलसी जी रम जाएं या उनका विकास ना हो
▶ अरे वाह । यह सब बातें हम सोचेंगे तो हमारे नियम का क्या होगा । बरसात तो 4 महीने पड़ती है तो क्या हम 4 महीने नियम छोड़ दें । और नियम तोड़ने से क्या हमें पाप नहीं लगेगा हमारे नियम का क्या होगा ।
▶ अरे भाई । तुम अपने नियम की बात कर रहे हो अपनी अपनी बात कर रहे हो ।
🌹अपना कल्याण
🌹अपना पाप कटना
🌹अपना नियम
▶ यह उचित नहीं है । इसका साफ-साफ अर्थ है कि तुम अपने लिए कुछ कर रहे हो । यह स्वार्थ है यह प्रेम नहीं भक्ति नहीं है । यह मेरा नियम । मेरा कल्याण । मेरे पाप कटे । मेरा नियम । मेरा मेरा मेरा मेरा । जो संसार में लगाया वही भजन पथ में भी शुरू हो गए
▶ जबकि जिसे प्रेम कहते हैं , उसमें देना ही देना होता है , उसमें प्रेमी का , जिसके प्रति हम प्रेम कर रहे हैं , उसका सुख देखा जाता है , उसके सुख में ही सुखी रहा जाता है
▶ अरे भाई । तुमको यह सोचना चाहिए कि में जो तुलसी जी में जल देता हूं , उससे तुलसी जी को सुख मिलता है । और तुलसी जी को सुख मिले वही काम मुझे करना है
▶ यदि तुलसी जी को दुख हो , हानि हो वह काम मुझे नहीं करना है । यही प्रेम है । आप गोपियों को देखो ।
▶ भगवान कृष्ण 125 वर्ष धरा पर रहे । लेकिन गोपियों के पास केवल 10।11 वर्ष रहे ।
▶ गोपियों ने कभी शिकायत नहीं की । गोपियों को जब किसी ने बताया कि कृष्ण ने कुब्जा को पत्नी बना लिया है । तो गोपियां प्रसन्न हुई चलो अच्छा है कृष्ण को सुख मिल रहा है ना
▶ ऐसे ही द्वारका की 16108 रानियों का जब पता चला तब भी गोपियों ने यही कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है श्रीकृष्ण को आनंद मिल रहा है
▶ अन्यथा सौत की खबर सुनकर कोई महिला आजतक प्रसन्न हुई है क्या ।
▶ इस प्रसन्नता का कारण केवल कृष्ण सुख । कृष्ण में सच्चा प्रेम ।
▶ यही एक वैष्णव को ध्यान रखना है । अपने नियम । अपने कल्याण । अपनी जो बात करता है वह सकाम भक्ति है । वह प्रेम नहीं है
▶ प्रेम भक्ति तो वही है , और प्रेम भी वही है जिसमें सामने वाले के सुख का, उसके आनंद का , उस की भलाई का । उस की सुविधा का । उसकी इच्छा का । उसका ही ध्यान रखा जाए ।
▶ और आप सोचिए प्रेम में सदा दो लोग होते हैं यदि दोनों लोगों में यही भाव रहे तो हम उसका ध्यान रखेंगे और वह हमारा ध्यान रखेगा
🌹यदि हम श्रीकृष्ण के शरणागत हैं तो
🌹कष्ण भी भक्त पराधीन हैं
▶ नुकसान कुछ होने वाला नहीं है । केवल भावों का अंतर है । अतः कृष्ण भक्ति का अर्थ कृष्ण सुख । कृष्ण प्रेम का अर्थ कृष्ण सुख । और प्रेम का अर्थ ही है कृष्ण का सुख । सामने वाले का सुख । प्रेमी का सुख ।
▶ और तुलसी जी में जल देने का भाव तुलसी जी का आनद । तुलसी जी का सुख ।
🌹नियम तुलसी जी के सुख का लें ।
🌹न कि रोज़ जल देने का ।
▶ हम चिंतन करें कि हम कितने पानी में है
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
No comments:
Post a Comment