Wednesday 7 September 2016

भजन से पाप नाश

​​✔  *भजन से पाप नाश*    ✔

▶ यह बहुत ही गूढ़ विषय है । इस पर पहले भी अनेक बार चर्चा हुई है और शास्त्रों में दोनों प्रकार के पर्याप्त प्रमाण हैं

▶ एक कृष्ण नाम करे सर्व पाप नाश

▶ यह बात चैतन्य चरितामृत में कही गई ह ।  साथ ही यह भी कहा गया है कि अपराधों के कारण  कृष्ण नाम  में पाप क्षय करने जितनी पावर नहीं आ पाती है

▶ इसीलिए जीव को पाप भोगने पड़ते हैं । यह कुछ कुछ ऐसा है जैसे बिजली के करंट की शक्ति और दस्ताने पहनने पर रबड़ की शक्ति ।

▶ रबड़ की शक्ति करंट नहीं लगने देती और बिजली की शक्ति करंट लगाती है । एक कमजोर है एक बलवान है । ऐसा नहीं सोचना है । अपितु दोनों की अपनी-अपनी शक्तियां हैं

▶ जहां नाम की शक्ति है कि वह पाप क्षय करता है वहां कर्म की भी अपनी शक्ति है कि

▶ अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतम कर्म शुभाशुभम

▶ दोनों ही बातों में सामंजस्य बैठाना पड़ेगा । केवल एक बात कि भजन करो कर्म नाश हो जाएगा यह भी अधूरी है

▶ और यह बात के भजन से कुछ नहीं होगा कर्म तो भोगने ही पड़ेगे यह भी अधूरी है

▶ जिस प्रकार हमारा जीवन प्रारब्ध और प्रयास का मिलाजुला रूप है । उसी प्रकार एक वैष्णव का जीवन नाम के द्वारा पाप कटने और कर्म के पाप भोगने का मिलाजुला स्वरूप है

▶ यह जो बात है इसे अदृष्ट भी कहा गया है और अदृष्ट के विषय में ज्यादा चर्चा करने की अनुमति शास्त्र नहीं देता है

▶ हम यदि अनुमान लगाएं तो मेरे 4000 पाप थे और मैं जो नाम करता हूं उससे मेरे 1000 पाप कट गए और 3000 को मुझे भोगना पड़ा अथवा 3,000 कट गए 1000 को मुझे भोगना पड़ा

▶ लेकिन यह अदृष्ट है । यह किसने देखा इसका हिसाब किताब है तो सही लेकिन उपलब्ध नहीं है इसलिए इस पर अधिक चर्चा नहीं करनी चाहिए

▶ यह निश्चित ही है के नाम करने से, भजन करने से पाप कटते हैं । लेकिन भजन का ये मुख्य फल भी नही है । भजन का मुख्य फल भजन म वृद्धि है

▶ एकदम कटके जीरो हो जाते हैं ऐसा नहीं है और यह भी निश्चित है कि हमें अपने बुरे अच्छे कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है चाहे हम कितना ही भजन क्यों न करें

▶ इसके लिए दोनों तरह के उदाहरण है । अपितु संसार में ऐसे उदाहरण अधिक है के परम भजन आनंदी वैष्णवों ने भी शारीरिक कष्ट पाया है और किसी का कष्ट यदि दूर हो गया मृत्यु भी टल गई नाम के बल पर तो वह जिसे पता है उसे पता है

▶ अतः कर्म के विषय में कभी भी बहस में नहीं जाना है और सत्य शास्त्रीय बात यही है कि दोनों का सामंजस्य करते हुए चलना होगा तभी हम शांत और आनंदित रह सकेंगे

▶ एकपक्षीय विचार कभी भी उचित नहीं रहेगा

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

भजन से पाप नाश

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