✔ *अंतरंग या साक्षात भजन ही श्रेष्ठ लक्ष्य* ✔
▶ एक है साक्षात भजन । अर्थात नवविधा भक्ति । और नवविधा भक्ति पूर्ण नाम हैत हैय ।
▶ नाम जप या नाम संकीर्तन ही देखा जाए तो कलयुग का साक्षात भजन है ।क्योंकि नाम और नामी अभिन्न है । अपितु हरि से बड़ा हरि का नाम । कलौ केशव कीर्तनात ।
▶ कुल मिलाकर नाम में निष्ठा । नाम जप । नाम संकीर्तन और यदि प्रभु कृपा करें तो धाम का वास । यह दो चीज हमे यदि प्राप्त हो गई तो समझिए बहुत कुछ प्राप्त हो गया
▶ अब प्रश्न उठता है कि इन दो चीजों के अलावा जो चीजें हैं वह क्या भजन नहीं है ।
▶ नहीं ऐसा नहीं है जेसे यदि हम कहें कि हमारी तो डॉक्टरेट या ph D हो गयी तो इसका अर्थ यह स्वाभाविक ही है कि कक्षा 2 भी पास हो गई । कक्षा आठ भी पास हो गई । इंटर भी पास हो गया । b.a. भी पास हो गई ह ।
▶ ये सारी भक्ति की अनुकूल क्रियाएं हैं । ज्यादातर हम लोग भक्ति की अनुकूल क्रियाओं में ही फंसे रह जाते हैं और उसे ही भक्ति मानने लग जाते हैं
▶ नाम भी करते तो हैं लेकिन प्राथमिकता उन्हीं बाह्य क्रियाओं पर रहती है और उन के चक्कर में कभी कभी हमारा नाम और मूल भजन छूट जाता है और धाम वास को भी हम सेकेंडरी कर देते हैं
▶ भक्ति की अनुकूल जो जो क्रियाएं हैं इनका निषेध बिल्कुल नहीं है । यह वैसे ही है जैसे इंटर करने के लिए आठवीं कक्षा पास करना । लेकिन आठवीं में ही रुके रहना या इन क्रियाओं में ही अटके रहना और नाम के प्रति निष्ठावान ना होना नाम का छूट जाना उचित नहीं ।
▶ यह क्रियाएं हैं
▶ जीवो पर दया
▶ प्रचार
▶ शिष्य बनाना
▶ दैन्य विनम्रता
▶ प्रभात फेरी
▶ धार्मिक आयोजन
▶ वैष्णव सेवा
▶ गंगा यमुना स्नान
▶ तीर्थ यात्रा
▶ दीपदान
▶ परिक्रमा एवम् विभिन्न दर्शन
▶ यज्ञ
▶ लंगर
▶ छबील
▶ गोदान
▶ कर्मकांड
▶ पुन्य
▶ सदाचार आदि आदि
▶ यह सब क्रियाएं इसलिए हैं कि हमारी नाम में या साक्षात भक्ति में रुचि हो । निष्ठा हो । वृद्धि हो ।
▶ यदि यह सब क्रियाएं हो रही हैं और नाम में निष्ठा व रूचि की वृद्धि नहीं हो रही है तो हमें सावधान होना चाहिए
▶ नाम में वृद्धि हो और यह सब छूट भी जाए तो भी कोई बात नहीं । ठीक वैसे जैसे इंटर में आने पर नवमी दशमी 11वीं कक्षा अपने आप छूट जाती है
▶ गुजरना जरूर वहां से पड़ता है । लेकिन वहां अटकना नहीं होता ।
▶ हम चिंतन करें हम बढ़ रहे हैं ना । अटक तो नहीं गए इन बाह्य या सहायक क्रियाओं में ?
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ एक है साक्षात भजन । अर्थात नवविधा भक्ति । और नवविधा भक्ति पूर्ण नाम हैत हैय ।
▶ नाम जप या नाम संकीर्तन ही देखा जाए तो कलयुग का साक्षात भजन है ।क्योंकि नाम और नामी अभिन्न है । अपितु हरि से बड़ा हरि का नाम । कलौ केशव कीर्तनात ।
▶ कुल मिलाकर नाम में निष्ठा । नाम जप । नाम संकीर्तन और यदि प्रभु कृपा करें तो धाम का वास । यह दो चीज हमे यदि प्राप्त हो गई तो समझिए बहुत कुछ प्राप्त हो गया
▶ अब प्रश्न उठता है कि इन दो चीजों के अलावा जो चीजें हैं वह क्या भजन नहीं है ।
▶ नहीं ऐसा नहीं है जेसे यदि हम कहें कि हमारी तो डॉक्टरेट या ph D हो गयी तो इसका अर्थ यह स्वाभाविक ही है कि कक्षा 2 भी पास हो गई । कक्षा आठ भी पास हो गई । इंटर भी पास हो गया । b.a. भी पास हो गई ह ।
▶ ये सारी भक्ति की अनुकूल क्रियाएं हैं । ज्यादातर हम लोग भक्ति की अनुकूल क्रियाओं में ही फंसे रह जाते हैं और उसे ही भक्ति मानने लग जाते हैं
▶ नाम भी करते तो हैं लेकिन प्राथमिकता उन्हीं बाह्य क्रियाओं पर रहती है और उन के चक्कर में कभी कभी हमारा नाम और मूल भजन छूट जाता है और धाम वास को भी हम सेकेंडरी कर देते हैं
▶ भक्ति की अनुकूल जो जो क्रियाएं हैं इनका निषेध बिल्कुल नहीं है । यह वैसे ही है जैसे इंटर करने के लिए आठवीं कक्षा पास करना । लेकिन आठवीं में ही रुके रहना या इन क्रियाओं में ही अटके रहना और नाम के प्रति निष्ठावान ना होना नाम का छूट जाना उचित नहीं ।
▶ यह क्रियाएं हैं
▶ जीवो पर दया
▶ प्रचार
▶ शिष्य बनाना
▶ दैन्य विनम्रता
▶ प्रभात फेरी
▶ धार्मिक आयोजन
▶ वैष्णव सेवा
▶ गंगा यमुना स्नान
▶ तीर्थ यात्रा
▶ दीपदान
▶ परिक्रमा एवम् विभिन्न दर्शन
▶ यज्ञ
▶ लंगर
▶ छबील
▶ गोदान
▶ कर्मकांड
▶ पुन्य
▶ सदाचार आदि आदि
▶ यह सब क्रियाएं इसलिए हैं कि हमारी नाम में या साक्षात भक्ति में रुचि हो । निष्ठा हो । वृद्धि हो ।
▶ यदि यह सब क्रियाएं हो रही हैं और नाम में निष्ठा व रूचि की वृद्धि नहीं हो रही है तो हमें सावधान होना चाहिए
▶ नाम में वृद्धि हो और यह सब छूट भी जाए तो भी कोई बात नहीं । ठीक वैसे जैसे इंटर में आने पर नवमी दशमी 11वीं कक्षा अपने आप छूट जाती है
▶ गुजरना जरूर वहां से पड़ता है । लेकिन वहां अटकना नहीं होता ।
▶ हम चिंतन करें हम बढ़ रहे हैं ना । अटक तो नहीं गए इन बाह्य या सहायक क्रियाओं में ?
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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