Monday, 26 September 2016

​पेट में चाक़ू


​पेट में चाक़ू

✔  *​पेट में चाक़ू*    ✔


▶ कारण या भाव ही मुख्य होता है । देखने में या करने में एक सा लगने वाला कार्य पर निर्भर करता है कि उसमें कारण क्या है या भाव क्या है

▶ हम अपनी बेटी । अपनी मां । अपनी पत्नी । तीनों से आलिंगनबद्ध होकर मिलते हैं
देखने में क्रियाएं एक ही हैं । लेकिन मिलने के भाव में जमीन आसमान का अंतर होता है

▶ बेटी को वात्सल्य देने का भाव होता है
माता से वात्सल्य लेने का भाव होता है और
पत्नी से माधुर्य भाव रहता है

▶ बाह्य क्रिया एक ही है । इसी प्रकार  एक डॉक्टर द्वारा पेट में चाकू घोंपकर पेट को काटना और एक बदमाश व्यक्ति द्वारा आक्रमण कर की पेट को काटना दोनों  क्रियाएं एक ही है । भाव अलग-अलग है ।

▶ इसी प्रकार आज कल मुझसे बहुत सारे लोग पूछते हैं कि हम अपने घर में गोपाल जी की सेवा रखना चाहता हूँ

▶ गोपाल जी का विग्रह रखने में भी भावों की प्रधानता को देखना पड़ेगा । हमें ठाकुर के दर्शन की लालसा है या हमें ठाकुर की सेवा की लालसा है ।

▶ ठाकुर हमारे घर में बने रहे । हम पर कृपा करते रहें । हमारे दुख दूर करते रहें । हमारे घर में संकट ना आए ।

▶ अथवा मिसिज़ वर्मा के घर में भी ठाकुर जी हैं तो हमारे घर में क्यों नहीं । हम भी अपने घर में ठाकुर जी को रखेंगे । हम क्या किसी से कम हैं

▶ अरे हजार दो हजार रुपए महीने का खर्चा ही तो होगा ।  या जैसे घर में और बहुत सारे शोपीस रखे हुए हैं उसी प्रकार एक गोपाल जी का भी शो पीस रख देंगे ।

▶ उनको सजा दिया करेंगे । उनको लाइट लगा देंगे कोई भी आएगा तो उसको बड़ा अच्छा लगेगा यह सारे भाव भी है

▶ यद्यपि ठाकुर के विग्रह की बात कुछ अलग है ठाकुर में एक प्रभाव है । उनके विग्रह की सेवा यदि की जाएगी तो निश्चित ही एक ना एक दिन धीरे धीरे हमारे अंदर भगवत सेवा के  संस्कार पैदा होंगे फिर भी बहुत स्लो

▶ इसलिए जो श्री विग्रह विराजमान करके सेवा करना चाहते है वह अपने भावों को टटोलें । अथवा जो लोग सेवा कर भी रहे हैं वह भी भाव को टटोलें कि वह किस दृष्टि से सेवा कर रहे हैं

 ▶ एक साधक एक जीव का प्रमुख लक्ष्य सेवा द्वारा । भजन द्वारा कृष्ण को सुख पहुंचाना है और इस शरीर की शांति के बाद चिन्मय शरीर द्वारा उनको सुख पहुंचाने वाली उनकी चरण सेवा को प्राप्त करना है

▶ यही मुख्य भाव् होना चाहिए । इसके अतिरिक्त यदि है तो उसमें धीरे सुधार करना चाहिए

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

​पेट में चाक़ू

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