Thursday, 8 September 2016

पाप क्यों करते हैं हम

🦀 पाप क्यों करते हैं हम 🦀

🐌 पराय हम सभी लोग इस संसार में रहते हुए पाप करते ही हैं । पाप भी अनेक प्रकार के हैं

कुछ पाप मन से होते हैं
कुछ वाणी से होते हैं
कुछ शरीर से होते हैं
कुछ धन से होते हैं

🐞मन वाणी शरीर के पापों में भी धन का बहुत बड़ा रोल है । धन में भी अति धन फिर यह क्रम शुरू हो जाता है । पाप के लिए धन कमाना और धन से पाप करना

🐜 वसे तो धर्म अर्थ काम मोक्ष जीवन के चार उद्देश्यों में से एक उद्देश्य धन कमाना भी है

🕷 लकिन धन कमाने की स्थिति उतनी ही होनी चाहिए जितनी

🦂म भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए
साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय

🦀हम वैसे भी शुरु यहीं से करते हैं के । बस दो टाइम की दाल रोटी मिल जाए । लेकिन इस शरीर की रक्षा के लिए दो सादे से वस्त्र । दो समय का भोजन । सर छिपाने को एक घर इसे कहते हैं

🐍रोटी कपड़ा और मकान

🐢लकिन इन तीनों चीजों को हमने हाथी बना दिया है ।। नित्य नई भोजन चाहिए नित नए वस्त्र और आभूषण चाहिए और बहुत सुंदर इंटीरियर डेकोरेटिड मकान चाहिए वह भी पॉश कॉलोनी में । और हमारा जीवन इनकी पूर्ति में ही निकल गया ।

🐠इनकी पूर्ति करने वाले के पास भले ही वह 500000 रुपया महीना कमाता हो सदैव धन की कमी ही रहती है और जो इन में संतुष्ट रहते हैं उनके पास धन की कमी नहीं रहती है

🐟धन की कमी नहीं रहती है तो वे किसी भी प्रकार या पाप से धन कमाने में नहीं लगते हैं ।। वे  तन के लिए पाप नहीं करते हैं जबकि इस प्रकार की धारणा रखने वाले लोग नए नए वस्त्र पहनने वाले धन के लिए पाप करने के लिए मजबूर हो जाते हैं

🐬इसलिए हम से पाप न हो हम अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखें अपितु संतुलित रखें ।

🐳म यह भी नहीं कहता के आप बिल्कुल ही बाबा जी बन जाए । आप अपने सामान्य आय को देखते हुए उसके हिसाब से अपने शरीर की रक्षा भोजन द्वारा वस्त्र द्वारा और मकान द्वारा करते रहें

🐊अवश्य करते रहें लेकिन हम अपनी इच्छाओं को अपनी कामनाओं को इतना न  बढ़ा दें के जितना धन सहज में हमें प्राप्त हो रहा है वह कम पड़ जाए

और पाप करके
उधार लेके
बेईमानी कर के
भाइयों का हक मार के
दूसरे दूसरे लोगों का हक मार के

🐆हम उस धन से अपनी इन भोगविलास वस्त्र आदि की इच्छाओं को पूरा कदापि न करें

🐘इस प्रकार से जो धन मानव का लक्ष्य था उसमें अतिवादिता आने पर । असंतुलन आने पर वह धन ही अर्थ से अनर्थ हो जाता है और पाप का कारण बन जाता है

🐎पाप का कारण धन और धन का कारण पाप यह फिर ऐसा चक्र चल जाता है कि इस चक्र से निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है

🐓अतः हम सावधानी रखें के यह चक्कर प्रारंभ ही ना हो और येन केन प्रकारेण शरीर को जरूरत मुताबिक सुविधा देते हुए भजन पर हम केंद्रित हो जाएं जिससे हमारा भजन बनता रहे क्योंकि यह शरीर । यह मानव जीवन भजन के लिए मिला है । सुखों को पूरा करने के लिए नहीं

🌳🌳और यदि हम शौकों को पूरा करने में लगे हैं तो अपने आप को वैष्णव कहने में हमें 10 बार सोचना चाहिए

समस्त वैष्णव जन को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

पाप क्यों करते हैं हम

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