✔ *अर्थ और अनर्थ* ✔
▶ धर्म अर्थ काम मोक्ष
यह चार मनुष्य के पुरुषार्थ हैं । पुरुषार्थ माने इन चारों को अथवा चार में से किसी एक को प्राप्त करने के लिए पुरुष का, जन्म हुआ है ।
▶ यह लौकिक हैं इसके अतिरिक्त एक गुप्त एवं गोपनीय पुरुषार्थ भी है जिसे कहते हैं पंचम पुरुषार्थ प्रेम । अर्थात भगवान से प्रेम, भगवान के चरणों की सेवा ।
▶ आज अर्थ की बात करते हैं
▶ मेहनत, ईमानदारी एवं नीति पूर्ण कार्यों से अपनी आवश्यकता के अनुसार धन कमाना ही अर्थ है ।
▶ साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए
▶ इतना धन यदि हम न्याय पूर्वक अर्जित करते हैं तो यह है अर्थ । इसके विपरीत चाल चपट, बेईमानी, किसी का हक मार के या आवश्यकता ना होने पर भी पैसा पैसा पैसा करते हुए धन कमाते हैं
▶ धन से प्राप्त होने वाले
सुख सुविधाओं को भी नहीं भोगते हैं
▶ Money is only for more money
वाली स्थिति में यदि हम हैं । झूठ कपट छल । येन केन प्रकारेण और पैसा और पैसा और धन और धन और अर्थ और अर्थ यदि हम करते हैं तो इसका नाम अर्थ नहीं इसका नाम अनर्थ हो जाता है
▶ आजकल हमारा जीवन अर्थ या धन के इर्द-गिर्द ही घूमता है । हमारा भोजन धन से आता है हमारी सुख सुविधाएं धन से आती ह । हमारा सारा जीवन चक्र अर्थ या धन के इर्द-गिर्द है
▶ यदि हमारा अर्थ दूषित होकर अनर्थ हो जाएगा तो हमारे जीवन में कभी भी सुख-शांति स्नेह प्यार मान सम्मान नहीं रहेगा हमारा पूरा जीवन अनर्थों से घिरा रहेगा ।
▶ क्योंकि जड़ों में जो है धन या अर्थ
वह अर्थ नहीं अनर्थ है
▶ इसके विपरीत यदि हमारा धन या अर्थ शुद्ध होगा तो हमारे जीवन में सुख-शांति सनेह, प्यार आदि बना रहेगा
▶ इसका एक क्रम है
धन से ही अन्न आता है और
जैसा होगा अन्न वैसा होगा मन
जैसा होगा मन वैसे ही मन में विचार आएंगे
जेसे विचार । वेसा आचरण ।
जैसा आचरण वेसा जीवन ।
शांत या अशांत ।
▶ धन दूषित होगा तो अन्न दूषित हो जाएगा
अन्न दूषित होगा तो मन दूषित हो जाएगा
मन दूषित होगा तो विचार दूषित हो जाएंगे
और विचार दूषित होंगे तो आचरण दूषित आचरण दूषित हो जाएगा तो पूरा
जीवनक्रम दूषित हो जाएगा
▶ न शांति होगी, न आनंद होगा, ना संतुष्टि होगी कुछ नहीं होगा । होंगे केवल अनर्थ ही अनर्थ
▶ अतः अनर्थ की जड़ अर्थ पर केंद्रित करें और हम चेष्टा रखें कि हमारे पास अनर्थ ना आए । अर्थ ही आए। जैसा होगा धन । वेसा होगा अन्न । वेसा होगा मन ।
▶ एक बार फिर से सार लिखते हैं सर्वप्रथम है धन धन से अन्न । अन्न से मन । मनसे विचार । विचार से आचरण । और आचरण से शांति आनंद या अशांति ।
▶ निर्णय हमारा । खुद का ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ धर्म अर्थ काम मोक्ष
यह चार मनुष्य के पुरुषार्थ हैं । पुरुषार्थ माने इन चारों को अथवा चार में से किसी एक को प्राप्त करने के लिए पुरुष का, जन्म हुआ है ।
▶ यह लौकिक हैं इसके अतिरिक्त एक गुप्त एवं गोपनीय पुरुषार्थ भी है जिसे कहते हैं पंचम पुरुषार्थ प्रेम । अर्थात भगवान से प्रेम, भगवान के चरणों की सेवा ।
▶ आज अर्थ की बात करते हैं
▶ मेहनत, ईमानदारी एवं नीति पूर्ण कार्यों से अपनी आवश्यकता के अनुसार धन कमाना ही अर्थ है ।
▶ साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय
मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए
▶ इतना धन यदि हम न्याय पूर्वक अर्जित करते हैं तो यह है अर्थ । इसके विपरीत चाल चपट, बेईमानी, किसी का हक मार के या आवश्यकता ना होने पर भी पैसा पैसा पैसा करते हुए धन कमाते हैं
▶ धन से प्राप्त होने वाले
सुख सुविधाओं को भी नहीं भोगते हैं
▶ Money is only for more money
वाली स्थिति में यदि हम हैं । झूठ कपट छल । येन केन प्रकारेण और पैसा और पैसा और धन और धन और अर्थ और अर्थ यदि हम करते हैं तो इसका नाम अर्थ नहीं इसका नाम अनर्थ हो जाता है
▶ आजकल हमारा जीवन अर्थ या धन के इर्द-गिर्द ही घूमता है । हमारा भोजन धन से आता है हमारी सुख सुविधाएं धन से आती ह । हमारा सारा जीवन चक्र अर्थ या धन के इर्द-गिर्द है
▶ यदि हमारा अर्थ दूषित होकर अनर्थ हो जाएगा तो हमारे जीवन में कभी भी सुख-शांति स्नेह प्यार मान सम्मान नहीं रहेगा हमारा पूरा जीवन अनर्थों से घिरा रहेगा ।
▶ क्योंकि जड़ों में जो है धन या अर्थ
वह अर्थ नहीं अनर्थ है
▶ इसके विपरीत यदि हमारा धन या अर्थ शुद्ध होगा तो हमारे जीवन में सुख-शांति सनेह, प्यार आदि बना रहेगा
▶ इसका एक क्रम है
धन से ही अन्न आता है और
जैसा होगा अन्न वैसा होगा मन
जैसा होगा मन वैसे ही मन में विचार आएंगे
जेसे विचार । वेसा आचरण ।
जैसा आचरण वेसा जीवन ।
शांत या अशांत ।
▶ धन दूषित होगा तो अन्न दूषित हो जाएगा
अन्न दूषित होगा तो मन दूषित हो जाएगा
मन दूषित होगा तो विचार दूषित हो जाएंगे
और विचार दूषित होंगे तो आचरण दूषित आचरण दूषित हो जाएगा तो पूरा
जीवनक्रम दूषित हो जाएगा
▶ न शांति होगी, न आनंद होगा, ना संतुष्टि होगी कुछ नहीं होगा । होंगे केवल अनर्थ ही अनर्थ
▶ अतः अनर्थ की जड़ अर्थ पर केंद्रित करें और हम चेष्टा रखें कि हमारे पास अनर्थ ना आए । अर्थ ही आए। जैसा होगा धन । वेसा होगा अन्न । वेसा होगा मन ।
▶ एक बार फिर से सार लिखते हैं सर्वप्रथम है धन धन से अन्न । अन्न से मन । मनसे विचार । विचार से आचरण । और आचरण से शांति आनंद या अशांति ।
▶ निर्णय हमारा । खुद का ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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