✔ *अनर्थ निवृत्ति* ✔
▶ भक्ति के क्रम विकास में चौथे नंबर पर
अनर्थ निवृत्ति का वर्णन है
▶ अर्थात पहले श्रद्धा होती है
भजन आनंदी वैष्णवों का संग होता है
उसके बाद भजन करना प्रारंभ होता है
उसके बाद अनर्थों की निवृत्ति होती है
इसके बाद फिर 5 से 8 तक है
▶ अनर्थ निवृत्ति का जहां माधुर्य कादंबिनी में वर्णन किया गया है । वहाँ समस्त प्रकार के पाप अमंगल के नष्ट होने की बात कही गई है
▶ लेकिन इसमें सूक्ष्मता यही है कि जो पाप, जो अड़चनें भगवान की भक्ति में होती हैं । वही अनर्थ है और उनको ही दूर किया जाता है । अथवा दूर होती हैं
▶ कुछ ऐसी अड़चने जो दिखने में तो पाप का फल लगती हैं लेकिन वह भक्ति में कदापि बाधा नहीं करते । अपितु देखा जाए तो सहायक होती है । वे दूर नही होती ।
▶ उदाहरण के लिए । कोई संत हैं । अच्छे संत है। वह यदि बिस्तर पर हैं और चल फिर नहीं सकते हैं । हम लोगों को तो यह अनर्थ दिखता है।
▶ लेकिन वास्तव में यह उन संत के भजन में सहायक है । हम सोचे यदि वह संत चल फिर सकते । तो आज मेरे घर मुख्य अतिथि बनकर । कल दिल्ली में । परसों पुरी में । अगले दिन इलाहाबाद में । अगले दिन उड़ीसा में । वह आते रहते जाते रहते । भाषण देते रहते । लोगों से मिलते ।
▶ और उनका जो एक बिस्तर पर रहते हुए अंतरंग भजन हो रहा है वह कदापि नहीं होता । बाह्य वृत्तियों में लगने के कारण उनकी भोजन में अशुद्धि होती । वृत्ति में चंचलता होती । धाम छूटता और भी न जाने कितने कितने क्लेश राग-द्वेष उनकी जान खाते ।
▶ अतः उनका यह बिस्तर पर लेटे रहना अनर्थ नहीं है अपितु भजन में सहायता ही है । तो ऐसी चीजों को, ऐसे दोषों को, जो लगते तो दोष हैं लेकिन वह दोष नहीं है । भजन में सहायक हैं, ऐसे अनर्थ लगने वाले स्थितियोंको जानबूझकर भजन नष्ट नहीं करता है ।
▶ क्योंकि यह वास्तव में भजन जगत के अनर्थ है ही नहीं । हमें यह अनर्थ लगते हैं । यह भजन के सहायक हैं ।
▶ और भजन के विरोधी जो अनर्थ होते हैं, उनको भजन से अनर्थ निवृत्ति के अंतर्गत भजन क्रिया नष्ट कर देती है । बहुत सूक्ष्म चिंतन है । दीखता क्या है होता क्या है । वाह । जय जय ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ भक्ति के क्रम विकास में चौथे नंबर पर
अनर्थ निवृत्ति का वर्णन है
▶ अर्थात पहले श्रद्धा होती है
भजन आनंदी वैष्णवों का संग होता है
उसके बाद भजन करना प्रारंभ होता है
उसके बाद अनर्थों की निवृत्ति होती है
इसके बाद फिर 5 से 8 तक है
▶ अनर्थ निवृत्ति का जहां माधुर्य कादंबिनी में वर्णन किया गया है । वहाँ समस्त प्रकार के पाप अमंगल के नष्ट होने की बात कही गई है
▶ लेकिन इसमें सूक्ष्मता यही है कि जो पाप, जो अड़चनें भगवान की भक्ति में होती हैं । वही अनर्थ है और उनको ही दूर किया जाता है । अथवा दूर होती हैं
▶ कुछ ऐसी अड़चने जो दिखने में तो पाप का फल लगती हैं लेकिन वह भक्ति में कदापि बाधा नहीं करते । अपितु देखा जाए तो सहायक होती है । वे दूर नही होती ।
▶ उदाहरण के लिए । कोई संत हैं । अच्छे संत है। वह यदि बिस्तर पर हैं और चल फिर नहीं सकते हैं । हम लोगों को तो यह अनर्थ दिखता है।
▶ लेकिन वास्तव में यह उन संत के भजन में सहायक है । हम सोचे यदि वह संत चल फिर सकते । तो आज मेरे घर मुख्य अतिथि बनकर । कल दिल्ली में । परसों पुरी में । अगले दिन इलाहाबाद में । अगले दिन उड़ीसा में । वह आते रहते जाते रहते । भाषण देते रहते । लोगों से मिलते ।
▶ और उनका जो एक बिस्तर पर रहते हुए अंतरंग भजन हो रहा है वह कदापि नहीं होता । बाह्य वृत्तियों में लगने के कारण उनकी भोजन में अशुद्धि होती । वृत्ति में चंचलता होती । धाम छूटता और भी न जाने कितने कितने क्लेश राग-द्वेष उनकी जान खाते ।
▶ अतः उनका यह बिस्तर पर लेटे रहना अनर्थ नहीं है अपितु भजन में सहायता ही है । तो ऐसी चीजों को, ऐसे दोषों को, जो लगते तो दोष हैं लेकिन वह दोष नहीं है । भजन में सहायक हैं, ऐसे अनर्थ लगने वाले स्थितियोंको जानबूझकर भजन नष्ट नहीं करता है ।
▶ क्योंकि यह वास्तव में भजन जगत के अनर्थ है ही नहीं । हमें यह अनर्थ लगते हैं । यह भजन के सहायक हैं ।
▶ और भजन के विरोधी जो अनर्थ होते हैं, उनको भजन से अनर्थ निवृत्ति के अंतर्गत भजन क्रिया नष्ट कर देती है । बहुत सूक्ष्म चिंतन है । दीखता क्या है होता क्या है । वाह । जय जय ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn