▶ सर्वोत्तम तो यह हैं कि
सामने वाले को सपने से अधिक विज्ञ
मानकर उस से सीखने का प्रयास करें|
अपने को कम विज्ञ मानें |
▶ मध्यम यह है कि उसे मुर्ख न मानकर
अपने समान विज्ञ मानें और कुछ
सीखे | कुछ सिखाएं |
▶ अधम यह हैं कि उसे मुर्क समझें
और अपने को विद्वान-ऐसा होने
पर बहस होगी | ज्ञान का
आदान-प्रदान नही होगा |
▶ वैसे भी बुद्धिमानी अधिक से अधिक ज्ञान
लेने में हैं | देना तो तब है, जब
कोई लेने का उत्सुक हो
▶ फिर भी मर्ज़ी आपकी |
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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