Friday, 5 August 2016

भोजन शयन और भजन

    *भोजन शयन और भजन*       

हमारे दैनिक जीवन में अनेक बार
कुछ अस्वस्थता
कुछ क्लेश
कुछ घटनाएं
कुछ दुर्घटनाएं

होती रहती है । इन सब घटना दुर्घटनाओं के कारण हमारी दिनचर्या अव्यवस्थित होती है

दिनचर्या में हमारा स्नान, हमारा भोजन, हमारी शयन, और सबसे महत्वपूर्ण हमारा भजन अव्यवस्थित होता है

लेकिन यदि थोड़ा चिंतन करें तो न तो हम भोजन छोड़ते हैं आधा अधूरा टाइम बेटाइम कम अधिक कैसे भी कर लेते हैं

न हम शयन छोड़ते हैं रात में दिन में सुबह शाम कैसे भी कर लेते हैं । इसी प्रकार जो भजन निष्ठ हैं वह भजन भी नहीं छोड़ते हैं ।

आधा अधूरा, लेट देर रात में, दिन म,  सुबह में शाम में , जल्दी जल्दी, कम संख्या, अधिक संख्या, भाग के, दौड़ के, शुद्धि अशुद्धि, कैसे भी कर लेते हैं

लेकिन मुझ जैसे अधकचरे साधक का यदि सबसे पहले कुछ छूटता है तो भजन ही छूटता है भोजन की क्षति पूर्ति हो जाती है
स्नान की हो जाती है
 शयन की हो जाती है
और भजन छूट जाता है
एक बार का छूटा हुआ भजन दोबारा जाने कब लाइन पर आएगा कोई भरोसा नहीं है

अतः मेरा निवेदन है की भजन को भी टेढ़ा सीधा, कम अधिक, देर सबेर, सुबह श्याम, आधा परदा, जैसा बने वैसा अवश्य करते ही रहे

 और मन में एक खेद बना रहे के भजन कब पूरा होगा कब फिर से भजन में निश्चिंतता पूर्वक में लगूंगा । इस प्रकार लगे रहने से जो कमी है वह बहुत जल्दी दूर हो जाएगी

इससे भजन छूटेगा नहीं, अव्यवस्थित हो जाएगा और अव्यवस्थित भजन फिर बहुत जल्दी ही व्यवस्थित हो जाएगा

भजन के बल से, नाम के बल से, नाम की कृपा से ही शीघ्र ही पुनः हम अपनी पुरानी स्थिति में आ जाएंगे

इसलिए भजन को भी शायद भोजन, प्राण, स्नान आदि की भांति महत्वपूर्ण स्थान देने का काम केवल हमें करना है । बाकी सब काम अपने आप हो जाएगा
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  🐚


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn

भोजन शयन और भजन

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