Sunday, 1 May 2016

✅ शुद्ध या अशुद्ध ✅




जीव श्री कृष्ण की ही एक शक्ति है| वह परम शुद्ध है| लेकिन वह कृष्ण की भाँती पूर्ण स्वतन्त्र नहीं, बद्ध है|
जीव हमारे शरीर का आश्रय लेकर हमारे शरीर में रहता है| जब तक जीव है तब तक हम जीवित हैं| जीव के चले जाने के बाद हमे लाश या बौडी कहा जाता है और तुरन्त डिस्पोज करने का प्रयास होता है|
हमारा शरीर नितांत शुद्ध तत्वों से पूर्ण है - जैसे खून, पीक, मांस, मज्जामूत्र, मल, थूक आदि-आदि|
लेकिन ये समस्त तत्व जब तक शरीर के अन्दर रहते हैं तब तक इनका सम्पर्क या कनेक्शन शुद्ध जीव से बना रहता है और परम अशुद्ध होते हुए भी ये शुद्ध होते हैं और शरीर संचालन करते हैं|
जैसे ही ये तत्व शरीर से बाहर आते है- इनका सम्बन्ध शुद्ध जीव से टूट जाता है और वे अशुद्ध और घृणित हो जाते हैं| और महसूस करने की बात है की मल मूत्र पेट में भरे होने पर कभी भी दुर्गन्ध नहीं देते हैं| बाहर आने पर तीव्र दुर्गन्ध देते हैं|
कारण वही है 'जीव' से सम्बद्धता| जैसे शरीर जब जीव से अलग हो जाता है तो अशुद्ध होता है- लाश हो जाता है उसी प्रकार मल-मूत्र-खून-कफ़ आदि जब शरीर में स्थित जीव से, अलग होता है तो घृणित बन जाते हैं|
शरीर में रहते हुए- ये कभी अशुद्ध मान्य नहीं है| थूक सर्वथा मुख में रहता ही है| लेकिन मुख से निकलते ही वह अशुद्ध व थूक हो जाता है|
जब तक वह मुख में है, इसका कनेक्शन जीव से बना रहता है- मुख से बाहर आते ही कनेक्शन समाप्त होने पर वह त्याज्य है, अशुद्ध है, हाथ धोने पड़ते है|
जीव के निकलते ही वही शरीर अशुद्ध हो जाता है, जिसे लोग रोज प्रणाम करते थे| एक दो दिन नहीं घर में 12 दिन की अशुधि पातक- सूतक लग जाता है| यह जीव से पृथक  होने का ही परिणाम है|
ये कुछ ऐसे सत्य और प्रमाण है, जो हम रोज अनुभव करते हैं| केवल ध्यान देने से ध्यान जाता है| और ध्यान तभी जाता है जब चित्त शुद्ध हो और चित्त शुद्ध होता है संख्या सहित नाम जप करने से|
चित्त भी एक तत्व है, जब तक ये नाम जप से कनेक्टेड रहत है- ये शुद्ध रहता है| जेसे ही ये नाम जप या भगवत चिंतन से निकल कर संसार चिंतन और रागद्वेष में आता है- वह भी मलिन हो जाता है| अत: नाम जप द्वारा इसकी अधिकाधिक कनेक्टिविटी नाम के साथ रखनी चाहिए जिससे ये अधिकाधिक निर्मल बना रहे
और जब तक कनेक्टिविटी है, तब तक यह बड़े काम की चीज बना रहेगा, कनेक्टिविटी समाप्त होते ही- यही चित्त हमारे सत्यनाश का कारण बनता है|
   
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  🐚
 
 सम्पादकीय - श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/02/514, फरवरी  2015 )
 
 

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