▶ श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी के एक शिष्य थे।एकादशी व्रत के दिन मुख में पान चबाते हुए उन्हें प्रणाम करने आए और अति रोमांचित व् गदगद स्वर में श्री गुरुदेव को बताया कि गुरुदेव आपकी कृपा से या पान स्वयं श्री राधारानी ने मुझे आज अपने हाथ से दिया और मैंने पा लिया
▶ श्री गोपाल भट्ट ने रोष भरे नेत्रों से देखा और कहा आज तो तुम्हारा व्रत है ? व्रत में ताम्बूल ? पान? ये क्या तुमने ?प्रभु यह प्रसादी साक्षात श्री प्रियाजी ने दिया है तो क्या तुम बिना प्रसादी भी खाते हो जो खाते हो प्रसादी ही तो होता है और देने वाला तो श्री राधारानी है प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लेकिन तुमने शास्त्र विधि का भजन का उल्लंघन किया है अतः आज से तुम मेरे शिष्य नहीं मैं तुम्हारे गुरु नहीं कहीं अन्यंत्र आश्रय खोजो
▶और शिष्य महोदय बहुत ही विहल दशा में गुरुदेव को प्रणाम कर चले गये। पुनः कभी नहीं आये।अब प्रश्न यह है कि साधनों का फल तो श्री कृष्ण दर्शन कृष्ण कृपा है जो साक्षात् प्राप्त हुई श्री राधा रानी के द्वारा प्रदत्त पान द्वारा फिर भी एकादशी व्रत खण्डन के लिए शिष्य और ऐसा शिष्य जिसे प्रिया जी ने स्वच्विर्त दिया हो उसका त्याग कुछ तो रहस्य होगा।
▶ दूसरा उधारण हैं पुण्डलिक जी का। अपने गुरुदेव से पुण्डलिक जी ने पूछा तो मुझे भगवान के दर्शन कैसे होंगे गुरुदेव ने उसके विषय में जाना और काहा तुम भगवत दर्शन को अपना लक्ष्य रखते हुये अपने माता पिता की सेवा करो ध्यान रहे लक्ष्य माता पिता की सेवा नहीं लक्ष्य भगवत दर्शन साधन माता पिता की सेवा कितना सूक्ष्म चिंतन है तो वह तो माता पिता की सेवा हो रही है लेकिन यह सेवा करने का लक्ष्य क्या है भाव क्या है इसमें बहुत अंतर पड़ता है।
▶मैं यह निबंध लिख रहा हूं यदि भगवत गुणगान है तो भक्ति का अंग है और यदि इसे लिखने पर मुझे ₹5000 मिलते हैं तो यह व्यापार हो गया एक ही कार्य के अनेक रुप अस्तु
सेवा हुई एक दिन प्रभु दरवाज़े पर आ गये।पुण्डलिक द्वार खोलो कौन? मैं विट्ठल !प्रभु! आप बड़ी कृपा जो आप आये लेकिन इंतजार करो अभी मेरी गोद में माँ सोई है। पिता के चरण दबा रहा हूं इन्हें छोड़कर दरवाजा खोलने नहीं उठ सकता आप द्वार पर इंतजार कीजिये ।
▶ पुण्डलिक मुझे कितना इंतजार करना होगा?प्रभु! कोई पता नहीं जब मां की नींद खुलेगी तब तक ।आप थक गए हो तो पास में एक पड़ी उसमें से एक ईंटे लेकर उस पर बैठ जायँ। प्रश्न फिर वही कि जिस प्रभु के लिये साधन किया वह प्रभु सामने हैं लेकिन प्रभु की उपेक्षा रही है साधन नहीं कुछ रहस्य से होगा यहाँ भी उदाहरण वैसेे तो अनेक है लेकिन अंतिम व तीसरा उदाहरण गोडिया गोस्वामी अग्रयगण्य श्री सनातन गोस्वामीपाद मदन मोहन जी के साक्षात वार्तालाप होता है । आज श्री मदनमोहन ने कहा बाबा तू इस आटे की बाटी मुझे रोज खिलाता है। मैं माखन मिश्री खाने वाला ग्वाल नन्द महाराज का पुत्र! तू कम से कम इस में नमक तो डाल दिया कर बिना नमक की बाटी कैसे खाऊ मैं।
▶ बोले प्रभु प्रभु आज नमक मांगते हो ।कल चीनी। परसो माखन ।फिर कुछ और ।मैं ठहरा विरक्त बाबा तुम्हारी यह मांगे में कब तक कैसे पूरी करूँगा? मैं तो तुम्हारी ऐसी व्यवस्था में ही लगा रहूँगा तो भजन कब करूँगा? प्रश्न फिर वही कहा वहीं प्रभु के नमक की व्यवस्था क्या भजन नहीं ।कुछ तो रहस्य होगा यहां भी। मेरे समझ में यह नहीं आता कि प्रभु का भजन प्रभु का गुणगान लीला गान साधन तो है ही ।साध्य भी है और प्रभु को भी परम प्रिय एवं सुख का प्रदाता भी है।प्रभु अपनी उपेक्षा सहन कर लेते हैं ।लेकिन अपने भजन अपनी लीला गुण कथा करने वाले के वशीभूत रहते हैं। और तीनो उदाहरण में प्रभु प्रसन्न ही दिखे।न सनातन प्रभु से रुष्ट हुये।ना पुण्डलिक से ।ना श्री गोपाल भट्ट जी के शिष्य से ।एक बात और है कि अपनी इस भूमि पर की हुई लीला कथाओं को श्री कृष्ण सपरिकर गोलोक में भी इन्हें नियम से स्निग्ध कण्ठ और मधुकण्ठ से श्री गोपाल चम्पू के माध्यम से सुनते हैं।
▶ दूसरी बात यह भी है कि जिन्हें श्री कृष्ण प्राप्त है। उन्हें श्री कृष्ण प्राप्ति के पश्चात उनकी सेवा,उनका का भजन उनकी गुण लीला गान द्वारा ही तो उन्हें प्रसन्न करना है ।इसलिये श्री कृष्ण प्राप्ति पर भी सन्त जन उनका भजन अथवा वह साधन कभी भी नहीं छोड़ते हैं जिनसे श्रीकृष्ण प्राप्त हुए। अतः सार का सार हुआ भजन। भजन। भजन। और भजनेर मधये श्रेष्ठ नवविधा भक्ति एवं नवविधा भक्ति पूर्ण नाम हेतै हय।
▶ नाम संकेत अन्य नाम का अर्थ श्री कृष्ण प्राप्ति पर भी नहीं छोड़ना है प्राप्ति से पहले छोड़ने का तो प्रश्न ही नहीं और छोड़ेंगे तो सबसे पहले पकड़ा हो और यदि नाम का आश्रय ही नहीं लिया तो भैया- राधे राधे श्याम मिला दे।।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
▶ सम्पादकीय - श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/04/516 , अप्रैल 2015 )
No comments:
Post a Comment