Sunday, 27 November 2011

150. samdarshi


samdarshi


समदर्शी
जिसने अपने मन एवं इन्द्रियों को वश कर लिया हो  
राग द्वेष, दुःख सुख, हानी लाभ जीवन मरण मैं सामान रहता है, 
न दुःख मै व्याकुल होता है,न सुख मैं फूलता है, 
उसका अंत: करण सदैव ही प्रसन्न रहता है

एसा प्रसन्न अंत:करण वाला व्यक्ति को विषयों से विचरना  भी पड़ता  है तो 
उसका दुस्प्रभाव क्रोध आदि उसे नहीं होता है
और अपने भजन - साधन पर केन्द्रित होता हुआ शीघ्र ही वह प्रभु-कृपा को प्राप्त कर लेता है 


JAI SHRI RADHE - RADHE


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