-अन्न खाने से ही शरीर की रक्षा होती हैं
शरीर से ही प्राणी उत्पन्न होते हैं अर्थात प्राणी अन्न से ही पैदा होते हैं
- अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है
- वर्षा यज्ञ से होती है
- यज्ञ 'करने' से '' यानी कर्म से '' ही होता होता है
- कर्म का आदेश वेद से उत्पन्न है
- वेद अविनाशी परमात्मा से ही उत्पन्न हुआ है
- अत: एक पुरुष को यज्ञ रूपी कर्म अवश्य ही करना चाहिए :
"तीव्रेण भक्ति योगेन यजेत पुरुषम परम"
- यानी तीव्र भक्ति योग से परमपुरुष का यज्ञ करना चहिये |
- भगवद भक्ति ही सवश्रेष्ठ कर्म यज्ञ है |
No comments:
Post a Comment