ये प्रवृत्ति व निवृत्ति दोनों को नहीं जानते
इनमे बाह्य शुद्धि का अभाब, श्रेष्ठ आचरण का अभाब, सत्य भाषण का अभाब होता है
जगत का कारन काम है :ये जगत स्त्री पुरुष के संयोग से बना है
विषय भोगों मैं तत्पर रहते हुए - इन्हीं को ही परम सुख मानते हैं
विषय भोगों हेतु अन्याय अधर्म पूर्वक अर्थ उपार्जन करते हैं
इनता धन हो गया इतना और हो जायेगा |
ये शत्रु मारा गया इसे और मार देंगे |
मैं ही सर्व समर्थ हूँ | बलवान हूँ | समस्त सुखों को भोग रहा हूँ |
मेरा ही तो राज है
मैं धनी हूँ | बड़े कुटुम्भ बाला हूँ | मेरे सामान कों है | मेरे पास सब साधन हैं |
मैं ही श्रेष्ठ हूँ, अहंकार | बल | घमंड | कामना | क्रोध आदि के वशीभूत होकर दूसरों की निंदा करता है
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
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