Monday 14 November 2011

139. शास्त्र आज्ञा



शास्त्र विधि को त्याग कर जो मनमाना आचरण करते हैं 
वह न लक्ष्य प्राप्त करते है न परम गति |

शास्त्र के आदेश का पालन ही पुण्य है और शास्त्र आदेश 
का उलंघन ही पाप हैं |

बुद्धि से सोचो तो 
ढोलक एक मरे हुए जीव की खाल से बजती है
शंख एक जीव की हड्डी है
शहद मक्खियों का थूक ही है
गोबर गाय का मल ही है
गो-मूत्र गाय  का पेशाब ही है 
लेकिन शास्त्र में इनका निषेध नहीं है, अपितु ये सब ठाकुर की सेवा में प्रयोग होते हैं 

अतः बुद्धि से भी ऊपर सर्वोपरि है शास्त्र
संदेह रहित होकर शास्त्राज्ञा का ही पालन करने से कल्याण होगा
JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

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