Friday, 25 November 2011

148. नियम - भंग : दोष या कृपा


नियम - भंग : दोष या कृपा


महान उद्देश्य की प्राप्ति में छोटे उद्देश्य कभी-कभी
कब छूट जाते है, एक श्रेष्ठ साधक को इसका पता भी नहीं चल पाता

महान उद्देश्य यदि प्राप्त हो रहा है, या प्राप्त हो गया है तो
छोटे उद्देश्यों की अनदेखी कोई अपराध नहीं है

कही कोई नियम यदि भंग हुए है,
तो एक सामान्य साधक को उसकी आलोचना की बजाय
उसकी उपलब्धि को प्रणाम करना चाहिए
 और अपना पथ प्रशस्त करना चाहिए

कभी कभी लौकिक दोष ही कृपा का आश्रय बन जाते है
जैसे - श्री सूरदास का अंधा होना


वैसे भी कृपा प्राप्त वैष्णवों की शैली को समझना
अपने आप में एक कठिन कार्य है
ऐसे पुरुष जो कहते हैं, वह करो, जो करते हैं : वह 
न करो, न देखो  

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