Wednesday, 30 November 2011
152. kis me कौन हूँ मैं
सब प्राणियों मैं स्थित - आत्मा
प्राणियों का - आदि, मध्य, अंत यानी जन्म जीवन मृत्यु
अदिति के बारह पुत्रों मैं - विष्णु
ज्योतियों मैं - सूर्य
उन्चाश देवताओं मैं - तेज
नसत्रों का अधिपति - चन्द्र
वेदों मैं - सामवेद
इन्द्रियों मैं - मन
प्राणियों मैं - जीवन शक्ति
एकादश रुद्रों मैं - शंकर
यक्ष - राक्षसों मैं - कुबेर
आठ वसुओं मैं - अग्नि
पर्वतों मैं - सुमेरु
पुरोहितों मैं - ब्रहस्पति
सेनापतियों मैं - स्कन्द
जलाशयों मैं - समुद्र
महर्षियों मैं - भ्रगु
शब्दों मैं - ॐ
यज्ञों मैं - जप यग्य
स्थिर रहने वालों मैं - हिमालय
वृक्षों मैं - पीपल
देवर्षियों मैं - नारद
JAI SHRI RADHE
Monday, 28 November 2011
151. किसकी पत्नी कौन ?
पति - पत्नी
ब्रह्मा - सावित्री
इन्द्र - शची
कुबेर - रिध्धि
वरुण - गौरी
पवन - शिवा
अग्नि - स्वाहा
यमराज - धुर्मोर्ना
सूर्य - छाया
-
JAI SHRI RADHE
Sunday, 27 November 2011
150. samdarshi
समदर्शी
जिसने अपने मन एवं इन्द्रियों को वश कर लिया हो
राग द्वेष, दुःख सुख, हानी लाभ जीवन मरण मैं सामान रहता है,
न दुःख मै व्याकुल होता है,न सुख मैं फूलता है,
उसका अंत: करण सदैव ही प्रसन्न रहता है
एसा प्रसन्न अंत:करण वाला व्यक्ति को विषयों से विचरना भी पड़ता है तो
उसका दुस्प्रभाव क्रोध आदि उसे नहीं होता है
और अपने भजन - साधन पर केन्द्रित होता हुआ शीघ्र ही वह प्रभु-कृपा को प्राप्त कर लेता है
JAI SHRI RADHE - RADHE
Saturday, 26 November 2011
149. विकलता
नित्य - निरंतर नाम-जप व् प्रार्थना
प्रेम प्राप्ति हेतु परम आवश्यक अंग हैं
नाम - जप नियमित हो, संख्या पूर्वक हो,
साथ ही पूर्ण निष्ठा - पूर्वक हो, यह भी आवश्यक है
हाथ-पैर मारकर किसी प्रकार से उलटा - सीधा एक लाख
नाम - जप करने की अपक्षा अति श्रद्धापूर्वक दस - पांच माला
करना अधिक प्रभावी हो सकता है
साथ ही प्रभु - भजन में परम महत्वपूर्ण है - 'विकलता' यानी 'तड़फ'
भजन करते समय प्रति क्षण ये तड़फ बनी रहे - 'क्यों ? आखिर क्यों ?
आपने प्रभु ! मुझ पर कृपा क्यों नहीं की ?????
यह तड़फ या विकलता पैदा होते ही फिर प्रभु अधिक देर तक
अपने आप को रोक नहीं पाएंगे !!!!!!!!!!!
Friday, 25 November 2011
148. नियम - भंग : दोष या कृपा
महान उद्देश्य की प्राप्ति में छोटे उद्देश्य कभी-कभी
कब छूट जाते है, एक श्रेष्ठ साधक को इसका पता भी नहीं चल पाता
महान उद्देश्य यदि प्राप्त हो रहा है, या प्राप्त हो गया है तो
छोटे उद्देश्यों की अनदेखी कोई अपराध नहीं है
कही कोई नियम यदि भंग हुए है,
तो एक सामान्य साधक को उसकी आलोचना की बजाय
उसकी उपलब्धि को प्रणाम करना चाहिए
और अपना पथ प्रशस्त करना चाहिए
कभी कभी लौकिक दोष ही कृपा का आश्रय बन जाते है
जैसे - श्री सूरदास का अंधा होना
वैसे भी कृपा प्राप्त वैष्णवों की शैली को समझना
अपने आप में एक कठिन कार्य है
ऐसे पुरुष जो कहते हैं, वह करो, जो करते हैं : वह
न करो, न देखो
वैसे भी कृपा प्राप्त वैष्णवों की शैली को समझना
अपने आप में एक कठिन कार्य है
ऐसे पुरुष जो कहते हैं, वह करो, जो करते हैं : वह
न करो, न देखो
JAI SHRI RADHE
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Thursday, 24 November 2011
147. गयौ काम ते !!!
!
सबरे संसार
अथवा दूसरेन के सुधार की बात छोडि कै
साधक अपने सुधार में लग्यौ रहै
जानेऊ संसार के सुधार कौ ठेका लियौ
वह प्रपंच के पंक में फंस्यौ और गयौ काम ते !!!!!!!!!!!
-पं श्री गयाप्रसादजी, गोवेर्धन
JAI SHRI RADHE
146. सर्वश्रेष्ठ यज्ञ
-अन्न खाने से ही शरीर की रक्षा होती हैं
शरीर से ही प्राणी उत्पन्न होते हैं अर्थात प्राणी अन्न से ही पैदा होते हैं
- अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है
- वर्षा यज्ञ से होती है
- यज्ञ 'करने' से '' यानी कर्म से '' ही होता होता है
- कर्म का आदेश वेद से उत्पन्न है
- वेद अविनाशी परमात्मा से ही उत्पन्न हुआ है
- अत: एक पुरुष को यज्ञ रूपी कर्म अवश्य ही करना चाहिए :
"तीव्रेण भक्ति योगेन यजेत पुरुषम परम"
- यानी तीव्र भक्ति योग से परमपुरुष का यज्ञ करना चहिये |
- भगवद भक्ति ही सवश्रेष्ठ कर्म यज्ञ है |
Monday, 21 November 2011
145. KAISE - KAISE TAP
शारीरिक तप
देवता, ब्रह्मण, ज्ञानीजन का पूजन
पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, का अभ्यास या आदत
वाणी का तप
अनुद्वेग, प्रिय भाषण, हितकारी, भाषण
यथार्थ भाषण, शास्त्र - पाठन परमेश्वर का नाम जप का अभ्यास या आदत
मानसिक तप
मन की प्रसन्नता, शान्तभाव, भगवद्चिंतन की आदत
मनको मारनेकी आदत, अन्त:करन मैं पवित्र विचार की आदत का अभ्यास
सात्विक तप
फल की कामना न रखकर शास्त्राज्ञा से किया गया भजन, पाठ, पूजा
राजसिक तप
सत्कार सम्मान, स्वार्थ, पाखंड या छिपे हुए
किसी उद्देश्य से किया गया अनुष्ठान
तामसिक तप
हठपूर्वक, मुढ़तापुर्वक, न चाहते हुए,मन, वाणी, शरीर को
कष्ट पहुचाते हुए अथवा दूसरे के अनिष्ट के लिए किया गया अनुष्ठान
JAI SHRI RADHE
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Sunday, 20 November 2011
144. अहंकार या विचार
धन होने पर यदि धन का अहंकार है तो
धन कम या नष्ट होने पर
अहंकार भी नष्ट हो जाएगा
धन न होने पर भी धन के वृथा अहंकार
का कारण धन नहीं कुविचार है
जो सत्शास्त्र, सद्विचार, सत्संग से नष्ट होगा !!
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD thru Family n Humanity
Saturday, 19 November 2011
143. श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा
तू मुझ मैं मन को लगा,
मेरी ही भक्ति कर
मेरा ही पूजन कर
मुझे ही प्रणाम कर
इससे तू मुझे ही प्राप्त करेगा
यह में तुझ से सत्य प्रतिज्ञा करता हू
-गीता
JAI SHRI RADHE
Friday, 18 November 2011
Wednesday, 16 November 2011
141. NISHTHA, DAMBH, CHOR
निष्ठा
साधन मैं परिपक्व अवस्था का
नाम ही निष्ठा है
दंभ
हठ पूर्वक ऊपर ऊपर से
इन्द्रियों को रोककर, अन्दर से
या मन से यदि इन्द्रियों के विषयों का
चिन्तन करने वाला दम्भी है
चोर
देवताओं द्वारा दिए गए
भोग या सुविधाओं कोस्वयं ही भोगता रहे
और यज्ञ-दान या अन्य किसी भी प्रकार से
देवताओं को न दे, वह चोर है
JAI SHRI RADHE
अवश्य ज्वाइन करें
Tuesday, 15 November 2011
140. दुष्टों के लक्षण
ये प्रवृत्ति व निवृत्ति दोनों को नहीं जानते
इनमे बाह्य शुद्धि का अभाब, श्रेष्ठ आचरण का अभाब, सत्य भाषण का अभाब होता है
जगत का कारन काम है :ये जगत स्त्री पुरुष के संयोग से बना है
विषय भोगों मैं तत्पर रहते हुए - इन्हीं को ही परम सुख मानते हैं
विषय भोगों हेतु अन्याय अधर्म पूर्वक अर्थ उपार्जन करते हैं
इनता धन हो गया इतना और हो जायेगा |
ये शत्रु मारा गया इसे और मार देंगे |
मैं ही सर्व समर्थ हूँ | बलवान हूँ | समस्त सुखों को भोग रहा हूँ |
मेरा ही तो राज है
मैं धनी हूँ | बड़े कुटुम्भ बाला हूँ | मेरे सामान कों है | मेरे पास सब साधन हैं |
मैं ही श्रेष्ठ हूँ, अहंकार | बल | घमंड | कामना | क्रोध आदि के वशीभूत होकर दूसरों की निंदा करता है
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
Monday, 14 November 2011
139. शास्त्र आज्ञा
शास्त्र विधि को त्याग कर जो मनमाना आचरण करते हैं
वह न लक्ष्य प्राप्त करते है न परम गति |
शास्त्र के आदेश का पालन ही पुण्य है और शास्त्र आदेश
का उलंघन ही पाप हैं |
बुद्धि से सोचो तो
ढोलक एक मरे हुए जीव की खाल से बजती है
शंख एक जीव की हड्डी है
शहद मक्खियों का थूक ही है
गोबर गाय का मल ही है
गो-मूत्र गाय का पेशाब ही है
लेकिन शास्त्र में इनका निषेध नहीं है, अपितु ये सब ठाकुर की सेवा में प्रयोग होते हैं
अतः बुद्धि से भी ऊपर सर्वोपरि है शास्त्र
संदेह रहित होकर शास्त्राज्ञा का ही पालन करने से कल्याण होगा
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
Saturday, 12 November 2011
138. मन वचन कर्म
मन मैं जो सोचता है
वही कहता है
वही करता है
वह संत होता है, सफल होता है
हम चाहते तो सम्मान हैं
बात करते हैं भक्ति की
काम करते है कुछ और
सम्मान चाहें
सम्मान प्राप्ति की ही बात करें
सम्मान प्राप्ति के काम करें - इनमें कोई हर्ज नहीं है
मन कुछ, बात कुछ, काम कुछ
सफलता नहीं मिलेगी -
बात भक्ति की हो, धनकी हो मान की हो,सम्मान की हो
JAI SHRI राधे
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at वृन्दाबन
Friday, 11 November 2011
136.पाप आचरण क्यों ? pics
रजोगुण के कारन ही काम या क्रोध उत्पन्न होता है |
क्रोध से मूढ़ता - स्म्रतिभ्रम , बुध्दिनाश होकर
ज्ञान आवृत हो जाता है
उचित-अनुचित पाप पुण्य का ज्ञान धक् जाता है
और व्यक्ति पापाचरण करता है |
रजोगुण उत्पन्न न हो या हावी न हो,
इसके लिए उसे उसकी खुराक मत दो, अर्थात
रजोगुणी कार्यमत करो,
रजोगुणी भोजन मत करो
रजोगुणी दृश्य मत देखो
रजोगुणी बात मत करो आदि.......
इससे रजोगुण भूखा प्यासा कमजोर कहीं एक कोने में
चुपचाप पड़ा रहेगा, हावी नहीं होगा तो क्रोध भी नही आयेगा
ज्ञान जागृत रहेगा और पाप आचरण से बचे रहेंगे - हम - आप !!!!
Thursday, 10 November 2011
135. सम्पत्ति गोपनीय क्यों ?
some pics of shri shyamdas ji |
जिस प्रकार हम अपने लोकिक धन सम्पति को छिपा कर रखते है
किसी को सहज नहीं बताते
यात्रा मै चलते समय पैसो को पर्स मैं
और पर्स को सुरक्षित स्थान पर छिपा लेते हैं
उसी प्रकार
साधकों, भक्तों को भी अपनी सम्पत्ति को सदैव गोपनीय रखना चाहिए |
ठाकुर ने आज स्वप्न में ये कहा
ठाकुर ने आज मुझ पर फूल गिराया
आज मैंने इतना इतना भजन किया
ये ही साधकों की सम्पत्ति है - इन्हें किसी को बताने से ये लुप्त हो जाती है
और कभी कभी ये अहंकार का कारन भी बनती हैं |
मैंने कहा -ठाकुर जी ने मुझे एक फूल प्रदान किया
वह बोली - मुझ पर तो ठाकुर ने पूरी माला ही डाल दी,
जब मै प्रणाम कर रही थी
इससे अहंकार राग-द्वेष का पोषण होता है |
कोई यदि बखान करे भी तो दैन्य धारण करके
उसके सोभाग्य की प्रशंसा करते हुए उसे प्रणाम करना चाहिए |
ठाकुर और आपकी बात - आप दोनों मै
ही रहना चाहिए - इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए |
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
Wednesday, 9 November 2011
134.संतुलन
some rare pics of shri shyamdas ji |
मन द्वारा इन्द्रियों को वश मैं करके
एक साधक सदैव मेरा भजन करता रहता है
लेकिन मन का यह वशीकरण सतुलन से ही प्राप्त होता है
न ज्यादा खाने वाले को, न बिलकुल न खाने वाले को,
न बहुत सोने वाले को, न बहुत जागने वाले को
यह वशीकरण करना संभब नहीं है |
जीवन के हर क्षेत्र मैं संतुलन बनाये रखने
वाले ही मन को नियंत्रित करके इन्द्रियों को वश मैं कर लेते हैं
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
Tuesday, 8 November 2011
133. क्रोध
विषयों का चिन्तन करने से
विषय मैं आसक्ति उत्पन्न होती है
आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है
कामना मैं विघन पड़ने से क्रोध होता है
क्रोध से मूढ़ यानी मूर्खता का भाव उत्पन्न होता है
कहते है न कि क्रोध मैं पागल हो जाते हैं |
इस मूढ़ता से "स्मृति भ्रम" होता है
यानी क्रोध मैं
वह अगली पिछली बातों, संबंधों, उपकारों
को भूल जाता है यह भी भूल जाता है कि यह मेरा पिता, पत्नी या कोंन है
स्मृति भ्रम होने से बुद्धि नाश होता है सिर्फ बकता ही बकता है
बुद्धि नाश होने से यह पुरुष अपने ही व्यक्तित्व से गिर जाता है |
अत: कोशिश करके विषयों का चिन्तन त्यागना चाहिये |
विषयों से अर्थ है लौकिक वस्तुओं की चाह
संक्षेप में अपनी समर्थ से अधिक, अपनी योग्यता से
अधिक की चाहना करते हुए दुसरे की बराबरी करना या उससे भी
आगे बढ़ने की इच्छा करना आदि..
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Saturday, 5 November 2011
132. sajjan ya murkh
सज्जन या मूर्ख
एक सज्जन पुरुष
उसके साथ
किये गए चाल चपत एवं करामातों को
देखते समझते हुए भी
उन्हें उन्देखा करता हुआ
अपने स्वभाव में स्थित रहता है
हम यह समझते हैं की हम इसे मूर्ख बना रहे हैं,
लेकिन सत्य यह है की
हम मूर्ख हैं : वह सज्जन है
JAI SHRI राधे
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
Thursday, 3 November 2011
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