Wednesday, 27 January 2016

[21:56, 1/25/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



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        2⃣5⃣*1⃣*1⃣6⃣
   
                 सोमवार
            कृष्णपक्ष प्रतिपदा

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       ◆!🌿जयनिताई🌿!◆  
  ★🔸गौरांग महाप्रभु 🔸★
       ◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
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  ❗श्रीवास पुत्र देह त्याग❗

🌿      कितनी अद्भुत श्री गौर प्रीति थी एवम् संकीर्तन मंगलमय होने मर कितना दृढ़ विश्वास था श्री वास जी का lसंकीर्तन बन्द हुआ l श्री गौरांग भी जान गये फिर भी पुछा lसबने श्री वास के पुत्र की परलोक गमन की बात सुनाई l करुणामय श्री वास की निष्ठा देख रो उठे l आपने मृतक बालक को देखा उसी से पूछ बैठे बालक तुम श्री वास गृह को छोड़कर कहाँ और क्यों जाना चाहते हो ?

🌿       मृतक बालक में जीवन शक्ति का संचार हुआ और बोला स्वामी आपके नियमानुसार जब तक इस देह से इस माता पिता से मेरा सम्बन्ध था यहाँ रहा अब कर्मानुसार जहाँ आपने मेरा विधान कर रखा है वहाँ जाऊँगा l इतना कहकर फिर वह मृतक अवस्था में आ गया lशिशु का गंगा प्रवाह प्रभु ने अपने हाथों जाकर किया l अंत में श्री गौरांग ने श्री वास से कहा श्री वास मैं और नित्यानंद दोनों तुम्हारे पुत्र ही है lतुम्हारे लिये कोई आभाव नहीं रहेगा l

🌿   उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
          क्रमशः........
                      ✏ मालिनी
 
        ¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
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         •🌿सुप्रभात🌿•
 •🔸श्रीकृष्णायसमर्पणं🔸•
     •🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
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[21:56, 1/25/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



अपराध

पाप वो है जो लौकिक विषय में गलत कार्य है । पाप कुछ किया उसका फल कुछ मिलेगा ।

भोगना ही पड़ता है । यहाँ या नर्क में । अवश्यमेव भोक्तव्यं

अपराध का
1⃣ लौकिक जगत स कोई सम्बन्ध नही है ।
2⃣ ये भगवत विषय में की जाने वाली भूलें हैं ।
3⃣ दो शब्दों से बना है । आप एवम् राध । राध माने संतोष । आप माने बाधा ।
4⃣ जब संतोष में बाधा लगे । तब समझो अपराध हुआ ।
5⃣ संतोष में बाधा या असंतोष ।
किसमे असंतोष । चार विषय में । क्योंकि अपराध 4 प्रकार के है
6⃣ नाम अपराध
      सेवा अपराध
     वैष्णव अपराध
      भगवद् अपराध
7⃣ जब जब इन चार विषयों में असंतोष हो तो समझो अपराध हुआ है ।
8⃣ वैष्णव अपराध को वैष्णव से क्षमा कराना होता है ।बाकी के तीनो नाम लेने से दूर हो जाते हैं
9⃣ पाप के लिए जेसे नरक हैं ऐसे अपराध के लिए कोई नर्क नही है
1⃣0⃣ न ही कोई शारिरिक कष्ट होता है । क्योंकि अपराध का शरीर से कोई लेना देना नही
1⃣1⃣ अपराध का सम्बन्ध भजन से है । भजन में असंतोष ही इसका फल है
1⃣2⃣ या यों समझिये की प्रोसेस डिले होगा । जो काम 1 साल में होना ह वो 10 साल में होगा ।

अतः पाप और अपराध का अंतर समझे रहिये । बचिए । और डिले होने से बचाइये ।

समस्त वैष्णवजन को सादर प्रणाम जय श्री राधे जय निताई
[21:56, 1/25/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🐚प्राणधन श्रीराधारमण लाल मण्डल🐚
                🔻जयगौर🔻

📘        [श्रीचैतन्य-भक्तगाथा]         📘
🐚             (ब्रज के सन्त)              🐚
✨🌹श्रीपादमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामी✨🌹
         〽ब्रजविभूति श्रीश्यामदास 〽
🎨मुद्रण-संयोजन:श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन🎨

✏क्रमश से आगे....1⃣3⃣

✨🌹श्रीअद्वैताचार्य श्रीपुरीपाद के दर्शन कर कृतार्थ हो गये। उनके आनन्द की सीमा न रही। श्रीपुरीपाद को विनय पूर्वक प्रार्थना की, कि वे उन्हें मंत्र दीक्षा देकर धन्य करें। श्रीपुरीपाद ने श्रीअद्वैताचार्य को मन्त्र दीक्षा देकर शिष्य रूप मे स्वीकार किया। श्रीअद्वैत प्रभु से परामर्श कर आप चन्दन के लिये दक्षिण की ओर चले, रास्ते मे रेमुणा-ग्राम मे पहुंचे।

✨🌹यहाँ श्रीगोपीनाथ जी का अद्भुत विशाल श्रीविग्रह सेवित है। आपने मन्दिर मे जाकर उनके दर्शन किये। प्रेमाविष्ट होकर नृत्यगान किया कुछ देर, फिर बरामदे मे जाकर एकान्त मे बैठ गए। अत्यंत सुन्दर सेवा-श्रृंगार देखकर श्रीपुरी अति आनन्दित हुए। मन मे सोचा, यहाँ की सेवा परिपाटी पूछनी चाहिए, क्या भोग लगता है, कैसे सेवा होती है, ताकि मैं लौटकर श्रीगोपाल जी की सेवा के लिए भी वैसी सुन्दर व्यवस्था करूँ। आपने मन्दिर के एक सेवक ब्राह्मण से सब बात पूछी। उसने सब सेवा-परिपाटी कह सुनाई और कहा-"इस समय सन्धया को श्रीगोपाल जी को बारह मिट्टी के कुल्हाड़ों मे क्षीर भोग लगती है। उसका नाम है 'अमृत-केलि' यहाँ का वह क्षीर-भोग प्रसिद्ध है। पृथ्वी पर ऐसा भोग और कहीं नहीं लगता।"

✨🌹श्रीपुरी जी सोचने लगे-हाँ, यदि मुझे भी बिना मांगे वह क्षीर-प्रसाद मिल जाए तो उसका आस्वादन करूँ और गोवर्धन मे जाकर वैसा क्षीर-भोग श्रीगोपाल को अर्पण करूँ-ऐसा विचार आते ही श्रीपुरी ने "विष्णु-विष्णु" कहा, अर्थात इसमें अपना अपराध माना। क्योंकि वे तो अयाचक वृत्ति थे, और यह उनकी मानसिक याचना थी ही। मन से याचना भी तो अयाचकवृत्ति मे एक कपट है। अत:उन्होंने उसे अपना कपट या अपराध माना। थोड़ी देर मे दर्शन खुले, आरती हुई। श्रीपुरी जी ने आरती दर्शन किये और प्रणाम कर मन्दिर से बाहर चले आये। एक बन्द-दुकान के बरामदे मे बैठ नाम-कीर्तन करने लगे। रात कहीं काटनी ही थी।

✨🌹इधर पुजारी ने श्रीठाकुर की शयन कराई और किवाड़ लगाकर अपने कमरे मे आकर सो गया। स्वप्न मे श्रीगोपीनाथजी आकर पुजारी को जगाते हुए बोले-"पुजारी ! देख, उठ। मन्दिर के किवाड़ खोल। एक क्षीर का भरा पात्र मैने अपने वस्त्र के नीचे छिपाकर रखा था, उसे ले जाकर बाजार मे एक दुकान पर बैठे संन्यासी को दे आ। उसका नाम है "माधवेन्द्रपुरी।"

✏क्रमश......1⃣4⃣

⚠अक्षरश: लिखित सेवा
🐚🌹*ब्रज के संत*
🍂'श्री हरि नाम प्रैस-वृन्दावन'

🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹

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[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



बार बार स्मरण करो हम दास है कृष्ण के।उनकी सेवा के लिए जन्म हुआ।भक्ति के लिये।भक्तिमार्ग सरल है यदि मनुष्य अपना सुख छोड़ दे।और कठिन इसलिये की मनुष्य अपना सुख छोड़ नहीं पा रहा।
[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



गुरु दीक्षित होते ही बात तो बन गयी बस गुरु की बात समझो की इतने सत्संग में वो आखिर क्या समझा रहे हे
इक बार यदि समझ गए तो जुट जाओ...कलयुग केवल नाम अधारा🙏🙏
[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



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        2⃣6⃣*1⃣*1⃣6⃣
   
              मंगलवार माघ
            कृष्णपक्ष द्वितीया

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       ◆!💢जयनिताई💢!◆  
  ★🐚गौरांग महाप्रभु 🐚★
       ◆!💢श्रीचैतन्य💢!◆
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          ❗सन्यास लीला❗

🌿      श्री मन्महाप्रभु में राधा भाव देखकर लोग उनकी निंदा करने लगे l उन्होंने विचार किया मैंने सबको प्रेम दान करने के लिये अवतार लिया है परन्तु ये लोग मेरी निंदा कर नरक के अधिकारी हो रहे है l अतः उन्होंने वृद्धा माता श्री विष्णुप्रिया तथा समस्त वैभव को त्यागकर सन्यास ग्रहण कर लिया ताकि वे निंदक मुझे प्रणाम कर सब पापों से मुक्त हो जाये l

🌿        अंतरंग दो चार पार्षदों को सूचना देकर आपने श्री केशव भारती से सन्यास ग्रहण की लीला की और उसके बाद जगन्नाथ पुरी में आकर रहने लगे l वहां श्री वासुदेव सार्वभौम भट्टाचार्य आदि को ब्रह्मसूत्र की वास्तविक व्याख्या सुनाकर श्री कृष्ण भक्ति प्रदान की l वहां का राजा श्री प्रतापरुद्र भी आपकी कृपा प्राप्त कर कृतार्थ हो गया l

🌿   उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
          क्रमशः........
                      ✏ मालिनी
 
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         •💢सुप्रभात💢•
 •🐚श्रीकृष्णायसमर्पणं🐚•
     •💢जैश्रीराधेश्याम💢•
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[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



स्वतंत्र एवम् गणतंत्र

परम् स्वतंत्र हैं हमारे ठाकुर श्री कृष्ण । समस्त सृष्टि के स्वामी । होने न होने वाले कार्य को भी करने में समर्थ ।

जेसे 7 वर्ष की आयु में 7 दिन तक कन्नी ऊँगली पर गिरिराज

हम उन्ही के अंश हैं । वे पूर्ण स्वतंत्र हैं । हम आंशिक स्वतंत्र हैं ।
हम इतने स्वतंत्र अवश्य हैं कि अपने हित अनहित को जान कर निर्णय ले सकें

हमारा संविधान भी संतों ने बनाया हुआ है । लेकिन माया के कारण हम भृमित होकर अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हैं

स्वतंत्रता के सदुपयोग में कल्याण है । दुरूपयोग में कष्ट है । हम दोनों के चुनने में भी स्वतंत्र हैं । अब निर्णय आपका । हमारा कि हम क्या चुनें आनंद या कष्ट ।

आनंद स्वरूप श्रीकृष्ण के नित्य दास हम उनके नाम का आश्रय यदि ले लें तो इससे बड़ा आनंद कुछ और नही ।

समस्त वैष्णवजन को सादर प्रणाम जयश्रीराधे जय निताई
[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



 भगवत भक्ति में भक्त के ह्रदय में सारी भक्ति आ जाती हे।
जेसे मात भक्ति।
पितृ भक्ति
गुरु भक्ति
वैष्णव प्रीती
संत सम्मान
देश भक्ति इत्यादि।
अतेह हम सिर्फ भगवत भक्ति सम्बन्धि पोस्ट ही लगाये
और ह्रदय में राम कृष्ण की मूमि को नमन करते हुए भजन कर्तव्य पथ पर अग्रसर रहे
...साधुवाद श्री राधे🙏🌹
[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



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🍋पंडित श्रीगयाप्रसादजी के
🔏 उपदेश वचन 🔏

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2⃣ 🌷श्रद्धा 🌷

🌺जो शास्त्रन में लिखौ है तथा जो सन्तजन कहें हैं वाकूँ बिना सोचे विचारे ज्यों की त्यों मान लेनौ ही श्रद्धा है।

🌺सीधे शब्दन में यों समझौ कि अपनी बुद्धि सो काम नहीं लेनौ ।

 😳श्रद्धा ही तौ अध्यात्म कौ मूल है । सात्विकी श्रद्धा में कछु और हू गहराई है ।

🍀साधारण श्रद्धा में यह लोभ तौ हू रहै है कि यदि हम इनकी आज्ञा पै चलैंगे ।

🌺तौ हमारी लोक परलोक सुधरैगी या में स्वार्थ की गन्ध है

🍏 किन्तु सात्विकी श्रद्धा में यह हू नहीं रहै  है। वहाँ तौ केवल इतने ही भाव रहै है कि हमें न लोक बनवे सों प्रयोजन न परलोक बनवे की आशा।

🍊हम तौ अपनौ  परम् सोभाग्य याही में मानें है कि हमारे ताई इनकी आज्ञा भयी।

🌺कलयुग में श्रद्धा ही दुर्लभ है ताहू पै सात्विकी श्रद्धा यदि उपज परै तौ श्री भगवान् की अपार कृपा समझ लैनी चाहिये।

💧तथापि बिना सात्विकी श्रद्धा भये जीव कौ परम कल्याण अलभ्य ही है।

🌻🌻श्रद्धा में सहायक

🌻श्रद्धालु जनन कौ सम्पर्क

🌻श्रद्धालु जनन में श्रद्धा करनौ

🌻इनकूँ अपने सों बहुत अधिक माननों

🔔इनमें भाव बढ़ानौ

🔔इनकी क्रियान पै बड़े गौर सों ध्यान देनौ

🔔इनकूँ अपनौ पथ प्रदर्शक माननौ आदि-आदि।

💎 प्रस्तुति  📖 श्री दुबे

📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दाबन
[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



भजन मार्ग में कुछ भी व्यर्थ नही जाता । ठीक उसी तरह जेसे इंटर में आने के लिए कक्षा 2 या 3 या 5 की पढाई ।
[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



ऐसा लगता है इंटर में आने पर कि क्या 2 दुनी 4 करते रहते थे लेकिन यही सिस्टम है
[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🐚प्राणधन श्रीराधारमण लाल मण्डल🐚
                🔻जयगौर🔻

📘        [श्रीचैतन्य-भक्तगाथा]         📘
🐚             (ब्रज के सन्त)              🐚
✨🌹श्रीपादमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामी✨🌹
         〽ब्रजविभूति श्रीश्यामदास 〽
🎨मुद्रण-संयोजन:श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन🎨

✏क्रमश से आगे....1⃣4⃣

✨🌹पुजारी चौंक कर उठा। स्नान कर मन्दिर को खोला, क्या देखता है सचमुच एक क्षीर का पात्र श्रीगोपीनाथजी के वस्त्र की ओट मे छिपा रखा है। आश्चर्य की सीमा न रही। क्षीर-पात्र उठाकर मन्दिर बन्द किया और चला बाजार की ओर लगा खोजने गोपीनाथ के प्यारे को। श्रीपुरी को देखते ही पुजारी ने इन्हें प्रणाम किया और प्रसादी क्षीर-पात्र इनके हाथ मे दिया। सब बात कह सुनाई, बोला-"आपके समान त्रिभुवन मे कोई भाग्यवान नहीं है।"

✨🌹श्रीमाधवेन्द्रपुरी प्रेम मे विहृल हो उठे, नेत्रों से प्रेमजलधारा बह निकली। "प्रणाम किया उस क्षीर-पात्र को, प्रेम से क्षीर पाई।" कुल्हड़ को धोया और तोड़कर अपने बहिर्वास मे बांध लिया। रोजाना एक-एक ठीकरी को खाते रहे श्रीपुरीजी कैसा भाव ! कैसी अद्भुत निष्ठा !! श्रीपुरी जी ने सोचा कि यह सब बात फैलेगी और मुझे भाग्यवान जानकर सब लोग मुझे देखने को भागे आवेंगे किन्तु "प्रतिष्ठा तो शूकरी विष्ठा के समान हैं।" यह सोचकर रात मे ही वहाँ से भाग निकले श्रीगोपीनाथजी को नमस्कार कर। वाह ! कैसा उच्च आदर्श-वैष्णव जीवन है श्रीपुरीपाद का?

✨🌹आप वहाँ से चलकर नीलाचल पहुंचे। श्रीजगन्नाथ जी का दर्शन कर महा प्रेमाविष्ट होकर नृत्य गान किया। सर्वत्र नीलाचल मे श्रीमाधवेन्द्रपुरी पधारे है यह बात फैल गई। "प्रतिष्ठा का तो स्वभाव है, ठकुराने वालों के पीछे-पीछे भागती है।" श्रीपुरी तो इस प्रतिष्ठा के भय से रात को भाग निकले थे, परन्तु कृष्णप्रेमी को प्रतिष्ठा कैसे छोड़ सकती है? इनसे पहले आकर नीलाचल मे व्याप्त हो गई। यहाँ से श्रीपुरी कैसे भाग सकते है, श्रीगोपाल की आज्ञा से चन्दन तो ले ही जाना है।

✨🌹श्रीगोपाल के लिए चन्दन लेने श्रीपुरी यहाँ आए है-सब लोग जान गए। सब लोग ही चन्दन इकट्ठा करने मे जुट गए। राजकर्मचारियों के सहयोग से भारी मात्रा मे चन्दन-कपूर्र जमा हो गया। एक ब्राह्मण सेवक श्रीपुरी जी के साथ चन्दन उठाने के लिये दिया गया और चुंगी आदि चुकाकर इन्हें नीलाचल से सादर विदा किया गया। वहाँ से आप पुनः रेमुणा मे आए।

✏क्रमश......1⃣5⃣

🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹

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[22:56, 1/26/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



💐श्री  राधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻    

📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚

       क्रम संख्या 5⃣6⃣

🌿क्रोध 🌿

👤 विषयों का चिंतन करने से विषय में आसक्ति उत्पन्न होती है । आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है।  कामना में विघ्न पढ़ने से क्रोध होता है।  क्रोध से मूढ़ अर्थात मूर्खता का भाव उत्पन्न होता है। कहते हैं न कि क्रोध में पागल हो जाते हैं

😱 इस मूढ़ता से 'स्मृति भ्रम' होता है यानि क्रोध में अगली पिछली बातों,  संबंधो,  उपकारो को भूल जाता है। यह भी भूल जाता है कि मेरे पिता, पत्नी या कौन है । स्मृति भ्रम  होने से बुद्धि नाश होता है। सिर्फ बकता ही बकता है

💥बुद्धि नाश होने से यह व्यक्ति अपने ही व्यक्तित्व से गिर जाता है। अतः कोशिश करके विषयों का चिंतन त्यागना चाहिए। विषयों से अर्थ है लौकिक वस्तुओं की चाह संक्षेप में अपनी समर्थ से अधिक, अपनी योग्यता से अधिक यहां तक कि सम्मान की भी चाहना करते हुए दूसरे की बराबरी करना यह उससे भी आगे बढ़ने की इच्छा करना आदि ....

🌿संपत्ति गोपनीय क्यों ?🌿

💰जिस प्रकार हम अपने लौकिक धन संपत्ति को छिपा कर रखते हैं। किसी को सहज नहीं बताते। यात्रा में चलते समय पैसों को पर्स में और उसको सुरक्षित स्थान पर छिपा लेते हैं। उसी प्रकार साधकों,  भक्तों को भी अपनी संपत्ति को सदैव गोपनीय रखना चाहिए

🙌 ठाकुर जी ने आज स्वपन में यह कहा ठाकुर जी ने आज मुझ पर फूल गिराया आज मैंने इतना - इतना भजन किया, ये ही साधकों की संपत्ति है। इन्हें किसी को बताने से यह लुप्त हो जाती है। और कभी-कभी ये अहंकार का कारण भी बनती है। मैंने कहा- ठाकुर जी ने मुझे एक फूल प्रदान किया।  वह बोली- मुझे तो ठाकुर ने पूरी माला ही दे दी। इस से अहंकार राग- द्वेष का पोषण होता है।

😇 कोई यदि बखान करें भी तो दैन्य धारण करके उसके सौभाग्य की प्रशंसा करते हुए उसे प्रणाम करना चाहिए।  ठाकुर और आपकी बात -आप दोनों में ही रहनी चाहिए- इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए।

🌿 गयौ काम ते !!!!🌿

🐾सबरे दूसरेन के सुधार की छोडि के साधक अपने सुधार में लग्यौ रहै । जाने ऊ संसार के सुधार कौ ठेका लियौ। वह प्रपंच के पंक में फंसयौ और गयौ काम ते !!!!

 🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻

📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से

📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू

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