Friday, 29 January 2016


[18:04, 1/27/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: 15993



•¡✽🎄🌹◆🐚◆🌹🎄✽¡•

        2⃣7⃣*1⃣*1⃣6⃣
   
               बुधवार माघ
            कृष्णपक्ष तृतीया

                  •🌹•
               ◆~🐚~◆
       ◆!🎄जयनिताई🎄!◆  
  ★🐚गौरांग महाप्रभु 🐚★
       ◆!🎄श्रीचैतन्य🎄!◆
               ◆~🐚~◆
                    •🌹•

          ❗दक्षिण यात्रा❗

🎄     आपने भारत के समस्त दक्षिण प्रदेश मे भ्रमण किया और असंख्य लोगों को हरिनाम हरिभक्ति प्रदान कर कृतार्थ कर दिया lविशेषतः गोदावरी तीर पर श्री राय रामानंद के साथ बैठकर प्रभु ने साध्य साधन का अपूर्व कथोपकथन किया  और श्री राधा प्रेम को परम साध्य के रूप में निर्णय किया गया l

🎄     जीव के लिये श्री राधादास्य की आनुगत्यमयी सेवा ही उस परम साध्य का एक मात्र साधन निश्चित किया गया l दक्षिण यात्रा से नीलाचल लौट कर कुछ दिन बाद गौरांग श्री वृन्दावन के लिये रवाना हुए l

🎄   उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
          क्रमशः........
                      ✏ मालिनी
 
        ¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
            •🌹🐚🌹•
         •🎄सुप्रभात🎄•
 •🐚श्रीकृष्णायसमर्पणं🐚•
     •🎄जैश्रीराधेश्याम🎄•
             •🌹🐚🌹•
         ¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
   
•¡✽🎄🌹◆🐚◆🌹🎄✽¡•
[18:04, 1/27/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



हमारा सिलेबस

भक्ति । भजन एक पूरा कोर्स है
अपनी अपनी योग्यता एवम् इनपुट के अनुसार इसमें दिन महीने साल और जन्म लग जाते हैं । ये ओपन टाइम है ।

इसमें फ़ैल नही होते हैं । गति तेज व् कम होती है साधक की

जिस स्तर पर साधक एक जन्म में पहुँचता है । अगला जन्म उससे आगे की स्तर पर होता है । व्यर्थ कुछ भी नही जाता है

इसके किताबें । ग्रन्थ भी हैं । भृम या गड़बड़ी तब होती ह जब हम अपने स्तर से ऊपर की या नीचे की पुस्तकें पढ़ लेते हैं

निचले स्तर में अधिक हानि नही होती । उच्च स्तर का ग्रन्थ पढ़ने से या तो भृमित होते हैं या उसका अनुभव नही होता अयोग्यता के कारण ।

हम बहुत से कथावाचक भी पात्र अपात्र के विचार के बिना बड़ी बड़ी बातें अयोग्य लोगों को सूना देते हैं ।

शास्त्रों में कुछ अपवाद भी होते हैं
अपवाद कभी नियम या सिस्टम नही होते । हमे आपको नियम से ही चलना होता है ।

इसलिए यदि कुछ विरोध सा लगता है तो वह विरोध नहीं । स्तर के अंतर के कारण है

ठीक वेसे जेसे 4 के बच्चे को टेबल याद करने का आदेश है आवश्यक है । 12 के बच्चे के लिए टेबल याद करने की कोई आवश्यकता नहीं ।

अतः अपने स्तर पर रहेंगे तो ठीक रहेगा । जहां जहाँ दृष्टि वहां वहां कृष्ण । ये बहुत ऊँची अवस्था है
इस अवस्था में यदि ढोलक में कृष्ण नज़र आते हैं तो ढोलक को लगने वाले अपने पैर में भी कृष्ण नज़र आने चाहिए । ये अधकचरी अवस्था है ।

बहुत सूक्ष्म चिंतन है मेरे दोस्त ।गाली देने वाली भी कृष्ण । गाली खाने वाली भी कृष्ण । कृष्ण कृष्ण को गाली दे रहा है । फिर परेशानी क्यों  । चिंतन कीजिये ।

समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम जय श्री राधे जय निताई
[18:04, 1/27/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



भैया जी की कलम से

कहाँ जाना है यह ध्यान रखना है

कहाँ नहीं जाना वाले स्थान अपने आप छूटते जाएँगे

आप हम के साथ जीवन में बहुत बार हुआ है guarantee के साथ की कभी कोई शारीरिक तकलीफ होते हुए भी कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है की उस तकलीफ को बिलकुल भूल कर कोई दुसरा आवश्यक कार्य सम्पूर्ण करना ही पड़ता है

मतलब हम में ऐसा कर सकने की ताकत है

तो यदि इस ताकत को आदत बना लें तो जीवन में बस सुख और कृपा ही दृष्टिगोचर होंगे

तो बस चिंतन सिर्फ भगवद् परक विषयों का ही रखें

बहुत कठिन नहीं है

अभ्यास से अपने आप होने लगेगा

शेष तो हम सब पर वैष्णव पर्रिकर की कृपा और स्नेह है ही

सभी के चरणों में सादर प्रणाम

जय जय श्री राधे
जय गुरुदेव
जय श्री निताई
[18:04, 1/27/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🐚जय जय श्रीगोपालभट्ट गुणमंजरी ll

🔸क्षण क्षण नव अनुराग भाव की पंजरी l
🔸लिये सेवा उपहार थार कर कंजरी ll

🐚पीवत रूप अनूप नैन की अंजरी l
🐚अंजरी भरी रूप पीवत जीवत निशिदिन सनजरी ll

🔸लवंग श्रीरति मंज्जरी युत वीण मृदंग मज्जरी l
🔸सुरमिलि गावत बजावत कौउ नहि जहाँ जंजरी ll

🙌 श्रीराधारमण दासी परिकर 🙌
[18:04, 1/27/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



💧💧💧💧💧💧💧💧

🙏🏻 पंडित श्री गयाप्रसाद जी के
🍏 सार वचन उपदेश 🍊

👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

🙏🏻🍁 3⃣ श्रद्धा

🌷श्रद्धा में भयंकर विघ्न है अपनी बुद्धि

एक विचारणीय विषय है कि सांसारिक बुद्धि श्रद्धा के समान अति उच्च वस्तु कूँ कैसे तौल पावैगी।

जा कांटे पै लकरी या कोयला तौले जायेँ हैं वा कांटे पै चाँदी या सोना कैसे तौल सकै है

अतएव भगवती श्री श्रद्धा महारानी कूँ बहुत ही बचावै, अपनी बुद्धि के तराजू में तौलवे सों।

यदि श्रद्धा संभार कै राखते बनै तौ यह बढ़ती ही जाय है।

🌺श्रद्धा कौ अन्तिम फल ही श्री भगवद् प्रेम या आत्मबोध

बहुत ही सावधानता राखै
श्रद्धा ऐसे शीघ्र उड़ जाय है जैसे कपूर। या कारण श्री श्रद्धा महारानी कूँ बहुत ही संभार कै राखै।

🌻जाके कोटिन जन्मन की सुकृति उदय होंय हैं वाही के अन्तः करण में सात्विकी श्रद्धा

🌻उपजै है
🌻रुकै है
🌻बढै है
🌻बढ़ती जाय है
🍎अतृप्ति की भावना होय है।

हाँ ये सबरी बातें यदि लेनी चाहै तौ एक ही अभ्यास करै

कहाँ मैं तुच्छ और कहाँ ये जिन सों श्रद्धा प्राप्त  भयी। यही युक्ति है श्री श्रद्धा महारानी के रोकवे की।

🍒श्रद्धावान् जितेंद्रय बने है
🍒श्रद्धावान् सोम्य होय है।
🍒श्रद्धावान् शान्त होय है।
🍒श्रद्धावान् गम्भीर होय है।
🍒श्रद्धावान् नियमपालक होय
🍒श्रद्धावान् अपने कर्तव्यपालन में परम द्रढ़ होय है।
🍒श्रद्धावान् दैन्य की मूर्ति होय
🍒श्रद्धावान् में समस्त सद् गुण स्वयं आयकें निवास करें हैं।
🍒श्रद्धावान् कौ पतन नहीं।
🍒श्रद्धावान् अहंकारी नहीं होय
🍒श्रद्धावान् कूँ अवश्य ही प्रेमी बननौ ही परैगौ ।

💎प्रस्तुति । 📖श्री दुबे

📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दाबन
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



कोई
मुझ सा
नही
जमाने में

ये
मेरी तारीफ़ है
या ताना है
😳
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



कान्हा तेरे बिना जिंदगी का साज भी क्या साज है,
बज रहा है मगर बेआवाज है ...😭😭
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



साज़ और आवाज़
की क्या चले
मोहन
हम नाज़
उठाते रहे
तुम
बाज़ न आये
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



 बेबस हु क्या कहू सखी में
जीमती न मर रही

इक इक स्वास् में राधा कृष्ण
सिमिर रही

कबहु तो सुन लेंगे युगल
इस दींन की पुकार को

इक यही आस लेकर सखी
जीवन बसर में कर रही

तरस रहे हे नैन मेरे
रूप सुधा रस पान को

कहू कैसे पीर अपनी
इस जगत अनजान को

कर जोर विनती ह यही
सुन लो यशोमती नंदना

ले चलो अब वृन्दा विपिन
बस यही हे मेरी वंदना।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



मिले तो
छोड़ जाते हो
यूँ मुखड़ा
मोड़ जाते हो
मिलोगे
फिर कभी
हमसे ये वादा
जोड़ जाते हो

चले जाओ
मुनासिब है तुम्हे
बता दें हम भी
पक्के हैं
वहीँ पर पाओगे
हमको
जहाँ पर
छोड़ जाते हो
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



जहाँ
आनंद का
दरिया

मुलाकातों
का खुश
ज़रिया

बहाएं
आंसुओं को
क्यों
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



तू सारे
जहाँ को
बिसार दे
वो तेरे
दिनों को
सवार दे
सपनों की
बात क्या
चली
वो सबके
सामने
तुझे बहार दे
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



वो रोये
रात भर
यूँ ही
जो पूछा
तो बोले
ये रोना
तो बहाना था
हमे
तुमको हसाना
था
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



ओह
ये माया
बात आया की
वो आया
आ गया देखो
दिलों से देख ले
उसको
करो न बात
काया की
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



वो
तारणहार है
प्यारा
उसी ने
कितनो को
तारा
वो तारेगा
हमे इक दिन
यही तो
कहता ये
बेचारा
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



किये
दीदार
जिसने हैं
वो
नाकाबिल
हुआ बन्दा

बचाये
रखना अपने को
जो
दुनिया
को
समझना ह
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



दीदार कर
जो नाकाबिल हुआ
बन्दा
दीदार उसका
कर काबिल हुआ
बन्दा
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



रस्ते भर रो रो
कर पूछा
मुझसे
पांव  के
छालो ने

बस्ती कितनी
दूर बसा ली
दिल में
रहने
वालों ने
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:


💐श्री  राधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻    

📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚

       क्रम संख्या 5⃣7⃣

🌿 प्रारब्ध 🌿

🌺 हानि
🌺 लाभ
🌺 जीवन
🌺 मरण
🌺 यश
🌺 अपयश

ये 6  प्रारब्ध के वश में है  प्रारब्ध क्या है? पिछले जन्म में किए गए अच्छे - बुरे कर्मों के फल का इस जन्म में मिलना शुरू हो  जाना ही प्रारब्ध है।

💐" दैव -दैव आलसी पुकारा"  सब कुछ प्रारब्ध या दैव के अधीन है - ऐसा आलसी कहते हैं।  यदि ये  मान ही  लिया जाए कि पूरा जीवन प्रारब्ध के वशीभूत है और पिछले जन्म के कर्मों के फल का नाम प्रारब्ध है तो आगामी जन्म का प्रारब्ध बनाने के लिए भी तो इस जन्म में कर्म करने चाहिए। अतः अवश्य ही कर्म -कार्यों में परिश्रम से अनवरत लगे रहना है।

🌿ग्रंथ,  विग्रह,  संत🌿

ग्रन्थ:  श्री विग्रह: संत - तीनों ही मेरे स्वरुप है। इन तीनो में मेरा आविर्भाव है।

📕 ग्रंथ -शास्त्र
🎅 श्री विग्रह मूर्ति
👳🏻  संत

👤मेरा अपराधी बच सकता है। पर मेरे भक्त का अपराधी नहीं बचेगा।  मेरे भक्त अंबरीश का अपराध करने पर दुर्वासा तीनों लोगों में भागते रहे।  अंततः अंबरीश से अपराध क्षमा कराने पहुंचे तो परम भक्त परम दैन्य अम्बरीष ने ही उन्हे निर्भय किया और कहा कि आपने तो मेरे प्रति अपराध किया ही नहीं।

👴🏻संत और भक्त भी वास्तविक हो भक्ति का मुख्य लक्षण है- दैन्य या दीनता ।

🌿रज -रानी🌿

👩🏻 एक रानी ही दूसरी रानी से मिला सकती है। राधा रानी से मिलना है तो सहज प्राप्त वृंदावन की रज रानी की सेवा उपासना करो राजरानी ही राधा रानी से मिला देगी।

 🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻

📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से

📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



नींद  रूठे हुए लोगो को
मना लाई है
आँख खोलूंगा तो
फिर बिखर जाएंगे
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



चलो चलो री किशोरी
स्वामी राम स्वरूप जी रासधारी के पूज्य पिता जी श्री मेघश्याम जी की रचना है । 10 में से 9 रास लीलाएं इसी पद से प्रारम्भ होती थीं
इसमें एक लाइन ठाकुर जी
एक लाइन प्रिया जू गाती थीं और दर्शक अश्रु बहाते थे

मेघश्याम जी इतने भावपूर्ण भजन लिखते और लीलांकन करते थे कि एक समय वे पागल हो गए थे । भाव में सुध बुध खो गई थी उनकी
ऐसे दिव्य संत की वाणी में रस या भाव क्यों नही होगा ।
शीघ्रता में रिकॉर्ड किया था मेने लेकिन स्वयं सूना तो गदगद हो रहा हूँ । जय जय ।
सुनीता जी को साधुवाद । उनके प्रयास से ये आनंद मिला ।
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



•¡✽🌸🌿◆🎀◆🌿🌸✽¡•

        2⃣8⃣*1⃣*1⃣6⃣
   
               गुरुवार माघ
            कृष्णपक्ष चतुर्थी

                  •🌸•
               ◆~🌿~◆
       ◆!🌿जयनिताई🌿!◆  
  ★🌸गौरांग महाप्रभु 🌸★
       ◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
               ◆~🌿~◆
                   •🌸•

        ❗श्रीवृन्दावन यात्रा❗

🌿     एक बार गौरांग ने वृंदावन जाने का विचार किया और रामकेलि ग्राम तक आये lवहां श्री सनातन एवं श्री रूप गोस्वामी से मिलन हुआ lअसंख्य लोगो को साथ जाते देख श्री सनातन गोस्वामी जी ने प्रार्थना की प्रभो इतने लोगो के साथ आपका जाना उचित नहीं l वृन्दावन का रसास्वादन तो एकांत मे हो सकता है l उनके परामर्श से नीलाचल वापस चले आये l

🌿      दूसरी बार आप झारखण्ड के रास्ते केवल एक सेवक को लेकर वृन्दावन पधारे l रास्ते में सिंह चीता आदि अनेक हिंसक पशुओ को प्रेम दान किया l श्री ब्रजमण्डल में चौबीस घाटों पर स्नान और द्वादश वनो की यात्रा की l लुप्त हुए श्री श्याम कुण्ड तथा श्री राधा कुण्ड को पुनः प्रकाशित किया और स्नान कर राधाकुण्ड की रज मस्तक पर धारण की l

🌿    श्री गोवर्धन का दर्शन कर श्री महाप्रभु प्रेमोन्मत्त हो उठे l श्री गोपाल जी के दर्शन कर श्री गिरिराज की परिक्रमा की l श्री नंदीश्वर तथा वहां गुफा में श्री नन्द यशोदा एवम् श्री कृष्ण के दर्शन किये l अक्रूर घाट पर तो यमुना जी में कूद पड़े l

🌿   उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
          क्रमशः........
                      ✏ मालिनी
 
        ¥﹏*)•🎀•(*﹏¥
            •★🌸★•
         •🌿सुप्रभात🌿•
 •🎀श्रीकृष्णायसमर्पणं🎀•
     •🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
             •★🌸★•
         ¥﹏*)•🎀•(*﹏¥
   
•¡✽🌸🌿◆🎀◆🌿🌸✽¡•
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



जी । जब प्रेम हो जाता ह तो संख्या छूट जाती ह । जेसे चन्द्रशेखर बाबा । जिसे दिन भर भजन ही करना ह वो क्या गिनेगा
लेकिन हम आप उस प्रेम तक पहुचने के लिए संख्या सहित नाम लेते हैं । लेना ज़रूरी भी ह । नही तो एक दिन सब छूट जाएगा
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
                 
💐💐ब्रज की उपासना💐💐

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻            

🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

     क्रम संख्या 3⃣2⃣

  🙏हे जगन्नाथ प्रभो

💐जितना सत्य यह हैं कि 'तुम ही मेरी माता' 'मेरे पिता हो'

 👬उतना ही सत्य यह भी है कि मैं तुम्हारी योग्य संतान नहीं हूँ।

 👣निश्चित ही मैं तो तुम्हारे विग्रह तक के चरणारविन्द-स्पर्श का भी अधिकारी नहीं हूँ,पर फिर भी अधम से अधम , पतित से पतित संतान की भी माता कब उपेक्षा करती हैं?

 👏हे नाथ मैं तो आपके चरणो👣 की प्राप्ति करने हेतु सुने गए साधनो का अनुष्ठान करने में भी अल्साती हूँ,

🎢पर विषयो का मार्ग बड़ा ही रोचक व सुखकर प्रतीत होता है।

 🌷परंतु मैंने यह भी सुना है जिस पर भी आपकी कृपा हुयी है ... वह आपकी ही ओर चल🚶पड़ा हैं ।

👀हे कृपण-वत्सल , आपकी कृपादृष्टि की वृष्टि के बिना मेरे सब उपाय सब साधन व्यर्थ ही हैं।

क्रमशः........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से

✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



शुद्धि
दो प्रकार की

आंतरिक । अर्थात मन की । विचार की । भावना आदि की

बाह्य । अर्थात वस्त्र की । शरीर की । आसन की । स्थान की

वृन्दाबन हमारे ठाकुर का धाम है क्रीड़ा स्थल है । लीला स्थल है । बहुत से वैष्णव यहाँ दर्शन पर्सन के लिए आते हैं ।

आप यहाँ आये और यदि आपके आने से ब्रजवासियों को या अन्य आगंतुक वैष्णवों कष्ट हुआ तो आप धाम के प्रति । वैष्णवों के प्रति । ब्रजवासियों के प्रति अपराध करके जा रहे हैं

आप के मन में तो श्रद्धा है । आंतरिक भाव है लेकिन बाह्य भाव का अभाव हो गया । शायद आपको पता भी न चला । अतः

धाम में आने पर एक गार्बेज बैग साथ लाएं । अपना गार्बेज उसमे रखें और या तो धाम में कहीं डस्ट बिन में डालें । और शार्ट विज़िट हो तो वापसी में ट्रेन या कार से कहीं जंगल में डालें ।

आप यदि कार से आये हैं तो कार को दूर पार्किंग में ही खड़ा करें । 50 रु बचा के अपराध सर पर न लें । गलत जगह पार्किंग से अन्य वैष्णवजन को कष्ट का कारण बनते हैं आप ।

वेसे भी सवारी में बेथ कर मन्दिर जाना एक सेवा अपराध है । जितना हो सके कार को दूर छोड़ दें । यथा सम्भव पैदल या तुमतुम से जाएँ ।

इस प्रकार धाम की बाह्य शुद्धि के प्रति एवम् अन्य अपराधो से बचते हुए धाम की और अधिक कृपा प्राप्त करेंगे हम ।

समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम जयश्रीराधे जय निताई
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



अहम्

मेरे गुरुदेव
मेरे इष्ट
मेरी उपासना
मेरी सम्प्रदाय आदि

और मेरा वत्सप्प ग्रुप

दूसरों से श्रेष्ठ है । बेहतर है । ऐसा और कोई नहीं । ये भी सूक्ष्म अहम् है । इससे भी बचना है

लगता तो ये है कि हम
गुरु
इष्ट
सम्प्रदाय
ग्रुप की
प्रशंसा कर रहे है । लेकिन झांक कर अंदर देखने से पता चलता है कि ये हमारा ह । इसलिए कर रहे हैं । अतः सावधान ।

जय श्री राधे । जय निताई
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



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🙏🏻पंडित श्री गयाप्रसाद जी के
🍏🍊सार वचन उपदेश

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🙏🏻🍁 4⃣ श्रद्धा

🔔श्रद्धा की महिमा🔔

🌼श्रीगीताजी में स्वयं श्रीकृष्ण जीवनधन याकी महिमा कौ वर्णन कर रहे हैं-या सों अधिक अब कोई कह ही का सकै है-

🌻"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।"

 श्रद्धावान् ज्ञानं लभते
तत्परः (भवति) एवं
संयतेन्द्रियः (च भवति)

🍊एक श्रद्धा कौ दृढ़ आश्रय ग्रहण करवे सों स्वतः ही ज्ञान प्राप्त है जाय है। ज्ञान प्राप्ति के लिये कोई कठिन प्रयास नहीं करनौ परै है।

🍎जो श्री भगवद् प्रेम के इच्छुक हैं इनके लिये कह रहे हैं-तत्परः वह प्रेम कौ अभिलाषी सर्वतोभाव सों श्री भगवत् कौ बन जाय है।

🍓चाहै ज्ञानी बनै
चाहै प्रेमी बनै किन्तु
दुहुँ कहँ काम क्रोध रिपु नाहि

🍒बिना पूर्ण सदाचारी बने
न ज्ञान मिलै न प्रेम मिलै।

🍒याही सों श्री प्राणनाथ आज्ञा कर रहे हैं -संयतेंद्रियः

🍋श्रद्धावान् पूर्ण संयमी बनै है।
वाकी कोई इन्द्रिय कुमार्ग में नहीं जाय है

🌻यह है गयौ सदाचार
एक श्रद्धा के आश्रय सों

🌻ज्ञानी बन सकै है।
प्रेमी बन सकै है।

🌺साथ ही सदाचारी बन सकै है।

विचार कै देखौ जाय तौ ये ही  महादुस्तर हैं। तथापि श्रद्धा की महिमा कितनी अपार है

🌺कि श्रद्धावान् के लिये ये तीनों ही महादुर्लभ ज्ञान प्रेम एवं पूर्ण सदाचारी जीवन अनायास ही प्राप्त है जाय है।

💎 प्रस्तुति 📖 श्री दुबे

📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दाबन
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



भैया जी की कलम से

अगर गुरु धारण नहीं करे हैं तो प्रभु से प्रार्थना में लग जाएँ की जल्द हमें पक्का घड़ा बना दो प्रभु जी

फिर भगवान गुरु मिलन करा देंगे और गुरु प्रभु मिलन

यही सिस्टम है

सभी वैष्णवों के चरणों में सादर प्रणाम

जय जय श्री राधे
जय श्री गुरुदेव
जय निताई
जय जय भैया जी और उन समस्त वैष्णवों की जिन्होंने इस पर्रिकर को रास मंडल का सुख प्रदान किया है
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🐚प्राणधन श्रीराधारमण लाल मण्डल🐚
                🔻जयगौर🔻

📘        [श्रीचैतन्य-भक्तगाथा]         📘
🐚             (ब्रज के सन्त)              🐚
✨🌹श्रीपादमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामी✨🌹
         〽ब्रजविभूति श्रीश्यामदास 〽
🎨मुद्रण-संयोजन:श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन🎨

✏क्रमश से आगे.....1⃣5⃣

✨🌹श्रीगोपीनाथ के सानन्द दर्शन किए। अब तो सेवक-पुजारी इन्हें जान चुके थे। माला-प्रसाद देकर इनका उन्होंने सम्मान किया। रात्रि को उस मन्दिर मे आप सोये। रात्रि को स्वप्न मे श्रीगोपाल जी आकर कहने लगे-"हे माधवेन्द्र ! तुम्हारा चन्दन-कपूर्र मुझे यहाँ गोवर्धन मे प्राप्त हो गया है। जो तुम्हारे पास है उसे रेमुणा मे ही श्रीगोपीनाथ जी के अंग मे नित्य लेप करने की व्यवस्था करो। उस से ही मेरा सब ताप दूर होता रहेगा, "क्योंकि श्रीगोपीनाथ और मैं एक ही हैं। विश्वास पूर्वक मेरी आज्ञा का पालन करना।"

✨🌹आपने मन्दिर के पुजारी-सेवकों को श्रीगोपाल का स्वप्नादेश सुनाया। सब आनन्दित होकर नाच उठे। नित्यप्रति चन्दन-कपू्र्र घिसकर श्रीगोपीनाथ जी के श्रीअंगों पर चढ़ाया जाने लगा। गर्मी के दिन तो थे ही, श्रीगोपीनाथ जी भी अति आनन्दित हुए। जितने दिन तक वह चन्दन-कपूर्र रहा श्रीपुरी जी रेमुणा मे रहे। समाप्त होने पर आज्ञा लेकर फिर नीलाचल चले आए। चातुर्मास्य वहाँ ही बिताया। पुनः आप श्रीगोपाल जी के पास न जा पाये। इधर श्रीगोपाल जी के सेवक-दो बंगाली ब्राह्मणों के देहावसान के बाद श्रीमञि्त्यानन्द प्रभु के दीक्षित शिष्य भाग्यवान् गौड़ीय वैष्णव श्रीरामरायजी ने श्रीगोपाल जी की सेवा का भार सम्भाला।

✨🌹उस समय गोवर्धन श्रीराधाकुण्ड मे श्रीरघुनाथदास गोस्वामी सर्व वैष्णव-शिरोमणि होकर विराजमान है। उन गौड़ीय वैष्णवों ने श्रीपाददास गोस्वामी जी से सेवा के विषय मे विचार-परामर्श किया। क्योंकि अनन्त तो सम्पत्ति हैं श्रीगोपाल जी की एवं सेवा भोगराग की लम्बी चौड़ी-व्यवस्था। एक जने के बस की बात नहीं है। तब श्रीरघुनाथदास गोस्वामी की आज्ञा से श्रीविट्ठलेश गोस्वामी जी को श्रीगोपाल-सेवा का भार सौंप दिया गया। वे उस समय मथुरा मे निवास करते। वे श्रीगौंरागलीला मे परम-विहृल रहते। उनके घर मे श्रीकृष्णचैतन्य विग्रह की सेवा है ही-जिस समय श्रीराघव पण्डित तथा श्री निवासाचार्य व्रजमण्डल की परिक्रमा करने आये, तो श्रीविट्ठलेश जी के यहाँ आकर रहे और उनके घर श्रीकृष्ण-चैतन्य महाप्रभु के दर्शन कर परमानन्द प्राप्त किया-

✨विट्ठलेर सेवा कृष्णचैतन्य विग्रह।
✨ताहार दर्शने हैल परम आग्रह।।

✏क्रमश......1⃣6⃣

🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹

▫🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫🔲
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



कर्म का शास्त्रीय परिचय

🔔1 मदर्पण कर्म

उन कर्मोंको कहते हैं जिनका उद्देश्य पहले कुछ और हो किन्तु कर्म करते समय अथवा कर्म करनेके बाद उनको भगवान के अर्पण कर दिया जाय।

🔔2 मदर्थ कर्म

वे कर्म हैं जो आरम्भसे ही भगवान के लिये किये जायँ अथवा जो भगवत्सेवारूप हों ।

💧भगवत्प्राप्तिके लिये कर्म करना

💧भगवान की आज्ञा मानकर कर्म करना

💧और भगवान की
प्रसन्नताके लिये कर्म करना

ये सभी भगवदर्थ कर्म हैं।

🔔3 मत्कर्म

भगवान्का ही काम समझकर सम्पूर्ण लौकिक
(व्यापार नौकरी आदि) और भगवत्सम्बन्धी (जप ध्यान आदि) कर्मोंको करना मत्कर्म है।

वास्तवमें कर्म कैसे भी किये
जायँ? उनका उद्देश्य एकमात्र भगवत्प्राप्ति ही होना
चाहिये।

🔔उपर्युक्त तीनों ही प्रकारो
मदर्पणकर्म
मदर्थकर्म
मत्कर्म

से सिद्धि प्राप्त करनेवाले साधकका कर्मोंसे किञ्चिन्मात्र भी सम्बन्ध नहीं रहता क्योंकि उसमें न तो फलेच्छा और न कर्तृत्वाभिमान है और न पदार्थोंमें
और

👴🏻शरीर
🍊मन
😳बुद्धि
तथा इन्द्रियोंमें ममता ही है।

जब कर्म करनेके साधन शरीर मन बुद्धि आदि ही अपने नहीं हैं?

तो फिर कर्मोंमें ममता हो ही कैसे सकती है। इस प्रकार कर्मोंसे सर्वथा मुक्त हो जाना ही वास्तविक समर्पण है

🙇🙇🙇🙇🙇🙇🙇🙇
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



💐श्री  राधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻    

📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚

       क्रम संख्या 5⃣8⃣

🌿 दुष्टो के लक्षण 🌿

💥ये प्रवृत्ति व निवृति दोनों को नहीं जानते। इन में ब्राहय शुद्धि का अभाव, श्रेष्ठ आचरण का अभाव,  सत्य भाषण का अभाव होता है। जगत का कारण काम है : ये जगत स्त्री - पुरुष के संयोग से बना है। विषय भोगों हेतु अन्याय अधर्म पूर्वक अर्थ उपार्जन करते है।  इतना धन हो गया इतना और इतना हो जाए गा। ये शत्रु मारा गया इसे और मार देंगे ।

👨🏻मैं ही सर्व समर्थ हूँ। बलवान हूं। समस्त सुखों को भोग रहा हूं। मेरा ही तो राज है मैं धनी हूं। बड़े कुटुंब वाला हूं।  मेरे समान कौन है। मेरे पास सब साधन हैं। मैं ही श्रेष्ठ हूं। अहंकार, बल, घमंड, कामना।  क्रोध आदि के वशीभूत होकर दूसरे की निंदा करना ही दुष्टो का स्वभाव होता है।

🌿सबसे श्रेष्ठ मार्ग मेरा 🌿

🍁अध्यात्म या धर्म के जिस मार्ग पर मैं चल रहा हूं,  वह ठीक है,  लेकिन केवल यही मार्ग  है और यही सर्वश्रेष्ठ है।  ऐसा नहीं है,  मार्ग और भी हैं श्रेष्ठ भी हैं । जो जहां लगा है लगने दो से वहां।

 👳🏻मैं जहां हूं,  लगा रहूँ, और अपने दिल दिमाग के रास्ते खुले रखु तो श्रेष्ठता की ओर बढ़ता रहूंगा । अन्यथा मेरी प्रगति यहीं रुक जाएगी।

🌿मुख किसकी और🌿

🌹सुख एवं प्रकाश स्वरूप श्री भगवान की और पीठ करने पर सामने होगा दुख एवं अंधकार।  इसके विपरीत श्री भगवान की ओर मुख करने पर पीछे रह जाएगा दुख एवं अंधकार इस सम्मुख होगा सुख एवं प्रकाश

 🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻

📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से

📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



•¡✽🔅🌹◆🔆◆🌹🔅✽¡•
     
🌹      श्रद्धेय रामसुख दास जी के वचनानुसार श्रद्धा ही आध्यत्म का मूल है lजो शास्त्रों में लिखा है तथा जो संत जन कहते है उसको बिना सोचे विचारे वैसे ही मान लेने का नाम श्रद्धा है l

🌹     कलियुग में श्रद्धा ही दुर्लभ है और सात्त्वि की श्रद्धा तो अत्यंत दुर्लभ है l जिस के हृदय में सात्त्वि की श्रद्धा उत्पन्न हो उसके ऊपर तो श्री भगवान की अपार कृपा समझ लेना चाहिए l

🌹      श्रद्धा का अंतिम फल है श्री भगवत प्रेम l बहुत ही सावधान रहना चाहिए l श्रद्धा कपूर की भांति उड़ जाती है अतः श्रद्धा महारानी को बहुत ही संभाल कर रखना चाहिए l
                        ✏ मालिनी
 
        ¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
            •🌹🔆🌹•
      •🔅कृष्णमयरात्रि🔅•
 •🌹श्रीकृष्णायसमर्पणं🌹•
     •🔅जैश्रीराधेश्याम🔅•
            •🌹🔆🌹•
        ¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
   
•¡✽🔅🌹◆🔆◆🌹🔅✽¡•
[23:03, 1/28/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🌹    श्रीराधारमणो जयति    🌹
💐   श्रीवृंदावन महिमामृत   💐
🌾( सप्तदश-शतक )🌾

श्रीप्रबोधानंद सरस्वती पाद कहते हैं कि....

🌱शुद्धोज्ज्वल रस प्रेम सुधानिधि परम उदार अपार।
🌱मो गति वृंदाविपिन उदित जहं राधानाम सुखसार॥

🌳अनंत अपार शुद्ध उज्जवल प्रेमरस समुद्र का सार रूप अनिर्वचनीय परम दानशील श्रीराधा नाम जहाँ प्रकाशित होता है, वह वृन्दावन ही मेरी गति है।

🙌 श्रीराधारमण दासी परिकर 🙌
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



•¡✽🌸🍃◆🍂◆🍃🌸✽¡•

        2⃣9⃣*1⃣*1⃣6⃣
   
               शुक्रवार माघ
             कृष्णपक्ष पंचमी

                  •🌸•
               ◆~🍂~◆
       ◆!🍂जयनिताई🍂!◆  
  ★🌸गौरांग महाप्रभु 🌸★
       ◆!🍂श्रीचैतन्य🍂!◆
               ◆~🍂~◆
                   •🌸•

   ❗मलेच्छ पठान उद्धार❗

🌿    मथुरा मण्डल से वापिस प्रयाग आते समय एक वृक्ष के नीचे जब आप विश्राम कर रहे थे तो वहां दस पठान डाकू उनके साथ बिजली खान नामक यवन राजकुमार भी था l उन्होंने समझा कि सन्यासी को साथ के लोगों ने धतूरा खिलाकर इनकी धन सम्पत्ति छुड़ा ली है lपठानों ने महाप्रभु के साथियों को वृक्ष से बाँध दिया और उनको मार डालने को तैयार हो गये l

🌿      इतने में महाप्रभु कप चेतना आ गई l श्री महाप्रभु ने कृष्ण कृष्ण उच्चारण किया l पठानों में प्रेम उदय हो उठा उन्होंने प्रभु के चरणों में वन्दना की l प्रभु के साथ परमार्थ चर्चा करते हुए उनके सरदार ने प्रभु के स्वरूप को जान लिया l प्रभु ने उसे कृष्णनाम का उपदेश दिया lवह वैष्णव हो गया l प्रभु ने उसका नाम रामदास रखा जो महाभागवत होकर प्रसिद्ध हुआ l

🌿   उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
          क्रमशः........
                      ✏ मालिनी
 
        ¥﹏*)•🍃•(*﹏¥
            •★🌸★•
         •🍂सुप्रभात🍂•
 •🍃श्रीकृष्णायसमर्पणं🍃•
     •🍂जैश्रीराधेश्याम🍂•
             •★🌸★•
        ¥﹏*)•🍃•(*﹏¥
   
•¡✽🌸🍃◆🍂◆🍃🌸✽¡•
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
                 
💐💐ब्रज की उपासना💐💐

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻            

🌷 निताई गौर हरिबोल🌷

     क्रम संख्या 3⃣3⃣

  🙏हे जगन्नाथ प्रभो

 👪जैसे माता-पिता बालक के रक्षक है , किन्तु आपकी कृपा के बिना वे भी रक्षक नहीं हो सकते क्यो कि उनके प्रयत्नशील रहने पर भी बालक की मृत्यु हो जाया करती हैं।

👤आर्त प्राणी को बचाने वाली औषध भी आर्त को नहीं बचा सकती , क्योकि औषधि का सेवन करते हुये भी प्राणी को मरना ही पड़ता हैं।

 🚣समुद्र में डूबते हुये को जलयान बचाता हैं, परंतु आपकी कृपा के बिना , जहाज भी डूब ही जाता हैं ।

🎁अतएव आपकी कृपा से ही सौभाग्यशालियों को दिव्य वैराग्य प्राप्त होता हैं ,

💂जिसके कारण बड़े बड़े सम्राटो ने भी विविध ऐश्वर्यों , भोगसामग्रियों का अनायास ही त्याग किया हैं ।

👳🏻आपकी कृपा से ही ऋषियों ने निश्चय किया था

  'न सुखाल्लभते सुखम् '

👀सत्य ही है भगवन , जिस पर भी आप कृपा करते है , वही दुस्तर देवमाया को पार कर सकता हैं ,

❄तभी इस श्वश्रंगालभक्ष्य शरीर से ममाहंबुद्धि हट सकती हैं।

🌻पर आपकी ऐसी कृपा के लिए भी तो निर्व्यलीक , निष्कपट, अकैतवरूप से आपकी शरणागति अपेक्षित हैं

❓.... पर मैं तो वह भी नहीं जानती प्रभो? मृगमरीचिका के समान इस लोभ , मोह , काम आदि ताप का अंत में भला कैसे कर लू ? न मुझमे विवेक हैं, न विज्ञान है , न ही मेरे धैर्य की मात्रा ही अधिक हैं ।

 👣आपके चरणो में भी विशिष्ट प्रीति नहीं है ... मेरा उद्धार तो बस आपकी दया से ही हो सकता हैं ,

क्रमशः........

 💐जय श्री राधे
 💐जय निताई

📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से

✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



भजन में 5 नहीं

नारायण हरिभजन में,
ये पाँचों न सुहात l
विषयभोग, निद्रा, हँसी,
जगत-प्रीत, बहु बात ll

श्रीहरि के भजनमें ये पाँच नहीं सुहाते -

1 । विषयों का भोग,
2 । निद्रा,
3 । हँसी,
4 । जगत के प्रति ममत्व और
5 । बहुत बातें करना

अतः इनपर   नियंत्रण अति आवश्यक l

हम शायद क्या पक्का इन 5 में ही लगे हैं आत्म निरीक्षण करते हुए निकलना है इनसे ।

एडिटेड । फ़ॉर्वर्डेड

समस्त वैष्णवजन को सादर प्रणाम जयश्रीराधे जय निताई


श्रीनारायण स्वामी कृत अनुरागरस ग्रन्थ से
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🌹    श्रीराधारमणो जयति    🌹
💐   श्रीवृंदावन महिमामृत   💐
🌾( सप्तदश-शतक )🌾

श्रीप्रबोधानंद सरस्वती पाद कहते हैं कि....

🌴हीन अखिल साधन ते अन अधिकारी हौं बन आश्रित।
🌴प्राप्त होय राधा प्रिय रस उत्सव फल है यह निश्चित॥

🌲सर्व साधन हीन होते हुए भी यदि एकांत भाव से श्रीवृन्दावन का ही कोई सम्यक आश्रय कर सकता है तो वह कोई भी क्यों न हो, उसे श्रीराधाप्रिय रसोत्सव(रासकेलि-आनन्द) की प्राप्ति होगी।

🙌 श्रीराधारमण दासी परिकर 🙌
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



कहो तो
थोड़ा
वक्त भेज दूँ ???

मोहन

सुना है
तुम्हें
फुर्सत नहीं
मुझसे
बात करने की...
😏
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



💧💧💧💧💧💧💧💧

पंडित श्री गयाप्रसाद जी के
सार वचन उपदेश

👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

🙏🏻🍁 5⃣ श्रद्धा

🐚सदाचार🐚

🍊सदाचार
या वाक्य में दो शब्द हैं

🍒१ । सत्

🍒२ । आचार

🌷व्याकरण सों त् के स्थान में द्  बन गयौ है- कहूँ-कहूँ त् कौ न बन जाय है । यथा सन्मार्ग

🌷 सत् कौ अर्थ है अति उत्तम
जो अति श्रेष्ठ पुरुष है-सन्त है इनके आचरण ही सदाचार कहे जायँ हैं।

🍎सन्तन की जीवनी पढौ अथवा जो वर्तमान में सन्त हैं-बड़े गौर सौ इनके आचरण देखौ-इनकी रहनी देखौ ये कितने सरल हैं।

🌷कितने विशाल ह्रदय है।

🌷कितने उदार है।

🌷कितने क्षमाशील है।

🌷दुःख सुख सहने में कितने समर्थ हैं।

🌷भूल सों हू क्रोध नहीं करें।

💎प्रस्तुति 📖 श्री दुबे

📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दाबन
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



💎💎💎💎

ISKA अर्थ है कि

🔸🔸

🔶When you stop trying to change people, and instead focus on changing yourself, it means that you have got matured.

🔷जब आप अन्य सभी में बदलाव लाने के स्थान पर स्वयम अपने आप में बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हो जाएँ तो इसका अर्थ है कि आपमें परिपक्वता आ गई है ।

लगे रहो । शुभ कामना ।

📙📗📙📗📙📗📙📗
[19:33, 1/29/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:



🐚प्राणधन श्रीराधारमण लाल मण्डल🐚
                🔻जयगौर🔻

📘        [श्रीचैतन्य-भक्तगाथा]         📘
🐚             (ब्रज के सन्त)              🐚
✨🌹श्रीपादमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामी✨🌹
         〽ब्रजविभूति श्रीश्यामदास 〽
🎨मुद्रण-संयोजन:श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन🎨

✏क्रमश से आगे.....1⃣6⃣

✨🌹वे गौरगत प्राण हैं एवं सर्वविध समृद्ध है। उनके श्रीपिता श्रीवल्लभाचार्य जी नित्यलीला मे प्रविष्ट हो चुके है। अतः उन्होंने अति श्रद्धा-उत्साहपूर्वक श्रीगोपालजी की सेवा की सर्वविध यथेष्ट व्यवस्था की। जैसा कि श्रीभक्तिरत्नाकर मे उल्लेख है-

🍂सेइ      दुइ        विप्रेर     अदर्शने।
🍂कथोदिन सेवे कोन भाग्यवान जने।।
🍂श्रीदासगोस्वामी आदि परामर्श करि।
🍂श्रीविट्ठलेश्वर कैल सेवा अधिकारी।।
🍂पिता श्रीवल्लभ-भट्ट, तार अदर्शने।
🍂कथोदिन  मथुराय छिलेन निर्जने।।
🍂परम  विहृल   गौरचन्द्रेर   लीलाय।
🍂सदा सावधान एवे गोपाल-सेवाय।।

✨🌹श्रीरघुनाथदास गोस्वामी ने अपने रचित 'श्रीगोपालराज-स्त्रोत' मे तथा श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ने स्वरचित 'श्रीगोपालदेवाष्टक' मे श्रीविट्ठलेशजी को श्रीगोपाल सेवा के देने का स्पष्ट उल्लेख किया है। श्रीविट्ठलेशजी की आज्ञा लेकर संवत् 1590 मे एक गुजराती सेठ श्रीगोपीनाथ अपने गांव मे श्रीगोपालजी को सेवा-हित ले गए। वहाँ जाकर श्रीगोपालजी "श्रीनाथ" जी के नाम से विख्यात हुए। इनके नाम पर उस गांव का नाम "श्रीनाथद्वारा" प्रसिद्ध हुआ। आज पर्यन्त वे श्रीनाथद्वारा मे पुष्टि-मार्गीय विधि विधान से सुचारू रूप से सेवित है।

✨🌹श्रीमन्महाप्रभु ने अपनी दक्षिण-यात्रा के समय शान्तिपुर से नीलाचल की ओर जाते हुए श्रीपुरीजी का चरित्र अपने श्रीमुख से अपनी साथी-भक्तों को सुनाया और फिर अन्त मे कहा-

🍂पुरीर प्रेम-पराकाष्ठा करह विचार।
🍂अलौकिक प्रेम, चित्ते लागे चमत्कार।।
🍂परम विरक्त मौनी, सर्वत्र उदासीन।
🍂ग्रामवार्ता भये द्वितीय संग-हीन।।
🍂एइ भक्ति, भक्तप्रिय-कृष्ण व्यवहार।
🍂बूझिते हो आमा सभार नाहि अधिकार।।

✨🌹वस्तुत: ऐसे वैष्णव शिरोमणि, अनन्य-रसिकचूड़ामणि, व्रजरस-कल्पतरू-स्वरूप श्रीपुरीपाद की महिमा कोई भी नहीं जान सकता। जिस समय श्रीमनमहाप्रभु मथुरा पधारे, श्रीकेशवदेव के दर्शन कर प्रेमाविष्ट होकर नृत्यगान कर रहे, एक वृद्ध ब्राह्मण श्रीप्रभु के चरणों मे आकर गिर पड़ा। श्रीमहाप्रभु ने उसे उठाया और वह भी प्रेमाविष्ट होकर प्रभु के साथ नाचने लगा। दर्शन के बाद श्रीमहाप्रभु ने उस ब्राह्मण से एकांत मे पूछा-हे विप्रवर ! यह कृष्णप्रेम धन तुम्हें कहाँ से मिला?

✏क्रमश......1⃣7⃣

🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹

▫🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫🔲

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