[11:12, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
निपटाना
जल्दी जल्दी भजन निपटा लो
फिर काम में लगेंगे
अधिकतर हम लोग यही कहते हैं
जल्दी से काम निपटा लो
फिर भजन में लग जाना है
जिस दिन से ये सोच हो जायेगी उस दिन से हम ये समझ जाएंगे की जीवन भजन के लिए मिला है
मुख्य है भजन
बाकी के काम तो रास्ते में पड़ने वाले काम हैं । केंद्र में सदा भजन
समस्त वैष्णवजन के श्रीचरणों में सादर प्रणाम । जय श्री राधे । जय निताई
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 27
🙏 ब्रज भक्ति की सीढियाँ 🙏
👭जिस प्रकार स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहले प्ले स्कूल फिर lkg, ukg, फर्स्ट सेकंड, थर्ड-ये क्रम है,
✔उसी प्रकार भक्ति की शिक्षा- प्राप्ति या भक्ति के राज्य में आने के लिए भी एक निश्चित क्रम है-
1⃣ श्रद्धा
2⃣ साधुसंग
3⃣ भजन क्रिया
4⃣ अनर्थ निवृति
5⃣ निष्ठा
6⃣ रुचि
7⃣ आसक्ति
8⃣ भाव/रति
9⃣ प्रेम
💐प्रेम तक पहुँचने पर श्रीकृष्ण चरण सेवा प्राप्ति होती है
🌷 प्रेम या भक्ति ।ये पर्यायवाची हैं। इनमें श्रद्धा आज का विषय है ।
👏श्रीकृष्ण पूजा से समस्त देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है -ऐसा अटल विश्वास 'श्रद्धा' है।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से
✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 4⃣6⃣
👠👞 जूते का शो रूम 👞👠
मैं लोगों को वही दे पाउँगा जो मेरे पास है या होगा
यदि मेँ स्वय
🎈राग
😡 द्वेष
🚗 माया
💃🏻 मोह
💲 धन
🚗 विलासिता
😖 अशांति
से घिरा हूँ तो आपको
😀 प्रेम
😷 शान्ति
🔔 अनासक्ति
🙏🏻 भक्ति
कैसे दे पाउँगा । और यदि फिर भी मेँ 😎 ये सब देने की बात करता हूँ तो
😳 आपका भी कर्त्तव्य है कि आप सावधानी पूर्वक विचार करें देखें 😠समझे😇
👟👞👡👠👢👠👡👞
शो रूम जूते का । और बुकिंग
💍💍💍💍
ज्वेलरी की ।
❓कितनी बार ठगे जाओगे ❓
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
जोड़ी तेरी हमारी
पहले रची विधाता
जो तुम हो रंग के काले
तो हम भी दिल के काले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
बहुतों को अपना समझा
बहुतों के हो लिए हम
अब तेरे बन रहेंगे
अपना हमे बना ले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
राज़ी तेरी रज़ा में
अपनी बने या बिगड़े
नाचेंगे हम तो नटवर
जैसा हमे नचा ले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
ब्रजराज ब्रज बिहारी
गोपाल वंशी वाले
इतनी विनय हमारी
वृन्दा विपिन बसा ले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
😰😪😰
शुभ रात्रि
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
•¡✽🌿🌹◆🔔◆🌹🌿✽¡•
9⃣*1⃣*1⃣6⃣
शनिवार पौष
कृष्णपक्ष चतुर्दशी
•🌹•
◆~🔔~◆
◆!🌿जयनिताई🌿!◆
★🌹गौरांग महाप्रभु 🌹★
◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
◆~🔔~◆
•🌹•
❗व्यासपूजा षड्भुजरूप दर्शन❗
🌿 श्री अद्वैताचार्य को श्री गौरांग ने शांतिपुर में ही अपना ऐश्वर्य दिखाया l श्री गौरांग ने चटु ग्राम के परम वैष्णव श्री पुण्डरीक विद्या निधि का परिचय सब भक्तों को दिया और उसे अपने पास बुला लिया l प्रभु के दर्शन करते ही उसमे प्रेम विकार उदित हो उठे और हे कृष्ण ❗हे नाथ कहकर प्रभु के चरणों में गिर गया l श्री पुण्डरीक एक राजकुमार के वेश में सदा अलंकृत रहते थे l
🌿 अनेक भक्त श्री पुण्डरीक के शाही ठाठ बाट को देखकर उन्हें विषयी समझते थे l श्री चैतन्य महाप्रभु ने उनकी प्रेम भक्ति को प्रकाशित किया और यह बताया कि वेश भेष से भक्ति का कोई सम्बन्ध नहीं है lबाहर से विषयी दीखने पर भी कोई भगवद भक्त हो सकता है l
❗कृष्ण भक्ति का एक अलौकिक महत्व हैl हर वेश जाति पशु पक्षी सबको आत्मसात कर सकती है l घर गृहस्थ रहकर प्रारब्धवश हर प्रकार के वैभव को भोगते हुए भी कृष्ण भक्ति हो सकती है और स्वयं भगवान उसके आधीन रहते हैं l❗
🌿 उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
•🔔★🔔•
•🌿सुप्रभात🌿•
•🌹श्रीकृष्णायसमर्पणं🌹•
•🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
•🔔★🔔•
¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
•¡✽🌿🌹◆🔔◆🌹🌿✽¡•
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia
: 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 2⃣8⃣
🌴ब्रज भक्ति की सीढियाँ🌴
💽सॉफ्टवेयर💽
💻बाहर से एक से दिखने वाले सस्ते या महंगे से महंगे कंप्यूटर या लैपटॉप में अपने-अपने प्रयोग के हिसाब से सॉफ्टवेयर डले होते हैं।
📃महंगे से महंगा ब्रांडेड लैपटॉप हो और उसमें 'कुंडली' वाला सॉफ्टवेयर न हो तो कुंडली-मिलान संभव नहीं है।
💿इसी प्रकार अन्य सॉफ्टवेयर्स का महत्व है।
❤संसार, धर्म, भजन, भक्ति को समझने के लिए भी हमें एक सॉफ्टवेयर अपने हृदय में इंस्टॉल करना होता है-
🎶वह इंस्टॉल होता है- संख्या पूर्वक नाम जप या सकीर्तन द्वारा । यह बड़ा सॉफ्टवेयर है
🎼अत: एक दो घंटे में इंस्टॉल नहीं होता है। नियम पूर्वक लंबे समय तक संख्या पूर्वक नाम जप करने से धीरे-धीरे इंस्टॉल होता जाता है
👼और कुछ समय बाद अनुभव भी होता है कि हो रहा है। यह जैसे-जैसे इंस्टॉल होता जाता है वैसे-वैसे संसार, भजन, धर्म, भक्ति का रहस्य समझ में आने लगता है
🎢और जब समझ आ गया तो फिर साधक सहज ही भक्ति की सीढ़ियों पर चढ़ता जाता है।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से
✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[14:10, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: प्रवेश कैसे हो
जिस पुरुषका विवेक अभी जाग्रत् नहीं हुआ है और तर्क कुतर्क द्वारा ज्ञान अर्जन करना चाहता है जो अश्रद्धाल भीु है ऐसे संशय युक्त पुरुषका पारमार्थिक मार्ग में प्रवेश ही नही होता ।
कारण कि संशययुक्त पुरुषकी अपनी बुद्धि तो प्राकृत शिक्षा रहित है और दूसरेकी बातका आदर नहीं करता ।
फिर ऐसे पुरुषके संशय कैसे नष्ट हो सकते हैं और संशय नष्ट हुए बिना उसकी उन्नति भी कैसे हो सकती है ।
अतः छोड़ दो उसे उसके हाल पर
[17:25, 1/10/2016] स ग 2 राधिका बेटी:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🐚 🌹ब्रज के सन्त🌹 🐚
🌹 श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी 🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏भाग-1⃣
🌹यस्मै दातुं चोरयन् क्षीरभाण्डं गोपीनाथ: क्षीरचोराभिधो$भूत।
🌹श्रीगोपाल: प्रादुरासीद वश: सन् यत्प्रेम्णा तं माधववेन्द्रं नतो$स्मि।।
✨🌹श्रीगोपीनाथ ठाकुर ने जिनको देने के लिए क्षीर के भरे पात्र की चोरी की अपना नाम "क्षीर-चोरा गोपीनाथ" धराया, और प्रेम के वशीभूत होकर श्रीगोपाल जिनके सामने गोप-बालकरुप मे साक्षात् प्रकट हुए, उन श्रीमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामीपाद को मैं प्रणाम करता हूं।
✨🌹लौकिक लीला मे श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी श्रीकृष्णचैतन्यदेव के परम गुरु हैं-गुरु के गुरु है। श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी के शिष्य हैं श्रीईश्वरपुरी जी, तथा उनके शिष्य हैं श्रीमन्महाप्रभु। आपात्-दृष्टि से ऐसा लगता हैं कि "श्रीचैतन्यभक्तगाथा" मे श्रीपाद माधवेन्द्रपुरी का उल्लेख क्यों ? जबकि वे श्रीचैतन्य के भक्त नहीं हैं, गुरु हैं बल्कि परमगुरु हैं। किन्तु यहाँ इस सिद्धांत को याद रखना आवश्यक है कि-
🌹कृष्णप्रेमेर एइ
🌹एक अपूर्व प्रभाव।
🌹गुरु, सम लघुके
🌹कराय दास्यभाव।।
✨🌹कृष्ण-प्रेम का एक ऐसा अद्भुत अनुपम प्रभाव है कि जिसमें वह उदय होता हैं, वह व्यक्ति चाहे श्रीकृष्ण का गुरुजन हो, उनके बराबर का (सखा) हो अथवा उनसे छोटा (दास) हो, उसमें भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति दास्यभाव रहता हैं। "वह अपने को श्रीकृष्ण का दास ही मानता हैं।" श्रीकृष्ण की ब्रज-लीला मे श्रीनंद महाराज के बराबर श्रीकृष्ण का गुरुजन और कोई नहीं हो सकता। वे शुद्ध वात्सल्य की मूर्ति है, श्रीकृष्ण के प्रति उनका ईश्वर-ज्ञान तीनों काल नहीं है, कृष्ण-प्रेम उनमें भी दास्यभाव का अनुसरण कराता है।
✏क्रमश.....2⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं 🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚
[17:34, 1/10/2016] स ग 2 राधिका बेटी:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....2⃣
✨🌹मनसो वृत्तयो न: स्यु: कृष्णपादाम्बुजाश्रया:।
✨🌹वाचो$भिधायिनीर्नाम्नां कायस्तत्प्रहृणदिषु।।
✨🌹श्रीनन्द महाराज ने उद्घव जी को, जब वे मथुरा लौटने लगे, तब कहा "हे उद्घव ! अब हम यही चाहते है कि हमारे मन की एक-एक वृत्ति, एक-एक संकल्प श्री कृष्ण के चरणकमलों के आश्रित रहे। उन्हीं की सेवा के लिये हमारी वृत्ति और हर संकल्प हो। हमारी वाणी नित्य-निरन्तर उन्हीं के नामों का उच्चारण करती रहे और शरीर उनको प्रणाम करने मे, उन्हीं की आज्ञा पालन और सेवा मे लगा रहे।" इसी प्रकार श्रीबलराम जी आदि समस्त गुरुजन, मथुरा-द्वारिका के सब परिकर, ब्रह्मा-शिव आदि भगवदवतारगण भी भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति सदा दास्यभाव रखते हैं।
✨🌹इसी प्रकार नवद्वीप-लीला मे समस्त गुरुजनों अर्थात माता-पिता मे तो दास्यभाव अनेक स्थानों पर स्पष्ट दीखता ही हैं, कृष्ण-प्रेम-दीक्षा प्रदाता गुरु श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी तथा संन्यास-प्रदाता गुरु केशव भारती जी मे भी श्रीकृष्ण-स्वरुप श्रीकृष्णचैतन्य के प्रति दास्यभाव का स्पष्ट उल्लेख मिलता है-
✨🌹श्री मन्महाप्रभु गया यात्रा पर गये। चक्रवेड़ पर, जहाँ श्रीविष्णु चरण-कमलों के दर्शन हैं, वहाँ श्रीचरण-दर्शन एवं पूजा करते ही महाप्रभु प्रेमाविष्ट हो उठे। शरीर मे प्रेम के विकार स्वेद-कम्प-रोमाञ्चादि हो उठे, नेत्रों से अजस्र अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। दैवयोग से वहाँ श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी आ पहुंचे। श्रीपुरी के दर्शन करते ही श्रीमहाप्रभु ने उन्हे नमस्कार किया और अपनी तीर्थयात्रा को सफल माना, अनेक कृतज्ञता जनाई। श्रीमन्महाप्रभु नवद्वीप मे पहले उनके दर्शन कर चुके थे-पूर्व परिचित थे।
✏क्रमश......3⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫
[17:40, 1/10/2016] स ग 2 राधिका बेटी: प्राणधनश्रीराधारमण लालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....3⃣
✨🌹श्रीमन्महाप्रभु के वचन सुनकर श्रीपुरीपाद बोले-
🍁येन आजि आमि शुभ स्वपन देखिलाड।
🍁साक्षाते ताहार फल एई पाइलाड।।
🍁सत्य कहि, पण्डित ! तोमार दरशने।
🍁परानन्द-सुख येन पाइ अनुक्षणे।।
🍁सत्य एइ कहि, इथे किछु अन्य नाइ।
🍁कृष्ण-दरशन-सुख तोमा देखि पाइ।।
✨🌹मैनें जो शुभ स्वपन आज देखा, उसका साक्षात् फल प्राप्त किया है। पण्डित विश्वम्भर ! आपके दर्शन से परमानन्द-सुख का मैं प्रतिक्षण अनुभव कर रहा हूं। मैं यह सत्य कह रहा हूं, कुछ बढ़ा-चढा़कर नहीं कह रहा, आपके दर्शनों मे कृष्ण-दर्शन का सुख अनुभव कर रहा हूं।
✨🌹अगले दिन फिर श्रीईश्वरपुरी जी श्रीमहाप्रभु के स्थान पर गये और प्रभु ने उनसे भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना की। श्रीपाद 'वृन्दावनदास-व्यास' लिखते है-
🍁हेन कृपा प्रभुर ईश्वरपुरी-प्रति।
🍁पुरीरो नाहिक कृष्ण-छाड़ा अन्य-मति।।
✨🌹श्रीमहाप्रभु की अपूर्व कृपा थी श्रीईश्वरपुरी के प्रति, और श्रीईश्वरपुरी जी भी महाप्रभु को श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं जानते। इससे स्पष्ट है कि प्रेमदीक्षा-गुरु श्रीईश्वरपुरी भी महाप्रभु मे दास्य-भाव रखते हैं, और उन्हें अपना इष्टदेव श्रीकृष्ण मानते हैं।
✏क्रमश......4⃣
🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹
▫🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫🔲
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
बात
यदि दिल से
कही जायेगी
तभी
दिल तक
पहुंचेगी
वरना तो
सफ़र
ज़ुबां
😛 से
कान
👂🏻तक
💜 से 💚
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 4⃣7⃣
🌿 मनमानी से भी जरूर
🌿 मिलेगा
🙏भक्ति को शास्त्र में निरपेक्ष कहा गया है, यानी यह किसी की अपेक्षा नहीं रखती,
यह भगवान की ही तरह परम स्वतंत्र है, न शास्त्र, न विधि, न निषेध्, न मंत्र, न नियम, न साधन, न ज्ञान
इस बात के प्रमाण में ऐसे अनेक संत हुए हैं।
👳🏻एक संत ने भोग न लगाने पर प्रभु को पहले तो खूब हड़काया, न मानने पर डंडा उठा लिया, प्रभु प्रकट हो गए और भोग लगाया।
〽 ठाकुर को डंडा मारना शास्त्रीय नहीं है, न भक्ति के 64 अंगों में आता है।
इसी प्रकार हम जो कर रहे हैं उल्टा-सीधा, उचित- अनुचित, अशास्त्रीय, हमें यदि आत्मिक आनंद मिल रहा है, प्रभु का अहसास हो रहा है, हम गद-गद हैं, तो इससे बढ़कर कुछ भी नहीं, न शास्त्र, न साधु, न संत, न विद्वान।
😨और यदि संतुष्टि है नहीं, भटकन बनी हुई है, अहसास हो नहीं रहा, आनंद का लेश भी नहीं है, तर्क- कुतर्क हार -जीत का सिलसिला, राग- द्वेष, अहंकार बना है तो हम भटक रहे हैं। और यह भटकन शास्त्र विधि का अनुसरण करने पर ही दूर होगी।
मनमानी बंद करनी ही होगी । आत्म -निरीक्षण से स्वयं को नापना होगा । दूसरा कोई कुछ भी कहे कहता रहे।
🌿एकादशी यानि क्या???🌿
🍒कुछ चीजों को खाना और कुछ चीजों को न खाना एकादशी की पहली क्लास है। एकादशी के लौकिक और परमार्थिक दो तरह के फल हैं ।
💕लौकिक फल
🙌एकादशी की कथा में वर्णित है पारमार्थिक फल है कि एकादशी प्रभु - प्रेम प्राप्त कराती है। एकादशी के दिन को 'हरिवासर' भी कहते हैं =यानी 'हरि का दिन'
💤 इस दिन कोशिश करके अपना अधिक से अधिक समय प्राथमिकताएं एवं चेष्टा श्रीहरि के लिए समर्पित होनी चाहिए। रात्रि- जाग कर नाम जप या संकीर्तन करना चाहिए। और यह सब सहजता से हो सके।
🍑इसलिए परम सात्विक फल, फूल, कंद, मूल, शरीर रक्षा को ध्यान में रखकर कम मात्रा में खाना चाहिए जिससे विकार न हो। यदि हम ' खाने न खाने 'को ही एकादशी माने हुए हैं, तो ठीक है।
🚶लेकिन इससे आगे बहुत कुछ और भी है, आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
खाने न खाने से पाप पुण्य होगा
भजन करने से भक्ति होगी
समझे रहें ।
📌एक ही क्लास में कितने दिन रुके रहेंगे हम???
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
•¡✽🌿🌻◆🔔◆🌻🌿✽¡•
🔟*1⃣*1⃣6⃣
रविवार पौष
शुक्लपक्ष प्रतिपदा
•🌻•
◆~🔔~◆
◆!🌿जयनिताई🌿!◆
★🌻गौरांग महाप्रभु 🌻★
◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
◆~🔔~◆
•🌻•
❗श्रीवासपण्डित को वरदान❗
🌿 श्री नित्यानन्द प्रभु श्री वास पण्डित के घर सदा बाल भाव में रहते थे l श्री वास एवं उसकी गृहणी मालिनी देवी बालक की भाँति उन्हें स्नेह करती थी l एक दिन श्री गौरांग श्री वास की परीक्षा लेने उनके घर पहुंचे और बोले श्री वास तुम बड़े सरलचित्त हो l इस नित्यानन्द के जाति कुल का कोई पता नहीं l इसका कोई आचरण नहीं धर्म अधर्म यह कुछ नहीं जानता l
🌿 अतः यदि तुम अपने धर्म की रक्षा चाहते हो तो इसे यहाँ मत रहने दो l श्री वास हँसकर बोले प्रभो मेरी परीक्षा करने आये हो ❓मेरा धर्म बिगड़े या रहे मेरा घर बार वैष्णव तन मन सर्वनाश हो जाये होने दो पर मैं निताई चांद को नहीं छोड़ सकता हूँ l मैं इन्हें मूल संकर्षण बलराम जानता हूँ l
🌿 उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•🔔★🔔•
•🌿सुप्रभात🌿•
•🌻श्रीकृष्णायसमर्पणं🌻•
•🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
•🔔★🔔•
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•¡✽🌿🌻◆🎼◆🌻🌿✽¡•
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
शास्त्र में भजन के लोभ को ही महत्वपूर्ण कारण माना गया है
यदि लोभ उत्पन्न हो जाय तो हम भजन के बिना रह नही पाएंगे
ये लोभ का स्वाभाविक गुण ह
कामिहि नारी पियारि जिमि
लोभिहि जिमि दाम
एक दायित्व
। एक नियम ।
एक अनुशासन
एक परम्परा के लिए
हम भजन में लगे हैं । अभी लोभ उत्पन्न नही हुआ
जिस दिन हो जाएगा
फिर बात ही कुछ और होगी
शास्त्र में कहा ह
तस्य लौल्यम अपि
मूल्य मेकलम
अर्थात भजन को खरीदना चाहते हो तो इसका मूल्य है लोभ ।
जय हो
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
कारण या भाव
किसी भी कार्य के करने में
हमारा भाव क्या है
यही महत्वपूर्ण है । और फल का निर्धारण और प्राप्ति भी उसी अनुसार होती है
हम भजन को ही लें
भजन करते हुए हम पहचान चाहत हैं तो पहचान मिलेगी । भगवान नही ।
अनेक बार बाहर से एक सी क्रिया दीखते हुए भी फल अलग अलग होटा है ।
और सबसे बड़ी बात कि कभी कभी हम स्वयं भी ये नहीं जान पाते कि इस कार्य को करने का हमारा उद्देश्य क्या है ।
मंदिर का पेड पुजारी इसका उदाहरण है । लगता तो है कि कितनी भावपूर्ण सेवा करता है । लेकिन कुछ रुपये अधिक मिलने पर दूसरे मन्दिर में दिखाई देता है
उसका उद्देश्य सैलरी है । सेवा नही । इसका उल्टा भी होता है की उद्देश्य सेवा है । कुछ मिल जाय तो ठीक । न मिले तो ठीक ।
दीखने में दोनों ही सेवा कर रहे हैं
अन्तर्निहित भाव या कारण अलग अलग है । अतः सावधान अपने अंदर सूक्ष्मता से झांकते रहना है हमें । उत्तर अवश्य मिलेगा
समस्त वैष्णवजन के श्रीचरणों में सादर प्रणाम जय श्री राधे
जय निताई
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
संजय कौन
जो धृतराष्ट्र को महल में बेठे हुए
महाभारत के युद्ध का सब आँखों देखा हाल सुनाये
जो हम सब ग्रुप वालों को ब्रज के उत्सवों का आँखों देखा हाल दिखाए । सुनाये
गज़ब । संजय जी । SB
यथा नाम तथा गुण । जय हो
बलिहार प्रभु की कि आप से सेवा ले रहे हैं और हमे आनंद दे रहे हैं
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: 🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 2⃣9⃣
🌴ब्रज भक्ति की सीढियाँ🌴
🙏 श्रद्धा 🙏
🎷 'कृष्ण -भक्ति- जन्म' का मूल है साधूसंग । पूर्वजन्म के किसी साधु- वैष्णव की कृपा के कारण ही जीव् में श्रद्धा अर्थात् शास्त्र वचनों में, गोस्वामीग्रंथों में कही गई बातों में दृढ़ विश्वास होता ह ।
🎻इस विश्वास या श्रद्धा से ही जीव भक्ति के विद्यालय में प्रवेश की योग्यता प्राप्त करता है।
🎺जिसे श्रद्धा नहीं है, संशय है-वह भक्ति से कोसों दूर है । संशय और जिज्ञासा में अंतर है ।
🎸संशय में विश्वास, श्रद्धा का अभाव है। जिज्ञासा में श्रद्धा है, विश्वास है, उसे समझने की चेष्टा है।
1⃣ शास्त्रवचनों में विश्वास तो है। श्रद्धा भी है लेकिन वह उन पर अमल नहीं करते। विश्वास मौखिक है हम जैसे बहुत से लेखक व कथा वाचक प्राय: इस श्रेणी में आते हैं।
2⃣ कुछ लोग इसलिए श्रद्धा या विश्वास करते हैं कि- शास्त्र कथन मानने से इस लोक व् परलोक के सुख, यश,भोग प्राप्त होंगे। श्रद्धा का कारण सुख-प्राप्ति है। भक्ति नहीं।
3⃣ कुछ लोग इस लोक व् परलोक के सुखों को अनित्य जानकर 'मोक्ष' 'मुक्ति'- बार- बार जन्म-मरण के चक्कर से छूटने के लिए भी शास्त्रों में श्रद्धा करते है।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से
✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🐚 🌹ब्रज के सन्त🌹 🐚
🌹 श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी 🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏भाग-1⃣
🌹यस्मै दातुं चोरयन् क्षीरभाण्डं गोपीनाथ: क्षीरचोराभिधो$भूत।
🌹श्रीगोपाल: प्रादुरासीद वश: सन् यत्प्रेम्णा तं माधववेन्द्रं नतो$स्मि।।
✨🌹श्रीगोपीनाथ ठाकुर ने जिनको देने के लिए क्षीर के भरे पात्र की चोरी की अपना नाम "क्षीर-चोरा गोपीनाथ" धराया, और प्रेम के वशीभूत होकर श्रीगोपाल जिनके सामने गोप-बालकरुप मे साक्षात् प्रकट हुए, उन श्रीमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामीपाद को मैं प्रणाम करता हूं।
✨🌹लौकिक लीला मे श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी श्रीकृष्णचैतन्यदेव के परम गुरु हैं-गुरु के गुरु है। श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी के शिष्य हैं श्रीईश्वरपुरी जी, तथा उनके शिष्य हैं श्रीमन्महाप्रभु। आपात्-दृष्टि से ऐसा लगता हैं कि "श्रीचैतन्यभक्तगाथा" मे श्रीपाद माधवेन्द्रपुरी का उल्लेख क्यों ? जबकि वे श्रीचैतन्य के भक्त नहीं हैं, गुरु हैं बल्कि परमगुरु हैं। किन्तु यहाँ इस सिद्धांत को याद रखना आवश्यक है कि-
🌹कृष्णप्रेमेर एइ
🌹एक अपूर्व प्रभाव।
🌹गुरु, सम लघुके
🌹कराय दास्यभाव।।
✨🌹कृष्ण-प्रेम का एक ऐसा अद्भुत अनुपम प्रभाव है कि जिसमें वह उदय होता हैं, वह व्यक्ति चाहे श्रीकृष्ण का गुरुजन हो, उनके बराबर का (सखा) हो अथवा उनसे छोटा (दास) हो, उसमें भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति दास्यभाव रहता हैं। "वह अपने को श्रीकृष्ण का दास ही मानता हैं।" श्रीकृष्ण की ब्रज-लीला मे श्रीनंद महाराज के बराबर श्रीकृष्ण का गुरुजन और कोई नहीं हो सकता। वे शुद्ध वात्सल्य की मूर्ति है, श्रीकृष्ण के प्रति उनका ईश्वर-ज्ञान तीनों काल नहीं है, कृष्ण-प्रेम उनमें भी दास्यभाव का अनुसरण कराता है।
✏क्रमश.....2⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं 🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....2⃣
✨🌹मनसो वृत्तयो न: स्यु: कृष्णपादाम्बुजाश्रया:।
✨🌹वाचो$भिधायिनीर्नाम्नां कायस्तत्प्रहृणदिषु।।
✨🌹श्रीनन्द महाराज ने उद्घव जी को, जब वे मथुरा लौटने लगे, तब कहा "हे उद्घव ! अब हम यही चाहते है कि हमारे मन की एक-एक वृत्ति, एक-एक संकल्प श्री कृष्ण के चरणकमलों के आश्रित रहे। उन्हीं की सेवा के लिये हमारी वृत्ति और हर संकल्प हो। हमारी वाणी नित्य-निरन्तर उन्हीं के नामों का उच्चारण करती रहे और शरीर उनको प्रणाम करने मे, उन्हीं की आज्ञा पालन और सेवा मे लगा रहे।" इसी प्रकार श्रीबलराम जी आदि समस्त गुरुजन, मथुरा-द्वारिका के सब परिकर, ब्रह्मा-शिव आदि भगवदवतारगण भी भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति सदा दास्यभाव रखते हैं।
✨🌹इसी प्रकार नवद्वीप-लीला मे समस्त गुरुजनों अर्थात माता-पिता मे तो दास्यभाव अनेक स्थानों पर स्पष्ट दीखता ही हैं, कृष्ण-प्रेम-दीक्षा प्रदाता गुरु श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी तथा संन्यास-प्रदाता गुरु केशव भारती जी मे भी श्रीकृष्ण-स्वरुप श्रीकृष्णचैतन्य के प्रति दास्यभाव का स्पष्ट उल्लेख मिलता है-
✨🌹श्री मन्महाप्रभु गया यात्रा पर गये। चक्रवेड़ पर, जहाँ श्रीविष्णु चरण-कमलों के दर्शन हैं, वहाँ श्रीचरण-दर्शन एवं पूजा करते ही महाप्रभु प्रेमाविष्ट हो उठे। शरीर मे प्रेम के विकार स्वेद-कम्प-रोमाञ्चादि हो उठे, नेत्रों से अजस्र अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। दैवयोग से वहाँ श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी आ पहुंचे। श्रीपुरी के दर्शन करते ही श्रीमहाप्रभु ने उन्हे नमस्कार किया और अपनी तीर्थयात्रा को सफल माना, अनेक कृतज्ञता जनाई। श्रीमन्महाप्रभु नवद्वीप मे पहले उनके दर्शन कर चुके थे-पूर्व परिचित थे।
✏क्रमश......3⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
प्राणधनश्रीराधारमण लालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....3⃣
✨🌹श्रीमन्महाप्रभु के वचन सुनकर श्रीपुरीपाद बोले-
🍁येन आजि आमि शुभ स्वपन देखिलाड।
🍁साक्षाते ताहार फल एई पाइलाड।।
🍁सत्य कहि, पण्डित ! तोमार दरशने।
🍁परानन्द-सुख येन पाइ अनुक्षणे।।
🍁सत्य एइ कहि, इथे किछु अन्य नाइ।
🍁कृष्ण-दरशन-सुख तोमा देखि पाइ।।
✨🌹मैनें जो शुभ स्वपन आज देखा, उसका साक्षात् फल प्राप्त किया है। पण्डित विश्वम्भर ! आपके दर्शन से परमानन्द-सुख का मैं प्रतिक्षण अनुभव कर रहा हूं। मैं यह सत्य कह रहा हूं, कुछ बढ़ा-चढा़कर नहीं कह रहा, आपके दर्शनों मे कृष्ण-दर्शन का सुख अनुभव कर रहा हूं।
✨🌹अगले दिन फिर श्रीईश्वरपुरी जी श्रीमहाप्रभु के स्थान पर गये और प्रभु ने उनसे भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना की। श्रीपाद 'वृन्दावनदास-व्यास' लिखते है-
🍁हेन कृपा प्रभुर ईश्वरपुरी-प्रति।
🍁पुरीरो नाहिक कृष्ण-छाड़ा अन्य-मति।।
✨🌹श्रीमहाप्रभु की अपूर्व कृपा थी श्रीईश्वरपुरी के प्रति, और श्रीईश्वरपुरी जी भी महाप्रभु को श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं जानते। इससे स्पष्ट है कि प्रेमदीक्षा-गुरु श्रीईश्वरपुरी भी महाप्रभु मे दास्य-भाव रखते हैं, और उन्हें अपना इष्टदेव श्रीकृष्ण मानते हैं।
✏क्रमश......4⃣
🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹
▫🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫🔲
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 4⃣8⃣
🌿 एक अंधा 🌿
🐎 अपने घोड़े पर सवार होकर एक संत- सज्जन नगर से अपनी कुटिया पर जंगल की ओर जा रहे थे अचानक एक अंधा पुरुष सामने आ गया, वह कह रहा था- 'भाई कोई इस अंधे को उसके घर पहुंचा दें, उस का भला हो ;
👱🏻 सज्जन ने उसे अपने घोड़े पर बैठा लिया, और चल दिए बीच में एकांत आने पर अंधे ने संत को दबोच लिया ।और घोड़ा छुड़ा लिया। वह वास्तव में अंधा नहीं था। नाटक कर रहा था।
👳🏻सज्जन- संत ने कहा घोड़ा तो मैं तुम्हें वैसे ही दे देता, यह सब किया सो किया लेकिन यह बात किसी को बताना मत।
😎 अंधे ने पूछा- ' क्यों'
संत ने कहा -इस वाक्य से लोगों का अंधो से विश्वास उठ जाएगा। और फिर कोई भी अंधे की सहायता नहीं करेगा,
👴🏻 संत के तेज से उसका लौकिक अंधापन भी चला गया और अब वह भी उस संत की कुटिया में उस संत के साथ रहता है।
🌿 सज्जन 🌿
👱🏼 एक सज्जन पुरुष अपने साथ किए गए चाल चपट या अन्य करामातों को देखते - समझते हुए भी उन्हें अनदेखा करते हुए अपने सज्जन स्वभाव में स्थित रहता है।
😮हम यह समझते हैं कि हम इसे मूर्ख बना रहे हैं, लेकिन सत्य यह है कि हम मूर्ख हैं और वह सज्जन है ।
🌿 आनंद कहां 🌿
😏आनंद किसी वस्तु में नहीं। आनंद मन का एक भाव् है, यदि किसी वस्तु में आनंद होता है तो उसमें सभी को आनंद प्राप्त होता, लेकिन ऐसी कोई वस्तु नहीं हैं जो सभी को आनंद दे।
🌿उपासना 🌿
उपासना सकाम हो या श्री कृष्ण प्रीति के लिए की गई हो सदैव वर्तमान से श्रेष्ठता की और अग्रसर होने के लिए की जाती है। श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होने से वर्तमान की कम श्रेष्ठता या निकृष्टता से भी सहज मुक्ति मिल जाती है।
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: जिंदगी ने मेरे ‛मर्ज़ का
एक बढिया इलाज़ बताया,
वक्त को 'दवा' कहा और
‛ख्वाहिशो' का परहेज' बताया
समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम जय श्री राधे जय निताई
[18:42, 1/11/2016]
Dasabhas DrGiriraj Nangia:
•¡✽🌿🌻◆🔔◆🌻🌿✽¡•
1⃣1⃣*1⃣*1⃣6⃣
सोमवार पौष
शुक्लपक्ष द्वितीया
•🌻•
◆~🔔~◆
◆!🌿जयनिताई🌿!◆
★🌻गौरांग महाप्रभु 🌻★
◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
◆~🔔~◆
•🌻•
❗श्रीवासपण्डित को वरदान❗
🌿 श्री वास की श्री निताई में ऐसी निष्ठा देखकर श्री गौरांग पुलकित हो उठे l श्री वास को अंक भरकर बोले श्री नित्यानंद के प्रति तुम्हारा इतना विश्वास ❗प्रसन्न होकर दो वरदान देता हूँ l
1⃣ तुम्हे कभी दरिद्रता नहीं व्यापेगी तुम्हारे घर सदा समृद्धि और खुशहाली बनी रहेगी l
2⃣ जो भी तुम्हारे घर आँगन में एक बार आयेगा उसे श्री कृष्ण की अविचला भक्ति प्राप्त होगी l
🌿 अब भी उनके आँगन की महिमा अप्रतिहत है l चैतन्य महाप्रभु भी वहां भक्तों के साथ संकीर्तन रास करते थे lबहिर्मुख लोगो के अंदर आने की आज्ञा नहीं थी lभजन की यह रीति है कि यदि विजातीय वृत्ति का व्यक्ति भजन के समय सामने आये तो भजन का आवेश नष्ट हो जाता है l
🌿 उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•🔔★🔔•
•🌿सुप्रभात🌿•
•🌻श्रीकृष्णायसमर्पणं🌻•
•🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
•🔔★🔔•
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•¡✽🌿🌻◆🎼◆🌻🌿✽¡•
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
हा हा
कुछ लोग
यथा नाम तथा गुण होते हैं
जेसे संजय । SB
कुछ विपरीत होते हैं
जेसे दुग्गल
नाम दुग्गल और दोगला पन
बिलकुल नहीं । दिल के साफ़
निर्मल । अश्रुपूरित नेत्र । द्रवित ह्रदय ।
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: हे
श्री राधारमण
♡♡♡♡♡
मेरा वजूद मुक़म्मल है तुम से,
मेरी हर एक ग़ज़ल है तुम से,
मेरा मुझ में कुछ ना बचा अब,
जिंदगी मेरी सफल है तुम से,
जुदा हो कर कहाँ जाऊँगी मैं,
मेरा तो हर एक पल है तुम से,
धड़कता है दिल तुम्हारे होने से,
मेरा आज, मेरा कल है तुम से,
खुशियों की वजह तुम
परेशानियों का हल है तुम से....
जय गौर हरि से
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
नि । 🌹निश्चित रूप से
ता । 🌹तारने वाला
ई । 🌹ईश्वर
🌹निताई🌹
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
कृष्ण सेवा
वैष्णव सेवा
हरिनाम
वैष्णवों के 3 काम
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🐚प्राणधन श्रीराधारमण लाल मण्डल🐚
🔻जयगौर🔻
📘 [श्रीचैतन्य-भक्तगाथा] 📘
🐚 (ब्रज के सन्त) 🐚
✨🌹श्रीपादमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामी✨🌹
〽ब्रजविभूति श्रीश्यामदास 〽
🎨मुद्रण-संयोजन:श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन🎨
✏क्रमश से आगे.....4⃣
✨🌹श्री केशव भारती जी को जिस समय श्रीमनमहाप्रभु ने संन्यास देने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा
(श्रीकृष्णदास कविराज के वचनों में)-
🍁भारती कहेन, तुमि ईश्वर अन्तर्यामी।
🍁येई कराइ, सेइ करिव, स्वतन्त्र नहि आमी।।
✨🌹प्रभो ! आप तो अन्तर्यामी ईश्वर हो, आप जो कुछ करने की आज्ञा दें, मैं वही करने को तैयार हूँ, मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ-आपका अनुचर हूँ। अतएव स्पष्ट है कि महाप्रभु के दीक्षा-गुरू एवं संन्यास-गुरू भी उनमें दास्यभाव रखते है-उनके गुरुजन होते हुए भी उनकी भक्त-श्रेणी मे गणना है।
✨🌹अब देखिये श्रीमाधवेन्द्रपुरीपाद के विषय में-श्रीमनमहाप्रभु जीव-जगत् को प्रेमभक्ति रूप निज सम्पत्ति को प्रदान करने के लिए अवतीर्ण हुए, उस संकल्प की पूर्ति के लिए-
🍁श्रीचैतन्य मालाकार पृथिवीते आनि।
🍁भक्ति-कल्पतरु रोपिला सिञ्चि इच्छा पानी।
🍁जय श्रीमाधवपुरी कृष्णप्रेम-पूर।
🍁भक्ति-कल्पतरूर तेंहो प्रथम अंकुर।।
✨🌹श्रीचैतन्यदेव स्वयं माली बने और नवद्वीप मे प्रेम-फल का बगीचा लगाना आरंभ किया। उन्होंने श्री गोलोक-धाम से भक्ति-कल्पतरु लाकर नवद्वीप की पावन-भूमि मे रोपण किया। और अपनी इच्छा रूपी पानी से उसे सींचन करने लगे। श्रीमाधवेन्द्रपुरी का हृदय कृष्णप्रेम से परिपूर्ण हैं। वे उस भक्ति-कल्पतरू के प्रथम अंकुर रूप मे प्रकटित हुए।
✨🌹श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी को इस कार्य-सिद्धि के लिए ही श्रीव्रजेन्द्रनन्दन-कृष्ण ने अपने आविभार्व से पहले ही पृथ्वीतल पर अवतीर्ण कराया-जैसे हर अवतार मे अपने गुरूजनों को पहले भेजते है। ये व्रज मे दास्य, सख्य, वात्सल्य तथा मधुर रसमयी रागात्मिका-भक्ति के परिपक्व फल कृष्ण-प्रेम को धारण करने वाले कल्पवृक्ष रूप से विराजमान हैं।
✏क्रमश......5⃣
🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹
▫🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫🔲
निपटाना
जल्दी जल्दी भजन निपटा लो
फिर काम में लगेंगे
अधिकतर हम लोग यही कहते हैं
जल्दी से काम निपटा लो
फिर भजन में लग जाना है
जिस दिन से ये सोच हो जायेगी उस दिन से हम ये समझ जाएंगे की जीवन भजन के लिए मिला है
मुख्य है भजन
बाकी के काम तो रास्ते में पड़ने वाले काम हैं । केंद्र में सदा भजन
समस्त वैष्णवजन के श्रीचरणों में सादर प्रणाम । जय श्री राधे । जय निताई
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 27
🙏 ब्रज भक्ति की सीढियाँ 🙏
👭जिस प्रकार स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहले प्ले स्कूल फिर lkg, ukg, फर्स्ट सेकंड, थर्ड-ये क्रम है,
✔उसी प्रकार भक्ति की शिक्षा- प्राप्ति या भक्ति के राज्य में आने के लिए भी एक निश्चित क्रम है-
1⃣ श्रद्धा
2⃣ साधुसंग
3⃣ भजन क्रिया
4⃣ अनर्थ निवृति
5⃣ निष्ठा
6⃣ रुचि
7⃣ आसक्ति
8⃣ भाव/रति
9⃣ प्रेम
💐प्रेम तक पहुँचने पर श्रीकृष्ण चरण सेवा प्राप्ति होती है
🌷 प्रेम या भक्ति ।ये पर्यायवाची हैं। इनमें श्रद्धा आज का विषय है ।
👏श्रीकृष्ण पूजा से समस्त देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है -ऐसा अटल विश्वास 'श्रद्धा' है।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से
✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 4⃣6⃣
👠👞 जूते का शो रूम 👞👠
मैं लोगों को वही दे पाउँगा जो मेरे पास है या होगा
यदि मेँ स्वय
🎈राग
😡 द्वेष
🚗 माया
💃🏻 मोह
💲 धन
🚗 विलासिता
😖 अशांति
से घिरा हूँ तो आपको
😀 प्रेम
😷 शान्ति
🔔 अनासक्ति
🙏🏻 भक्ति
कैसे दे पाउँगा । और यदि फिर भी मेँ 😎 ये सब देने की बात करता हूँ तो
😳 आपका भी कर्त्तव्य है कि आप सावधानी पूर्वक विचार करें देखें 😠समझे😇
👟👞👡👠👢👠👡👞
शो रूम जूते का । और बुकिंग
💍💍💍💍
ज्वेलरी की ।
❓कितनी बार ठगे जाओगे ❓
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
जोड़ी तेरी हमारी
पहले रची विधाता
जो तुम हो रंग के काले
तो हम भी दिल के काले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
बहुतों को अपना समझा
बहुतों के हो लिए हम
अब तेरे बन रहेंगे
अपना हमे बना ले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
राज़ी तेरी रज़ा में
अपनी बने या बिगड़े
नाचेंगे हम तो नटवर
जैसा हमे नचा ले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
ब्रजराज ब्रज बिहारी
गोपाल वंशी वाले
इतनी विनय हमारी
वृन्दा विपिन बसा ले
🌺ओ मुरली वाले रंग के काले
हम तो दिल के काले
😰😪😰
शुभ रात्रि
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
•¡✽🌿🌹◆🔔◆🌹🌿✽¡•
9⃣*1⃣*1⃣6⃣
शनिवार पौष
कृष्णपक्ष चतुर्दशी
•🌹•
◆~🔔~◆
◆!🌿जयनिताई🌿!◆
★🌹गौरांग महाप्रभु 🌹★
◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
◆~🔔~◆
•🌹•
❗व्यासपूजा षड्भुजरूप दर्शन❗
🌿 श्री अद्वैताचार्य को श्री गौरांग ने शांतिपुर में ही अपना ऐश्वर्य दिखाया l श्री गौरांग ने चटु ग्राम के परम वैष्णव श्री पुण्डरीक विद्या निधि का परिचय सब भक्तों को दिया और उसे अपने पास बुला लिया l प्रभु के दर्शन करते ही उसमे प्रेम विकार उदित हो उठे और हे कृष्ण ❗हे नाथ कहकर प्रभु के चरणों में गिर गया l श्री पुण्डरीक एक राजकुमार के वेश में सदा अलंकृत रहते थे l
🌿 अनेक भक्त श्री पुण्डरीक के शाही ठाठ बाट को देखकर उन्हें विषयी समझते थे l श्री चैतन्य महाप्रभु ने उनकी प्रेम भक्ति को प्रकाशित किया और यह बताया कि वेश भेष से भक्ति का कोई सम्बन्ध नहीं है lबाहर से विषयी दीखने पर भी कोई भगवद भक्त हो सकता है l
❗कृष्ण भक्ति का एक अलौकिक महत्व हैl हर वेश जाति पशु पक्षी सबको आत्मसात कर सकती है l घर गृहस्थ रहकर प्रारब्धवश हर प्रकार के वैभव को भोगते हुए भी कृष्ण भक्ति हो सकती है और स्वयं भगवान उसके आधीन रहते हैं l❗
🌿 उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
•🔔★🔔•
•🌿सुप्रभात🌿•
•🌹श्रीकृष्णायसमर्पणं🌹•
•🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
•🔔★🔔•
¥﹏*)•🌹•(*﹏¥
•¡✽🌿🌹◆🔔◆🌹🌿✽¡•
[16:10, 1/9/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia
: 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 2⃣8⃣
🌴ब्रज भक्ति की सीढियाँ🌴
💽सॉफ्टवेयर💽
💻बाहर से एक से दिखने वाले सस्ते या महंगे से महंगे कंप्यूटर या लैपटॉप में अपने-अपने प्रयोग के हिसाब से सॉफ्टवेयर डले होते हैं।
📃महंगे से महंगा ब्रांडेड लैपटॉप हो और उसमें 'कुंडली' वाला सॉफ्टवेयर न हो तो कुंडली-मिलान संभव नहीं है।
💿इसी प्रकार अन्य सॉफ्टवेयर्स का महत्व है।
❤संसार, धर्म, भजन, भक्ति को समझने के लिए भी हमें एक सॉफ्टवेयर अपने हृदय में इंस्टॉल करना होता है-
🎶वह इंस्टॉल होता है- संख्या पूर्वक नाम जप या सकीर्तन द्वारा । यह बड़ा सॉफ्टवेयर है
🎼अत: एक दो घंटे में इंस्टॉल नहीं होता है। नियम पूर्वक लंबे समय तक संख्या पूर्वक नाम जप करने से धीरे-धीरे इंस्टॉल होता जाता है
👼और कुछ समय बाद अनुभव भी होता है कि हो रहा है। यह जैसे-जैसे इंस्टॉल होता जाता है वैसे-वैसे संसार, भजन, धर्म, भक्ति का रहस्य समझ में आने लगता है
🎢और जब समझ आ गया तो फिर साधक सहज ही भक्ति की सीढ़ियों पर चढ़ता जाता है।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से
✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[14:10, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: प्रवेश कैसे हो
जिस पुरुषका विवेक अभी जाग्रत् नहीं हुआ है और तर्क कुतर्क द्वारा ज्ञान अर्जन करना चाहता है जो अश्रद्धाल भीु है ऐसे संशय युक्त पुरुषका पारमार्थिक मार्ग में प्रवेश ही नही होता ।
कारण कि संशययुक्त पुरुषकी अपनी बुद्धि तो प्राकृत शिक्षा रहित है और दूसरेकी बातका आदर नहीं करता ।
फिर ऐसे पुरुषके संशय कैसे नष्ट हो सकते हैं और संशय नष्ट हुए बिना उसकी उन्नति भी कैसे हो सकती है ।
अतः छोड़ दो उसे उसके हाल पर
[17:25, 1/10/2016] स ग 2 राधिका बेटी:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🐚 🌹ब्रज के सन्त🌹 🐚
🌹 श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी 🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏भाग-1⃣
🌹यस्मै दातुं चोरयन् क्षीरभाण्डं गोपीनाथ: क्षीरचोराभिधो$भूत।
🌹श्रीगोपाल: प्रादुरासीद वश: सन् यत्प्रेम्णा तं माधववेन्द्रं नतो$स्मि।।
✨🌹श्रीगोपीनाथ ठाकुर ने जिनको देने के लिए क्षीर के भरे पात्र की चोरी की अपना नाम "क्षीर-चोरा गोपीनाथ" धराया, और प्रेम के वशीभूत होकर श्रीगोपाल जिनके सामने गोप-बालकरुप मे साक्षात् प्रकट हुए, उन श्रीमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामीपाद को मैं प्रणाम करता हूं।
✨🌹लौकिक लीला मे श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी श्रीकृष्णचैतन्यदेव के परम गुरु हैं-गुरु के गुरु है। श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी के शिष्य हैं श्रीईश्वरपुरी जी, तथा उनके शिष्य हैं श्रीमन्महाप्रभु। आपात्-दृष्टि से ऐसा लगता हैं कि "श्रीचैतन्यभक्तगाथा" मे श्रीपाद माधवेन्द्रपुरी का उल्लेख क्यों ? जबकि वे श्रीचैतन्य के भक्त नहीं हैं, गुरु हैं बल्कि परमगुरु हैं। किन्तु यहाँ इस सिद्धांत को याद रखना आवश्यक है कि-
🌹कृष्णप्रेमेर एइ
🌹एक अपूर्व प्रभाव।
🌹गुरु, सम लघुके
🌹कराय दास्यभाव।।
✨🌹कृष्ण-प्रेम का एक ऐसा अद्भुत अनुपम प्रभाव है कि जिसमें वह उदय होता हैं, वह व्यक्ति चाहे श्रीकृष्ण का गुरुजन हो, उनके बराबर का (सखा) हो अथवा उनसे छोटा (दास) हो, उसमें भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति दास्यभाव रहता हैं। "वह अपने को श्रीकृष्ण का दास ही मानता हैं।" श्रीकृष्ण की ब्रज-लीला मे श्रीनंद महाराज के बराबर श्रीकृष्ण का गुरुजन और कोई नहीं हो सकता। वे शुद्ध वात्सल्य की मूर्ति है, श्रीकृष्ण के प्रति उनका ईश्वर-ज्ञान तीनों काल नहीं है, कृष्ण-प्रेम उनमें भी दास्यभाव का अनुसरण कराता है।
✏क्रमश.....2⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं 🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚
[17:34, 1/10/2016] स ग 2 राधिका बेटी:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....2⃣
✨🌹मनसो वृत्तयो न: स्यु: कृष्णपादाम्बुजाश्रया:।
✨🌹वाचो$भिधायिनीर्नाम्नां कायस्तत्प्रहृणदिषु।।
✨🌹श्रीनन्द महाराज ने उद्घव जी को, जब वे मथुरा लौटने लगे, तब कहा "हे उद्घव ! अब हम यही चाहते है कि हमारे मन की एक-एक वृत्ति, एक-एक संकल्प श्री कृष्ण के चरणकमलों के आश्रित रहे। उन्हीं की सेवा के लिये हमारी वृत्ति और हर संकल्प हो। हमारी वाणी नित्य-निरन्तर उन्हीं के नामों का उच्चारण करती रहे और शरीर उनको प्रणाम करने मे, उन्हीं की आज्ञा पालन और सेवा मे लगा रहे।" इसी प्रकार श्रीबलराम जी आदि समस्त गुरुजन, मथुरा-द्वारिका के सब परिकर, ब्रह्मा-शिव आदि भगवदवतारगण भी भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति सदा दास्यभाव रखते हैं।
✨🌹इसी प्रकार नवद्वीप-लीला मे समस्त गुरुजनों अर्थात माता-पिता मे तो दास्यभाव अनेक स्थानों पर स्पष्ट दीखता ही हैं, कृष्ण-प्रेम-दीक्षा प्रदाता गुरु श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी तथा संन्यास-प्रदाता गुरु केशव भारती जी मे भी श्रीकृष्ण-स्वरुप श्रीकृष्णचैतन्य के प्रति दास्यभाव का स्पष्ट उल्लेख मिलता है-
✨🌹श्री मन्महाप्रभु गया यात्रा पर गये। चक्रवेड़ पर, जहाँ श्रीविष्णु चरण-कमलों के दर्शन हैं, वहाँ श्रीचरण-दर्शन एवं पूजा करते ही महाप्रभु प्रेमाविष्ट हो उठे। शरीर मे प्रेम के विकार स्वेद-कम्प-रोमाञ्चादि हो उठे, नेत्रों से अजस्र अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। दैवयोग से वहाँ श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी आ पहुंचे। श्रीपुरी के दर्शन करते ही श्रीमहाप्रभु ने उन्हे नमस्कार किया और अपनी तीर्थयात्रा को सफल माना, अनेक कृतज्ञता जनाई। श्रीमन्महाप्रभु नवद्वीप मे पहले उनके दर्शन कर चुके थे-पूर्व परिचित थे।
✏क्रमश......3⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫
[17:40, 1/10/2016] स ग 2 राधिका बेटी: प्राणधनश्रीराधारमण लालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....3⃣
✨🌹श्रीमन्महाप्रभु के वचन सुनकर श्रीपुरीपाद बोले-
🍁येन आजि आमि शुभ स्वपन देखिलाड।
🍁साक्षाते ताहार फल एई पाइलाड।।
🍁सत्य कहि, पण्डित ! तोमार दरशने।
🍁परानन्द-सुख येन पाइ अनुक्षणे।।
🍁सत्य एइ कहि, इथे किछु अन्य नाइ।
🍁कृष्ण-दरशन-सुख तोमा देखि पाइ।।
✨🌹मैनें जो शुभ स्वपन आज देखा, उसका साक्षात् फल प्राप्त किया है। पण्डित विश्वम्भर ! आपके दर्शन से परमानन्द-सुख का मैं प्रतिक्षण अनुभव कर रहा हूं। मैं यह सत्य कह रहा हूं, कुछ बढ़ा-चढा़कर नहीं कह रहा, आपके दर्शनों मे कृष्ण-दर्शन का सुख अनुभव कर रहा हूं।
✨🌹अगले दिन फिर श्रीईश्वरपुरी जी श्रीमहाप्रभु के स्थान पर गये और प्रभु ने उनसे भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना की। श्रीपाद 'वृन्दावनदास-व्यास' लिखते है-
🍁हेन कृपा प्रभुर ईश्वरपुरी-प्रति।
🍁पुरीरो नाहिक कृष्ण-छाड़ा अन्य-मति।।
✨🌹श्रीमहाप्रभु की अपूर्व कृपा थी श्रीईश्वरपुरी के प्रति, और श्रीईश्वरपुरी जी भी महाप्रभु को श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं जानते। इससे स्पष्ट है कि प्रेमदीक्षा-गुरु श्रीईश्वरपुरी भी महाप्रभु मे दास्य-भाव रखते हैं, और उन्हें अपना इष्टदेव श्रीकृष्ण मानते हैं।
✏क्रमश......4⃣
🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹
▫🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫🔲
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
बात
यदि दिल से
कही जायेगी
तभी
दिल तक
पहुंचेगी
वरना तो
सफ़र
ज़ुबां
😛 से
कान
👂🏻तक
💜 से 💚
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 4⃣7⃣
🌿 मनमानी से भी जरूर
🌿 मिलेगा
🙏भक्ति को शास्त्र में निरपेक्ष कहा गया है, यानी यह किसी की अपेक्षा नहीं रखती,
यह भगवान की ही तरह परम स्वतंत्र है, न शास्त्र, न विधि, न निषेध्, न मंत्र, न नियम, न साधन, न ज्ञान
इस बात के प्रमाण में ऐसे अनेक संत हुए हैं।
👳🏻एक संत ने भोग न लगाने पर प्रभु को पहले तो खूब हड़काया, न मानने पर डंडा उठा लिया, प्रभु प्रकट हो गए और भोग लगाया।
〽 ठाकुर को डंडा मारना शास्त्रीय नहीं है, न भक्ति के 64 अंगों में आता है।
इसी प्रकार हम जो कर रहे हैं उल्टा-सीधा, उचित- अनुचित, अशास्त्रीय, हमें यदि आत्मिक आनंद मिल रहा है, प्रभु का अहसास हो रहा है, हम गद-गद हैं, तो इससे बढ़कर कुछ भी नहीं, न शास्त्र, न साधु, न संत, न विद्वान।
😨और यदि संतुष्टि है नहीं, भटकन बनी हुई है, अहसास हो नहीं रहा, आनंद का लेश भी नहीं है, तर्क- कुतर्क हार -जीत का सिलसिला, राग- द्वेष, अहंकार बना है तो हम भटक रहे हैं। और यह भटकन शास्त्र विधि का अनुसरण करने पर ही दूर होगी।
मनमानी बंद करनी ही होगी । आत्म -निरीक्षण से स्वयं को नापना होगा । दूसरा कोई कुछ भी कहे कहता रहे।
🌿एकादशी यानि क्या???🌿
🍒कुछ चीजों को खाना और कुछ चीजों को न खाना एकादशी की पहली क्लास है। एकादशी के लौकिक और परमार्थिक दो तरह के फल हैं ।
💕लौकिक फल
🙌एकादशी की कथा में वर्णित है पारमार्थिक फल है कि एकादशी प्रभु - प्रेम प्राप्त कराती है। एकादशी के दिन को 'हरिवासर' भी कहते हैं =यानी 'हरि का दिन'
💤 इस दिन कोशिश करके अपना अधिक से अधिक समय प्राथमिकताएं एवं चेष्टा श्रीहरि के लिए समर्पित होनी चाहिए। रात्रि- जाग कर नाम जप या संकीर्तन करना चाहिए। और यह सब सहजता से हो सके।
🍑इसलिए परम सात्विक फल, फूल, कंद, मूल, शरीर रक्षा को ध्यान में रखकर कम मात्रा में खाना चाहिए जिससे विकार न हो। यदि हम ' खाने न खाने 'को ही एकादशी माने हुए हैं, तो ठीक है।
🚶लेकिन इससे आगे बहुत कुछ और भी है, आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
खाने न खाने से पाप पुण्य होगा
भजन करने से भक्ति होगी
समझे रहें ।
📌एक ही क्लास में कितने दिन रुके रहेंगे हम???
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
•¡✽🌿🌻◆🔔◆🌻🌿✽¡•
🔟*1⃣*1⃣6⃣
रविवार पौष
शुक्लपक्ष प्रतिपदा
•🌻•
◆~🔔~◆
◆!🌿जयनिताई🌿!◆
★🌻गौरांग महाप्रभु 🌻★
◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
◆~🔔~◆
•🌻•
❗श्रीवासपण्डित को वरदान❗
🌿 श्री नित्यानन्द प्रभु श्री वास पण्डित के घर सदा बाल भाव में रहते थे l श्री वास एवं उसकी गृहणी मालिनी देवी बालक की भाँति उन्हें स्नेह करती थी l एक दिन श्री गौरांग श्री वास की परीक्षा लेने उनके घर पहुंचे और बोले श्री वास तुम बड़े सरलचित्त हो l इस नित्यानन्द के जाति कुल का कोई पता नहीं l इसका कोई आचरण नहीं धर्म अधर्म यह कुछ नहीं जानता l
🌿 अतः यदि तुम अपने धर्म की रक्षा चाहते हो तो इसे यहाँ मत रहने दो l श्री वास हँसकर बोले प्रभो मेरी परीक्षा करने आये हो ❓मेरा धर्म बिगड़े या रहे मेरा घर बार वैष्णव तन मन सर्वनाश हो जाये होने दो पर मैं निताई चांद को नहीं छोड़ सकता हूँ l मैं इन्हें मूल संकर्षण बलराम जानता हूँ l
🌿 उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•🔔★🔔•
•🌿सुप्रभात🌿•
•🌻श्रीकृष्णायसमर्पणं🌻•
•🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
•🔔★🔔•
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•¡✽🌿🌻◆🎼◆🌻🌿✽¡•
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
शास्त्र में भजन के लोभ को ही महत्वपूर्ण कारण माना गया है
यदि लोभ उत्पन्न हो जाय तो हम भजन के बिना रह नही पाएंगे
ये लोभ का स्वाभाविक गुण ह
कामिहि नारी पियारि जिमि
लोभिहि जिमि दाम
एक दायित्व
। एक नियम ।
एक अनुशासन
एक परम्परा के लिए
हम भजन में लगे हैं । अभी लोभ उत्पन्न नही हुआ
जिस दिन हो जाएगा
फिर बात ही कुछ और होगी
शास्त्र में कहा ह
तस्य लौल्यम अपि
मूल्य मेकलम
अर्थात भजन को खरीदना चाहते हो तो इसका मूल्य है लोभ ।
जय हो
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
कारण या भाव
किसी भी कार्य के करने में
हमारा भाव क्या है
यही महत्वपूर्ण है । और फल का निर्धारण और प्राप्ति भी उसी अनुसार होती है
हम भजन को ही लें
भजन करते हुए हम पहचान चाहत हैं तो पहचान मिलेगी । भगवान नही ।
अनेक बार बाहर से एक सी क्रिया दीखते हुए भी फल अलग अलग होटा है ।
और सबसे बड़ी बात कि कभी कभी हम स्वयं भी ये नहीं जान पाते कि इस कार्य को करने का हमारा उद्देश्य क्या है ।
मंदिर का पेड पुजारी इसका उदाहरण है । लगता तो है कि कितनी भावपूर्ण सेवा करता है । लेकिन कुछ रुपये अधिक मिलने पर दूसरे मन्दिर में दिखाई देता है
उसका उद्देश्य सैलरी है । सेवा नही । इसका उल्टा भी होता है की उद्देश्य सेवा है । कुछ मिल जाय तो ठीक । न मिले तो ठीक ।
दीखने में दोनों ही सेवा कर रहे हैं
अन्तर्निहित भाव या कारण अलग अलग है । अतः सावधान अपने अंदर सूक्ष्मता से झांकते रहना है हमें । उत्तर अवश्य मिलेगा
समस्त वैष्णवजन के श्रीचरणों में सादर प्रणाम जय श्री राधे
जय निताई
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
संजय कौन
जो धृतराष्ट्र को महल में बेठे हुए
महाभारत के युद्ध का सब आँखों देखा हाल सुनाये
जो हम सब ग्रुप वालों को ब्रज के उत्सवों का आँखों देखा हाल दिखाए । सुनाये
गज़ब । संजय जी । SB
यथा नाम तथा गुण । जय हो
बलिहार प्रभु की कि आप से सेवा ले रहे हैं और हमे आनंद दे रहे हैं
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: 🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
💐💐ब्रज की उपासना💐💐
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌷 निताई गौर हरिबोल🌷
क्रम संख्या 2⃣9⃣
🌴ब्रज भक्ति की सीढियाँ🌴
🙏 श्रद्धा 🙏
🎷 'कृष्ण -भक्ति- जन्म' का मूल है साधूसंग । पूर्वजन्म के किसी साधु- वैष्णव की कृपा के कारण ही जीव् में श्रद्धा अर्थात् शास्त्र वचनों में, गोस्वामीग्रंथों में कही गई बातों में दृढ़ विश्वास होता ह ।
🎻इस विश्वास या श्रद्धा से ही जीव भक्ति के विद्यालय में प्रवेश की योग्यता प्राप्त करता है।
🎺जिसे श्रद्धा नहीं है, संशय है-वह भक्ति से कोसों दूर है । संशय और जिज्ञासा में अंतर है ।
🎸संशय में विश्वास, श्रद्धा का अभाव है। जिज्ञासा में श्रद्धा है, विश्वास है, उसे समझने की चेष्टा है।
1⃣ शास्त्रवचनों में विश्वास तो है। श्रद्धा भी है लेकिन वह उन पर अमल नहीं करते। विश्वास मौखिक है हम जैसे बहुत से लेखक व कथा वाचक प्राय: इस श्रेणी में आते हैं।
2⃣ कुछ लोग इसलिए श्रद्धा या विश्वास करते हैं कि- शास्त्र कथन मानने से इस लोक व् परलोक के सुख, यश,भोग प्राप्त होंगे। श्रद्धा का कारण सुख-प्राप्ति है। भक्ति नहीं।
3⃣ कुछ लोग इस लोक व् परलोक के सुखों को अनित्य जानकर 'मोक्ष' 'मुक्ति'- बार- बार जन्म-मरण के चक्कर से छूटने के लिए भी शास्त्रों में श्रद्धा करते है।
क्रमशः.........
💐जय श्री राधे
💐जय निताई
📕स्रोत एवम संकलन
दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की उपासना ग्रन्थ से
✏प्रस्तुति ।
मोहन किंकरी 🐠 मीनाक्षी 🐠
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🐚 🌹ब्रज के सन्त🌹 🐚
🌹 श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी 🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏भाग-1⃣
🌹यस्मै दातुं चोरयन् क्षीरभाण्डं गोपीनाथ: क्षीरचोराभिधो$भूत।
🌹श्रीगोपाल: प्रादुरासीद वश: सन् यत्प्रेम्णा तं माधववेन्द्रं नतो$स्मि।।
✨🌹श्रीगोपीनाथ ठाकुर ने जिनको देने के लिए क्षीर के भरे पात्र की चोरी की अपना नाम "क्षीर-चोरा गोपीनाथ" धराया, और प्रेम के वशीभूत होकर श्रीगोपाल जिनके सामने गोप-बालकरुप मे साक्षात् प्रकट हुए, उन श्रीमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामीपाद को मैं प्रणाम करता हूं।
✨🌹लौकिक लीला मे श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी श्रीकृष्णचैतन्यदेव के परम गुरु हैं-गुरु के गुरु है। श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी के शिष्य हैं श्रीईश्वरपुरी जी, तथा उनके शिष्य हैं श्रीमन्महाप्रभु। आपात्-दृष्टि से ऐसा लगता हैं कि "श्रीचैतन्यभक्तगाथा" मे श्रीपाद माधवेन्द्रपुरी का उल्लेख क्यों ? जबकि वे श्रीचैतन्य के भक्त नहीं हैं, गुरु हैं बल्कि परमगुरु हैं। किन्तु यहाँ इस सिद्धांत को याद रखना आवश्यक है कि-
🌹कृष्णप्रेमेर एइ
🌹एक अपूर्व प्रभाव।
🌹गुरु, सम लघुके
🌹कराय दास्यभाव।।
✨🌹कृष्ण-प्रेम का एक ऐसा अद्भुत अनुपम प्रभाव है कि जिसमें वह उदय होता हैं, वह व्यक्ति चाहे श्रीकृष्ण का गुरुजन हो, उनके बराबर का (सखा) हो अथवा उनसे छोटा (दास) हो, उसमें भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति दास्यभाव रहता हैं। "वह अपने को श्रीकृष्ण का दास ही मानता हैं।" श्रीकृष्ण की ब्रज-लीला मे श्रीनंद महाराज के बराबर श्रीकृष्ण का गुरुजन और कोई नहीं हो सकता। वे शुद्ध वात्सल्य की मूर्ति है, श्रीकृष्ण के प्रति उनका ईश्वर-ज्ञान तीनों काल नहीं है, कृष्ण-प्रेम उनमें भी दास्यभाव का अनुसरण कराता है।
✏क्रमश.....2⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं 🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
प्राणधन श्रीराधारमणलालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....2⃣
✨🌹मनसो वृत्तयो न: स्यु: कृष्णपादाम्बुजाश्रया:।
✨🌹वाचो$भिधायिनीर्नाम्नां कायस्तत्प्रहृणदिषु।।
✨🌹श्रीनन्द महाराज ने उद्घव जी को, जब वे मथुरा लौटने लगे, तब कहा "हे उद्घव ! अब हम यही चाहते है कि हमारे मन की एक-एक वृत्ति, एक-एक संकल्प श्री कृष्ण के चरणकमलों के आश्रित रहे। उन्हीं की सेवा के लिये हमारी वृत्ति और हर संकल्प हो। हमारी वाणी नित्य-निरन्तर उन्हीं के नामों का उच्चारण करती रहे और शरीर उनको प्रणाम करने मे, उन्हीं की आज्ञा पालन और सेवा मे लगा रहे।" इसी प्रकार श्रीबलराम जी आदि समस्त गुरुजन, मथुरा-द्वारिका के सब परिकर, ब्रह्मा-शिव आदि भगवदवतारगण भी भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति सदा दास्यभाव रखते हैं।
✨🌹इसी प्रकार नवद्वीप-लीला मे समस्त गुरुजनों अर्थात माता-पिता मे तो दास्यभाव अनेक स्थानों पर स्पष्ट दीखता ही हैं, कृष्ण-प्रेम-दीक्षा प्रदाता गुरु श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी तथा संन्यास-प्रदाता गुरु केशव भारती जी मे भी श्रीकृष्ण-स्वरुप श्रीकृष्णचैतन्य के प्रति दास्यभाव का स्पष्ट उल्लेख मिलता है-
✨🌹श्री मन्महाप्रभु गया यात्रा पर गये। चक्रवेड़ पर, जहाँ श्रीविष्णु चरण-कमलों के दर्शन हैं, वहाँ श्रीचरण-दर्शन एवं पूजा करते ही महाप्रभु प्रेमाविष्ट हो उठे। शरीर मे प्रेम के विकार स्वेद-कम्प-रोमाञ्चादि हो उठे, नेत्रों से अजस्र अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। दैवयोग से वहाँ श्रीईश्वरपुरी गोस्वामी आ पहुंचे। श्रीपुरी के दर्शन करते ही श्रीमहाप्रभु ने उन्हे नमस्कार किया और अपनी तीर्थयात्रा को सफल माना, अनेक कृतज्ञता जनाई। श्रीमन्महाप्रभु नवद्वीप मे पहले उनके दर्शन कर चुके थे-पूर्व परिचित थे।
✏क्रमश......3⃣
🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌹
🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
प्राणधनश्रीराधारमण लालमण्डल
🔻जयगौर🔻
🌹 श्रीचैतन्य-भक्तगाथा 🌹
🌹 ब्रज के सन्त 🌹
🌹श्रीपाद 🌹
🌹माधवेन्द्रपुरी गोस्वामी🌹
ब्रजविभूति श्रीश्यामदास लिखित
मुद्रण-संयोजन:
श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन
✏क्रमश से आगे.....3⃣
✨🌹श्रीमन्महाप्रभु के वचन सुनकर श्रीपुरीपाद बोले-
🍁येन आजि आमि शुभ स्वपन देखिलाड।
🍁साक्षाते ताहार फल एई पाइलाड।।
🍁सत्य कहि, पण्डित ! तोमार दरशने।
🍁परानन्द-सुख येन पाइ अनुक्षणे।।
🍁सत्य एइ कहि, इथे किछु अन्य नाइ।
🍁कृष्ण-दरशन-सुख तोमा देखि पाइ।।
✨🌹मैनें जो शुभ स्वपन आज देखा, उसका साक्षात् फल प्राप्त किया है। पण्डित विश्वम्भर ! आपके दर्शन से परमानन्द-सुख का मैं प्रतिक्षण अनुभव कर रहा हूं। मैं यह सत्य कह रहा हूं, कुछ बढ़ा-चढा़कर नहीं कह रहा, आपके दर्शनों मे कृष्ण-दर्शन का सुख अनुभव कर रहा हूं।
✨🌹अगले दिन फिर श्रीईश्वरपुरी जी श्रीमहाप्रभु के स्थान पर गये और प्रभु ने उनसे भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना की। श्रीपाद 'वृन्दावनदास-व्यास' लिखते है-
🍁हेन कृपा प्रभुर ईश्वरपुरी-प्रति।
🍁पुरीरो नाहिक कृष्ण-छाड़ा अन्य-मति।।
✨🌹श्रीमहाप्रभु की अपूर्व कृपा थी श्रीईश्वरपुरी के प्रति, और श्रीईश्वरपुरी जी भी महाप्रभु को श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं जानते। इससे स्पष्ट है कि प्रेमदीक्षा-गुरु श्रीईश्वरपुरी भी महाप्रभु मे दास्य-भाव रखते हैं, और उन्हें अपना इष्टदेव श्रीकृष्ण मानते हैं।
✏क्रमश......4⃣
🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹
▫🔲🐚🔔▫🔲🔔🐚▫🔲
[20:31, 1/10/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
💐श्रीराधारमणो विजयते 💐
🌻 निताई गौर हरिबोल🌻
📚🍵ब्रज की खिचड़ी 🍵📚
क्रम संख्या 4⃣8⃣
🌿 एक अंधा 🌿
🐎 अपने घोड़े पर सवार होकर एक संत- सज्जन नगर से अपनी कुटिया पर जंगल की ओर जा रहे थे अचानक एक अंधा पुरुष सामने आ गया, वह कह रहा था- 'भाई कोई इस अंधे को उसके घर पहुंचा दें, उस का भला हो ;
👱🏻 सज्जन ने उसे अपने घोड़े पर बैठा लिया, और चल दिए बीच में एकांत आने पर अंधे ने संत को दबोच लिया ।और घोड़ा छुड़ा लिया। वह वास्तव में अंधा नहीं था। नाटक कर रहा था।
👳🏻सज्जन- संत ने कहा घोड़ा तो मैं तुम्हें वैसे ही दे देता, यह सब किया सो किया लेकिन यह बात किसी को बताना मत।
😎 अंधे ने पूछा- ' क्यों'
संत ने कहा -इस वाक्य से लोगों का अंधो से विश्वास उठ जाएगा। और फिर कोई भी अंधे की सहायता नहीं करेगा,
👴🏻 संत के तेज से उसका लौकिक अंधापन भी चला गया और अब वह भी उस संत की कुटिया में उस संत के साथ रहता है।
🌿 सज्जन 🌿
👱🏼 एक सज्जन पुरुष अपने साथ किए गए चाल चपट या अन्य करामातों को देखते - समझते हुए भी उन्हें अनदेखा करते हुए अपने सज्जन स्वभाव में स्थित रहता है।
😮हम यह समझते हैं कि हम इसे मूर्ख बना रहे हैं, लेकिन सत्य यह है कि हम मूर्ख हैं और वह सज्जन है ।
🌿 आनंद कहां 🌿
😏आनंद किसी वस्तु में नहीं। आनंद मन का एक भाव् है, यदि किसी वस्तु में आनंद होता है तो उसमें सभी को आनंद प्राप्त होता, लेकिन ऐसी कोई वस्तु नहीं हैं जो सभी को आनंद दे।
🌿उपासना 🌿
उपासना सकाम हो या श्री कृष्ण प्रीति के लिए की गई हो सदैव वर्तमान से श्रेष्ठता की और अग्रसर होने के लिए की जाती है। श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होने से वर्तमान की कम श्रेष्ठता या निकृष्टता से भी सहज मुक्ति मिल जाती है।
🙌🏻जय श्री राधे। जय निताई🙌🏻
📕स्रोत एवम् संकलन
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन द्वारा लिखित व्रज की खिचड़ी ग्रन्थ से
📝 प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: जिंदगी ने मेरे ‛मर्ज़ का
एक बढिया इलाज़ बताया,
वक्त को 'दवा' कहा और
‛ख्वाहिशो' का परहेज' बताया
समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम जय श्री राधे जय निताई
[18:42, 1/11/2016]
Dasabhas DrGiriraj Nangia:
•¡✽🌿🌻◆🔔◆🌻🌿✽¡•
1⃣1⃣*1⃣*1⃣6⃣
सोमवार पौष
शुक्लपक्ष द्वितीया
•🌻•
◆~🔔~◆
◆!🌿जयनिताई🌿!◆
★🌻गौरांग महाप्रभु 🌻★
◆!🌿श्रीचैतन्य🌿!◆
◆~🔔~◆
•🌻•
❗श्रीवासपण्डित को वरदान❗
🌿 श्री वास की श्री निताई में ऐसी निष्ठा देखकर श्री गौरांग पुलकित हो उठे l श्री वास को अंक भरकर बोले श्री नित्यानंद के प्रति तुम्हारा इतना विश्वास ❗प्रसन्न होकर दो वरदान देता हूँ l
1⃣ तुम्हे कभी दरिद्रता नहीं व्यापेगी तुम्हारे घर सदा समृद्धि और खुशहाली बनी रहेगी l
2⃣ जो भी तुम्हारे घर आँगन में एक बार आयेगा उसे श्री कृष्ण की अविचला भक्ति प्राप्त होगी l
🌿 अब भी उनके आँगन की महिमा अप्रतिहत है l चैतन्य महाप्रभु भी वहां भक्तों के साथ संकीर्तन रास करते थे lबहिर्मुख लोगो के अंदर आने की आज्ञा नहीं थी lभजन की यह रीति है कि यदि विजातीय वृत्ति का व्यक्ति भजन के समय सामने आये तो भजन का आवेश नष्ट हो जाता है l
🌿 उपरोक्त सार व्रजविभूति श्रीश्यामदास जी के ग्रंथ से लेते हुए हम भी अपने जीवन को भक्तिमय बनाये यही प्रार्थना है प्रभु के चरणों में l
क्रमशः........
✏ मालिनी
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•🔔★🔔•
•🌿सुप्रभात🌿•
•🌻श्रीकृष्णायसमर्पणं🌻•
•🌿जैश्रीराधेश्याम🌿•
•🔔★🔔•
¥﹏*)•🌻•(*﹏¥
•¡✽🌿🌻◆🎼◆🌻🌿✽¡•
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
हा हा
कुछ लोग
यथा नाम तथा गुण होते हैं
जेसे संजय । SB
कुछ विपरीत होते हैं
जेसे दुग्गल
नाम दुग्गल और दोगला पन
बिलकुल नहीं । दिल के साफ़
निर्मल । अश्रुपूरित नेत्र । द्रवित ह्रदय ।
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia: हे
श्री राधारमण
♡♡♡♡♡
मेरा वजूद मुक़म्मल है तुम से,
मेरी हर एक ग़ज़ल है तुम से,
मेरा मुझ में कुछ ना बचा अब,
जिंदगी मेरी सफल है तुम से,
जुदा हो कर कहाँ जाऊँगी मैं,
मेरा तो हर एक पल है तुम से,
धड़कता है दिल तुम्हारे होने से,
मेरा आज, मेरा कल है तुम से,
खुशियों की वजह तुम
परेशानियों का हल है तुम से....
जय गौर हरि से
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
नि । 🌹निश्चित रूप से
ता । 🌹तारने वाला
ई । 🌹ईश्वर
🌹निताई🌹
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
कृष्ण सेवा
वैष्णव सेवा
हरिनाम
वैष्णवों के 3 काम
[18:42, 1/11/2016] Dasabhas DrGiriraj Nangia:
🐚प्राणधन श्रीराधारमण लाल मण्डल🐚
🔻जयगौर🔻
📘 [श्रीचैतन्य-भक्तगाथा] 📘
🐚 (ब्रज के सन्त) 🐚
✨🌹श्रीपादमाधवेन्द्रपुरी गोस्वामी✨🌹
〽ब्रजविभूति श्रीश्यामदास 〽
🎨मुद्रण-संयोजन:श्रीहरिनाम प्रैस, वृन्दावन🎨
✏क्रमश से आगे.....4⃣
✨🌹श्री केशव भारती जी को जिस समय श्रीमनमहाप्रभु ने संन्यास देने की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा
(श्रीकृष्णदास कविराज के वचनों में)-
🍁भारती कहेन, तुमि ईश्वर अन्तर्यामी।
🍁येई कराइ, सेइ करिव, स्वतन्त्र नहि आमी।।
✨🌹प्रभो ! आप तो अन्तर्यामी ईश्वर हो, आप जो कुछ करने की आज्ञा दें, मैं वही करने को तैयार हूँ, मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ-आपका अनुचर हूँ। अतएव स्पष्ट है कि महाप्रभु के दीक्षा-गुरू एवं संन्यास-गुरू भी उनमें दास्यभाव रखते है-उनके गुरुजन होते हुए भी उनकी भक्त-श्रेणी मे गणना है।
✨🌹अब देखिये श्रीमाधवेन्द्रपुरीपाद के विषय में-श्रीमनमहाप्रभु जीव-जगत् को प्रेमभक्ति रूप निज सम्पत्ति को प्रदान करने के लिए अवतीर्ण हुए, उस संकल्प की पूर्ति के लिए-
🍁श्रीचैतन्य मालाकार पृथिवीते आनि।
🍁भक्ति-कल्पतरु रोपिला सिञ्चि इच्छा पानी।
🍁जय श्रीमाधवपुरी कृष्णप्रेम-पूर।
🍁भक्ति-कल्पतरूर तेंहो प्रथम अंकुर।।
✨🌹श्रीचैतन्यदेव स्वयं माली बने और नवद्वीप मे प्रेम-फल का बगीचा लगाना आरंभ किया। उन्होंने श्री गोलोक-धाम से भक्ति-कल्पतरु लाकर नवद्वीप की पावन-भूमि मे रोपण किया। और अपनी इच्छा रूपी पानी से उसे सींचन करने लगे। श्रीमाधवेन्द्रपुरी का हृदय कृष्णप्रेम से परिपूर्ण हैं। वे उस भक्ति-कल्पतरू के प्रथम अंकुर रूप मे प्रकटित हुए।
✨🌹श्रीमाधवेन्द्रपुरी जी को इस कार्य-सिद्धि के लिए ही श्रीव्रजेन्द्रनन्दन-कृष्ण ने अपने आविभार्व से पहले ही पृथ्वीतल पर अवतीर्ण कराया-जैसे हर अवतार मे अपने गुरूजनों को पहले भेजते है। ये व्रज मे दास्य, सख्य, वात्सल्य तथा मधुर रसमयी रागात्मिका-भक्ति के परिपक्व फल कृष्ण-प्रेम को धारण करने वाले कल्पवृक्ष रूप से विराजमान हैं।
✏क्रमश......5⃣
🌿🌹श्रीराधारमणाय समर्पणं🌿🌹
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