✔ *श्री गुरुदेव हैं श्री कृष्ण के दास* ✔
▶ ऐसे शास्त्र वाक्य, जिनमें गुरु को साक्षात भगवत्स्वरूप कहा गया है, समष्टि-गुरु से संबंधित है, व्यष्टि-गुरु से नहीं ।
व्यष्टि गुरु तो स्वरूपतः कृष्ण दास होते हैं। उन्हें स्वयं भगवान या विषय विग्रह मानना भक्ति-शास्त्र और श्रीमन्महाप्रभु द्वारा अनुमोदित भक्ति पथ के विरुद्ध है ।
▶ उन्हें भगवान से अभिन्न इसलिए कहते हैं कि वे भगवान के प्रिय होते हैं और उनमें भगवान की शक्ति का प्रकाश होता है- शिष्य को शिक्षा-दीक्षादि देने के समय भगवान उनमें अपनी शक्ति संचारित करते हैं ।
▶ गुरु और भगवान स्वरूपतः एक नहीं हैं, यह स्वयं भगवान श्री कृष्ण की अपनी उक्ति से सिद्ध है । उन्होंने कहा है- "पहले गुरुदेव की पूजा करके फिर मेरी पूजा करनी चाहिए ।
जो इस प्रकार करते हैं वे ही सिद्धि लाभ करते हैं ।"
यदि गुरुदेव भगवान से भिन्न न होते तो आगे-पीछे गुरु और भगवान की पूजा करने का कोई अर्थ न होता।
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज
LBW - Lives Born Works at vrindabn
धन्यवाद!!
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