लौकिक सम्बन्ध तो माता से , पिता से, भाई, पत्नी, आदि से है ही
लेकिन इन संबंधों को रोज़ हम टूटता या बदलता देखते हैं,
हमारा सच्चा सम्बन्ध श्रीकृष्ण से है,
जो यदि एकबार पता चल जाय तो फिर टूटता नहीं,
ठीक है, लेकिन क्या सम्बन्ध है ?
श्रीकृष्ण हमारे स्वामी हैं, - हम उनके सेवक हैं.
'जीवेर स्वरुप हय नित्य कृष्णदास'
यह सम्बन्ध निभे कैसे ? -अभिधेय
सीधी सी बात है - सेवा से
स्वामी की सेवा ही सेवक का धर्म है
सेवा यानी भक्ति - 'भज धातु - सेवायाम'
ठीक है - सेवा करने से मिलेगा क्या ? -प्रयोजन
सोचो, स्वामी की सेवा करने से क्या मिलता है -
बात साफ़ है, उनका 'प्रेम' मिलेगा और क्या.
इसप्रकार सार यह निकला कि
श्रीकृष्ण हमारे स्वामी हैं
हम उनके सेवक है
उनकी सेवा या भक्ति हमारा धर्म है
और भक्ति करने से हमें उनके चरणों में प्रेम की प्राप्ति
हो जाएगी,
जब वह हमसे प्रेम करने लग जायेंगे तो फिर इसके बाद
हमें फिर और छाहिये भी क्या???????????
जय श्रीराधे
-दासाभास डा गिरिराज
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